जोशीमठ में डेढ़ लाख मुआवजे को लेकर प्रशासन से नाखुश लोग, कहा- प्रदर्शन जारी रहेगा; शहर में असुरक्षित भवनों की संख्या 723 पहुंची

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Atul Tiwari
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जोशीमठ में डेढ़ लाख मुआवजे को लेकर प्रशासन से नाखुश लोग, कहा- प्रदर्शन जारी रहेगा; शहर में असुरक्षित भवनों की संख्या 723 पहुंची

DEHRADUN. उत्तराखंड का जोशीमठ इस समय में बड़े संकट का सामना कर रहा है। भू-धंसाव से लगातार घरों में दरारें पड़ रही है। 11 जनवरी को जोशीमठ में स्थानीय लोगों और प्रशासन के बीच बातचीत बेनतीजा रही। प्रशासन की ओर से प्रभावितों परिवारों को डेढ़ लाख रुपए मुआवजा दिए जाने की बात कही गई, लेकिन लोगों ने इससे इनकार कर दिया। 



जिद पर अड़े होटल मालिक



जोशीमठ मलारी इन के मालिक ठाकुर सिंह राणा ने कहा कि मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव के साथ बैठक हुई। उन्होंने कहा कि बद्रीनाथ की तर्ज़ पर मुआवजा नहीं मिलेगा, लेकिन मार्केट रेट पर होगा। हमने बोला कि मार्केट रेट बता दें, लेकिन उन्होंने कहा कि नहीं बता सकते तो हमने कहा कि हम भी नहीं उठेंगे।



वहीं, भू-धंसाव से प्रभावित जोशीमठ से अलग-अलग जांच दलों की रिपोर्ट आ जाने के बाद ही राज्य सरकार केंद्र को राहत पैकेज का प्रस्ताव भेजेगी। तब तक सरकार रिपोर्ट आने का इंतजार करेगी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि केंद्रीय एजेंसियों से अनुरोध किया गया है, ताकि जल्द से जल्द भू धंसाव के कारण पता चल सकें।




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उत्तराखंड के जोशीमठ में घरों की दरकती दीवारें और शहर छोड़कर जाने को मजबूर लोग।




आज से भवन गिराए जाने की कार्यवाही



जमीन धंसने का दंश झेल रहे जोशीमठ में दरारों वाली इमारतों को गिराने की कार्यवाही आज यानी 11 जनवरी से शुरू होनी है। शासन के आदेश के बावजूद 10 जनवरी को कार्रवाई शुरू नहीं हो पाई थी। जिला प्रशासन की टीम लाव-लश्कर के साथ भवन तोड़ने पहुंची तो प्रभावित लोग विरोध में उतर आए। ऐसे में काम को टाल दिया गया था। इसे लेकर दिनभर अफरातफरी का माहौल रहा।



जोशीमठ में 10 जनवरी यानी मंगलवार को होटल माउंट व्यू और मलारी इन को गिराया किया जाना था, लेकिन होटल मालिकों ने कार्रवाई का विरोध शुरू कर दिया। उनका कहना था कि बिल्डिंग का ना तो आर्थिक मूल्यांकन किया गया, ना ही नोटिस दिए गए। विरोध बढ़ने पर प्रशासन को कदम पीछे खींचने पड़े। हालांकि, अधिकारियों का कहना कुछ और ही है। सचिव आपदा प्रबंधन डॉ.रंजीत सिन्हा ने कहा कि ऊंचे भवनों को तोड़ने के लिए क्रेन की जरूरत है, जो वहां नहीं मिल पाई। इसलिए देहरादून से क्रेन भेजी गई है, जो आज वहां पहुंच जाएगी। 



जोशीमठ में दरार वाले घर 723, 86 पर लाल निशान 



जोशीमठ में असुरक्षित भवनों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। 10 जनवरी को 45 भवन और चिन्हित किए गए। इस तरह से अब तक कुल 723 बिल्डिंग चिन्हित की जा चुकी हैं। 86 भवनों को पूरी तरह से असुरक्षित घोषित कर लाल निशान लगा दिए गए हैं। जल्द ही इन्हें भवनों को ढहाया जाएगा।



462 परिवारों को विस्थापित किया गया



जिला प्रशासन की ओर से अब तक 462 परिवारों को अस्थायी रूप से विस्थापित किया जा चुका है। 10 जनवरी को 381 लोगों को उनके घरों से सुरक्षित ठिकानों पर शिफ्ट किया गया। इससे पहले 81 परिवारों को शिफ्ट किया गया था। प्रशासन की ओर से अब तक विभिन्न संस्थाओं-भवनों में 344 कमरों का अधिग्रहण किया गया है। इनमें 1425 लोगों को ठहराने की व्यवस्था की गई है। 10 जनवरी को ही 20 असुरक्षित मकानों के बिजली कनेक्शन काट दिए गए।



जोशीमठ पहुंचीं केंद्रीय एजेंसियां 



10 जनवरी को गृह मंत्रालय की टीम सचिव सीमा प्रबंधन की अध्यक्षता में जोशीमठ पहुंची और हालात का जायजा लिया। इसके अलावा केंद्रीय एजेंसियां एनजीआरआई, एनआईएच, सीबीआरआई, एनआईडीएम की टीम पहले से ही जोशीमठ में डेरा जमाए हुए हैं। सचिव आपदा प्रबंधन डॉ.रंजीत सिन्हा ने बताया कि आईआईटी रुड़की की टीम को भी मौके पर भेजा रहा है।



चमोली के कलेक्टर हिमांशु खुराना ने बताया कि आपदा अधिनियम के तहत जान-माल की सुरक्षा को देखते हुए होटलों को तत्काल गिराने का फैसला किया। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो आसपास के आवासीय भवनों और हाईवे को क्षति पहुंच सकती है। साथ ही बिजली और पेयजल की लाइनों को भी नुकसान पहुंच सकता है।



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उत्तराखंड में जोशीमठ अकेला नहीं है, जहां भू-धंसाव का खतरा मंडरा रहा है। उत्तराखंड के पौड़ी, बागेश्वर, उत्तरकाशी, टिहरी गढ़वाल और रुद्रप्रयाग का भी यही हश्र हो सकता है। इन जिलों के स्थानीय लोगों को जोशीमठ जैसे हालात का डर है।  



पौड़ी- स्थानीय लोगों का कहना है कि चल रहे रेलवे प्रोजेक्ट की वजह से उनके घरों में दरारें आ गई हैं। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन के सुरंग निर्माण कार्य से श्रीनगर के हेदल मोहल्ला, आशीष विहार और नर्सरी रोड समेत अन्य घरों में दरारें दिखाई देने लगी हैं। लोगों का कहना है कि रेलवे द्वारा ब्लास्टिंग की जाती है, जिससे कंपन होता है, उसी कारण घरों में दरारें दिखाई देने लगी हैं।



बागेश्वर- यहां के कपकोट के खरबगड़ गांव पर खतरा मंडरा रहा है। इस गांव के ठीक ऊपर जलविद्युत परियोजना की सुरंग के ऊपर पहाड़ी में गड्ढे बना दिए गए हैं और जगह-जगह से पानी का रिसाव हो रहा है। इससे ग्रामीणों में दहशत है। कपकोट में भी भूस्खलन की खबरें आई हैं।



उत्तरकाशी- यहां के मस्तदी और भटवाड़ी गांव खतरे के निशान में हैं। जोशीमठ की घटना से मस्तड़ी के ग्रामीणों में दहशत का माहौल है। यहां 1991 में आए भूकंप की वजह से बिल्डिंग्स में दरारें आ गई थीं। इस समय पूरा उत्तरकाशी जिला प्राकृतिक आपदा की चपेट में है। जिला मुख्यालय से महज 10 किमी दूर रह रहे लोगों का कहना है कि गांव धीरे-धीरे डूब रहा है। भटवाड़ी गांव की भौगोलिक स्थिति जोशीमठ के समान है, क्योंकि इसके नीचे भागीरथी नदी बहती है और गंगोत्री नेशनल हाईवे ठीक ऊपर है। 2010 में भागीरथी में कटाव आने से 49 घर प्रभावित हुए थे। जो इमारतें सुरक्षित थीं, वे अब असुरक्षित हो गई हैं, क्योंकि हर साल दरारें बढ़ती जा रही हैं।



रुद्रप्रयाग- यहां का मरोदा गांव ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन निर्माण का खामियाजा भुगत रहा है। गांव में सुरंग निर्माण के कारण कुछ घर धराशायी हो गए हैं और कई घर नष्ट होने के कगार पर हैं। जिन प्रभावित परिवारों को अभी तक मुआवजा नहीं मिला है, वे आज भी जर्जर मकानों में रह रहे हैं।


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