VARANASI. योग के बड़े-बड़े चमत्कार सुने और देखे हैं, लेकिन 127 साल की उम्र में योग के प्रति जुनून पहली बार देखा है। ये बुजुर्ग स्वस्थ ही नहीं, फुर्तीले भी हैं। ये योग के किसी चमत्कार से कम नहीं। हम बात कर रहे हैं 127 साल के पद्मश्री स्वामी शिवानंद की, जिन्हें पिछले साल पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।
127 साल की उम्र में हर दिन एक घंटे योग
वाराणसी के मणिकर्णिका घाट से 4 किलोमीटर दूर दुर्गाकुंड पर स्वामी शिवानंद रहते हैं। मामूली कद काठी, सादी सी शक्ल, साधारण कपड़े, लेकिन उनकी उपलब्धि ऐसी कि जिसने भी सुना चौंक गया। स्वामी शिवानंद ने महज 6 साल की उम्र में योग शुरू किया था। आज 127 साल के होने पर भी हर दिन 60 मिनट तक योग करते हैं। गर्मी हो या फिर प्रचंड सर्दी, हर सुबह 3 बजे उठकर नहा लेते हैं।
गरीब माता-पिता ने 4 साल के शिवानंद को बाबा को समर्पित कर दिया
8 अगस्त 1896, श्रीहट्ट जिले (अब बांग्लादेश में) के ग्राम हरिपुर में ब्राह्मण परिवार में एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा शिवानंद। शिवानंद के परिवार में चार लोग थे। वो, उनके माता-पिता और एक बड़ी बहन। उनके माता-पिता भिक्षा मांगकर ही पूरे परिवार का गुजारा करते थे। कुछ वक्त तो जैसे-तैसे पूरे परिवार का गुजारा होता गया, लेकिन फिर मुश्किलें बढ़ने लगीं थीं।
घर में खाने तक के पैसे नहीं थे, इसलिए मां-बाप को शिवानंद की चिंता सताने लगी। जब वो 4 साल के हुए तो उन्हें बाबा ओंकारनंद गोस्वामी को समर्पित कर दिया गया, ताकि वहां उनकी देखभाल हो सके। बचपन से ही शिवानंद ने गुरु के पास रहकर शिक्षा लेना शुरू कर दिया था।
6 साल के थे तब भूख से मां-बाप और बहन की मौत हो गई
ओंकारनंद गोस्वामी के पास शिवानंद के करीब दो साल बीते थे। एक दिन शिवानंद के माता-पिता और बहन भिक्षा मांगने निकले। वो जगह-जगह भटके, लेकिन खाने को कुछ नहीं मिला। थक हारकर वो घर वापस आए। कुछ दिन यही सिलसिला चलता रहा। वो भिक्षा मांगने जाते पर खाली हाथ वापस लौट आते। पूरे परिवार की तबीयत खराब रहने लगी। आखिरकार एक दिन भूख की वजह से शिवानंद के माता-पिता और बहन की मौत हो गई।
शिवानंद के माता-पिता की मौत के बाद उनकी पूरी जिम्मेदारी बाबा ओंकारनंद ने अपने ऊपर ले ली। अब शिवानंद का पूरा भरण पोषण गुरु के आश्रम में होता था। शिवानंद कभी स्कूल नहीं गए। गुरु के पास ही रहकर उन्होंने व्यावहारिक ज्ञान और शिक्षा ली।
भिक्षा मांगकर ही गुजर-बसर, गुरु के पास समझ आया भोजन का महत्व
बाबा का परिवार भिक्षा मांगकर ही गुजर-बसर करता था। भिक्षा में सिर्फ उबले चावल का मांड ही मिल पाता था इसलिए जन्म से लेकर गुरु के पास आने तक उन्होंने सिर्फ चावल का मांड ही पिया था। यहां आए तब उन्हें भोजन का महत्त्व समझ आया। यहीं पहली बार उन्हें पता चला कि गरम चावल किसे कहते हैं। उन्होंने माता-पिता की मौत के बाद आज तक भरपेट खाना नहीं खाया।
संकल्प : पैसों के नहीं, ज्ञान के साथ ही रहना
जब उनके माता-पिता का देहांत हो गया तब उन्होंने तय किया कि उन्हें पैसों के पीछे नहीं भागना है, बल्कि ज्ञान के साथ रहना है और लोगों की सेवा करनी है। बाबा बचपन में अक्सर कई दिन तक खाली पेट रहते थे क्योंकि कुछ खाने को नहीं होता था। उन्होंने तय किया कि वो आधा पेट ही भोजन करेंगे।
आधा पेट भोजन, बाकी आधा गरीबों को दान
छह साल की उम्र से ही बाबा आधा पेट भोजन करते और बाकी आधा अन्न गरीबों को दे देते। ऐसा वो आज तक हर दिन करते आए हैं। उनका मानना है कि जैसे उनके घरवाले उन्हें छोड़कर चले गए वैसे किसी और की मौत भूख से नहीं होनी चाहिए। इसलिए उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों की सेवा में लगा दिया।
दुनिया घूम ली, पर वाराणसी में आकर शांति मिली
बाबा शिवानंद ने अलग-अलग देश घूमे, लेकिन उन्हें वाराणसी जैसा सुकून नहीं मिला। आज वाराणसी में ही उनका आश्रम है, वो भी वहीं रहते हैं। बाबा ने गुरु के साथ रहकर योग सीखा और 6 साल की उम्र से ही योग करना शुरू कर दिया। उनके गुरु ने उन्हें विश्व भ्रमण का आदेश दिया, इसलिए वह करीब 34 साल तक अलग-अलग देशों में गए। आजादी के समय देश के बाहर रहकर विदेशी नागरिकों को योग सिखाकर अपना भरण-पोषण करने लगे। महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस को भी उन्होंने काफी करीब से देखा है।
काशी में जो शांति मिलती है वो कहीं नहीं
वो विदेश में तो रहते, लेकिन उनका मन भारत में था। इसलिए साल 1977 में वो वृंदावन चले आए। यहां आकर उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया। जगह-जगह जाकर लोगों को योग सिखाया। आखिर में उन्हें वाराणसी में वो माहौल मिला जिसे वो देशभर में तलाश रहे थे। बस तभी से बाबा वाराणसी आ गए और अभी भी यहीं रहते हैं। बाबा शिवानंद को बड़ी इमारतों में खुशी नहीं मिलती। उन्हें लगता है कि काशी में जो शांति मिलती है वो कहीं नहीं है।
ऐसी है दिनचर्या, इसलिए हैं इतने स्वस्थ
बाबा शिवानंद की दिनचर्या को ही उनके स्वस्थ रहने का राज माना जाता है। वो हर सुबह 3 बजे उठ जाते हैं। फिर चाहें गर्मी हो या ठंडी, ठंडे पानी से स्नान करते हैं। इसके बाद वो 1 घंटे तक योग करते हैं। साथ ही दिन में तीन बार 3 मिनट के लिए सर्वांगासन भी करते हैं। इसके ठीक बाद एक मिनट का शवासन, पवन मुक्तासन समेत और कई आसान हर दिन करते हैं। वह रोजाना शाम को 8 बजे नहाकर ही भोजन करते हैं। उनके शिष्य बताते हैं कि वो अपने सारे काम खुद करते हैं। अपने बर्तन और कपड़े भी खुद ही धोते हैं। वह अपने कमरे की सफाई भी खुद करना पसंद करते हैं। बाबा हर मौसम में सिर्फ एक धोती पहनते हैं। नीम की पत्तियां और उबला हुआ खाना खाते बाबा लजीज व्यंजन समेत तमाम सुख-सुविधाओं से दूर रहते हुए जीवन को जीना पसंद करते हैं।
चटाई बिस्तर, लकड़ी का तकिया
बाबा रोजाना तीस सीढियां दो-बार उतरते चढ़ते हैं। वो एक पुरानी बिल्डिंग के छोटे से फ्लैट में शिष्यों के साथ दिन बिताते हैं। वहीं रात को बालकनी में सो जाते हैं। बाबा के शिष्य बताते हैं कि जहां हम सब गर्मी से परेशान हो जाते वहां बाबा प्रचंड गर्मी में भी एसी का इस्तेमाल नहीं करते और न ही ठंड में ब्लोअर का। वहीं, सोने के लिए वो चटाई का इस्तेमाल करते हैं और लकड़ी की स्लैब से तकिया बनाते हैं। यही वजह है कि सर्दी, खांसी और बुखार जैसी सीजनल बीमारी भी उन्हें नहीं छू पाती।
कलियुग में इतने सालों तक कोई नहीं जी सकता
“क्या हम भी आपकी तरह इतनी लंबी उम्र तक जी सकते हैं?” स्वामी शिवानंद से चार साल पहले एक डॉक्यूमेंट्री शूट के वक्त ये पूछा गया था। उन्होंने सपाट जवाब दिया, “नहीं, कभी नहीं” और कहा, “यह कलियुग है… सभी लालची हैं।”
पद्मश्री से हुए सम्मानित, पीएम मोदी ने झुककर किया प्रणाम
बाबा शिवानंद को पिछले साल पद्मश्री से सम्मानित किया गया। पीएम मोदी ने भी उन्हें झुककर प्रणाम किया। बाबा शिवानंद को पिछले साल पद्मश्री से सम्मानित किया गया। पीएम मोदी ने भी उन्हें झुककर प्रणाम किया। दिन था 21 मार्च 2022। राष्ट्रपति भवन का दरबार हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज रहा था। नाम पुकारा गया… स्वामी शिवानंद। तभी सफेद धोती-कुर्ता पहने 125 साल के शिवानंद आते हैं और पीएम मोदी को प्रणाम करते हैं। पीएम मोदी भी अपनी कुर्सी से खड़े होकर बाबा शिवानंद को हाथ जोड़कर झुककर प्रणाम करते हैं। इसके बाद बाबा शिवानंद ने उस वक्त के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के आगे झुककर नमस्कार किया। राष्ट्रपति कोविंद ने उन्हें अपने हाथों से उठाया। उसके बाद पद्मश्री से सम्मानित किया गया।