मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद क्या वास्तव में मंदिर तोड़कर बनाई गई? आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला

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BP Shrivastava
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मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद क्या वास्तव में मंदिर तोड़कर बनाई गई? आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला

MATHURA.मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के दर्शन के लिए भारत सहित दुनियाभर के लोग आते हैं, लेकिन आज कल यहां अजीब सा तनाव महसूस किया जा रहा है। इसकी वजह 350 साल पुराने शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़ा है। मथुरा डिस्ट्रिक कोर्ट ने एक याचिका पर मस्जिद का सर्वे कराने को कहा था। हालांकि दूसरे पक्ष की अपील पर आदेश को फिलहाल रोक दिया गया है। फिर भी मंदिर के आस-पास काफी बड़े क्षेत्र में फैले मार्केट में तनाव का माहौल है। यहां सभी धर्म के लोगों की दुकानें हैं।



मस्जिद को शिफ्ट करने याचिका



मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर एक याचिका दायर की गई थी। जिसमें मस्ज्दि को दूसरी जगह शिफ्ट करने की मांग की गई थी। याचिका में हिंदू पक्ष ने मस्जिद की जगह पहले मंदिर होने का दावा  किया गया है। यह भी बताया गया कि मंंदिर पर कब्जा करके मस्जिद बनाई गई। कोर्ट ने इसी याचिका पर मस्जिद वाली जगह का सर्वे कराने के आदेश दिए थे। हालांकि आदेश के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में अपील की है। जिस पर कोर्ट ने आदेश को फिलहाल होल्ड कर दिया है। शाही ईदगाह मस्जिद का अमीनी सर्वे कराने का आदेश दिसंबर में 2022 में सिविल जज सीनियर डिवीजन (थर्ड) सोनिका वर्मा ने दिया था।  और कोर्ट ने ही स्टे आर्डर दिया है।



350 साल पुराना है विवाद



पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना को लेकर है। इस जमीन के 11 एकड़ में श्रीकृष्ण जन्मभूमि बनी है। वहीं, 2.37 एकड़ हिस्सा शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। हिंदू पक्ष ने याचिका में दावा किया है कि यह पूरी जमीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि की है। विवाद की शुरुआत लगभग 350 साल पहले हुई थी, जब दिल्ली में औरंगजेब का शासन हुआ करता था। 1670 में औरंगजेब ने मथुरा की श्रीकृष्ण जन्म स्थान को तोड़ने का आदेश दिया था। इसके एक साल पहले ही काशी के मंदिर को तोड़ा गया था। बादशाह के आदेश पर कार्रवाई करते हुए मंदिर को धराशायी कर दिया गया था। इसके बाद इसी जमीन पर शाही ईदगाह मस्जिद बनाई गई। औरंगजेब के आदेश पर मंदिर तोड़े जाने की पुष्टि इतालवी यात्री निकोलस मनूची ने अपने लेख में की है। मनूची मुगल दरबार में आया था। यात्रा पर उसने अपनी किताब में जानकारी दी है। मुगलों के इतिहास का जिक्र करते हुए मनुची ने यह भी बताया कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान को रमजान के महीने में नष्ट किया गया।



मराठों ने वापस ली जमीन



मराठों ने मुगलों को हराकर 1770 में मथुरा पर कब्जा किया था और फिर मथुरा में मंदिर बनवाया था। उस समय इसे केशवदेव मंदिर नाम से पुकारते थे। इससे पहले यहां मस्जिद बनाई गई थी और हिंदुओं के मंदिर प्रवेश पर रोक लगा दी थी। इसके बाद मराठे मंदिर बनवाकर चले गए। रख रखाव ठीक से न होने के कारण धीरे-धीरे मंदिर कमजोर होता रहा और एक भूकंप की चपेट आकर ​गिर गया। इसके बाद 19वीं सदी में अंग्रेज मथुरा पहुंचे और 1815 में इस जगह की नीलामी की गई, जिसे काशी के राजा ने खरीदा था। राजा की इच्छा यहां मंदिर बनवान की थी,लेकिन मंदिर बन नहीं सका। 100 साल तक यह जमीन खाली पड़ी रही और इसे लेकर विवाद शुरू हो गया।




जमीन बिड़ला ने खरीदी और मंदिर ट्रस्ट को दे दी



साल 1944 में महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुआ। जब यह जमीन मशहूर उद्योगपति जुगल किशोर बिड़ला ने खरीद ली। इसका सौदा राजा पटनीमल के वारिसों के साथ हुआ। इसके बाद देश आजाद हुआ और यह जमीन 1951 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट को दे दी गई। बाद में ट्रस्ट ने चंदे के पैसे से 1953 में जमीन पर मंदिर का निर्माण शुरू किया, जो 1958 तक चलता रहा। इसी साल एक नई संस्था बनी, जिसका नाम श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान था। इसी संस्था ने 1968 में मुस्लिम पक्ष के साथ एक समझौता किया। इसमें कहा गया कि जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों रहेंगे। हालांकि श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट इस समझौते को नहीं मानता है। यह भी बताते है, श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान का जन्मभूमि पर कोई कानूनी दावा नहीं है।


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