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भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि 2024-25 में सरकारी खरीद लक्ष्य (Government Procurement Target) पार होने के बावजूद गेंहूं निर्यात (Wheat Export) की अनुमति नहीं दी जाएगी।
इसका मुख्य उद्देश्य बफर स्टॉक (Buffer Stock) को मजबूत करना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत राशन दुकानों पर आपूर्ति बहाल करना है। जानते हैं पूरी कहानी thesootr के इस एक्सप्लेनर से…
बफर स्टॉक की है जरूरत
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भारत की प्राथमिकता घरेलू भंडारण को 'आरामदायक स्तर' तक बढ़ाना है। इससे सरकार को जरूरत पड़ने पर खुले बाजार (Open Market) में 6-7 मिलियन टन गेहूं बेचने की सुविधा मिलेगी।
गेहूं और चावल आवंटन में बदलाव की योजना
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत चावल और गेहूं के आवंटन को फिर से संतुलित करने की तैयारी की जा रही है। पिछले वर्षों में कम गेहूं खरीद के कारण कुछ लाभार्थियों को चावल प्रदान किया गया था। अब आवंटन को पूर्व की स्थिति में बहाल करने के प्रयास किए जाएंगे।
उत्पादन अनुमान: रिकॉर्ड स्तर पर गेहूं उत्पादन
कृषि मंत्रालय (Agriculture Ministry) के अनुसार, चालू फसल वर्ष (जुलाई 2024-जून 2025) में गेहूं का उत्पादन रिकॉर्ड 115.43 मिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान है, जो 2023-24 के मुकाबले अधिक है।
गेहूं निर्यात प्रतिबंध का असर
- भारत ने 2021-22 में 7.23 मिलियन टन गेहूं का रिकॉर्ड निर्यात किया था। लेकिन मई 2022 में, घरेलू उत्पादन में गिरावट के चलते गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध (Wheat Export Ban) लगा दिया गया।
- 2022-23 में भारत ने 1.52 अरब डॉलर मूल्य का 4.7 मिलियन टन गेहूं निर्यात किया। 2024 में निर्यात घटकर मात्र 2,749 टन रह गया है, जो साफ तौर पर प्रतिबंध के असर को दर्शाता है।
इस फैसले का किसानों और आम नागरिकों पर क्या पड़ेगा असर?
भारत सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भले ही सरकारी खरीद लक्ष्य से अधिक गेहूं एकत्र हो जाए, फिर भी 2024-25 में गेहूं का निर्यात नहीं किया जाएगा। इस निर्णय का उद्देश्य बफर स्टॉक मजबूत करना और राशन प्रणाली के तहत सामान्य आवंटन बहाल करना है। आइए विस्तार से समझते हैं कि इस कदम का किसानों, आम नागरिकों और देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा।
किसानों पर असर
बाजार मूल्य में गिरावट की आशंका
निर्यात न होने के कारण स्थानीय मंडियों में गेहूं की आपूर्ति बढ़ेगी। जब मांग के मुकाबले आपूर्ति अधिक हो जाती है, तो दाम गिरने की संभावना रहती है। इससे किसानों को अपनी उपज के उचित दाम नहीं मिल सकते।
सरकारी खरीद पर निर्भरता बढ़ेगी
किसानों को अब सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के भरोसे रहना पड़ेगा। अगर सरकारी खरीद सुचारू नहीं रही तो किसानों को मंडी में कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, जिससे उनकी आय प्रभावित होगी।
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उत्पादन प्रोत्साहन में कमी
अच्छे निर्यात अवसर किसानों को ज्यादा उत्पादन के लिए प्रेरित करते हैं। निर्यात प्रतिबंध के चलते किसानों में उत्पादन बढ़ाने का उत्साह कम हो सकता है, जिससे भविष्य में गेहूं उत्पादन धीमा पड़ सकता है।
आम नागरिकों पर असर
खाद्य कीमतों में राहत
अधिक स्टॉक और घरेलू आपूर्ति के चलते गेहूं और आटे की कीमतों में स्थिरता या गिरावट आ सकती है। इससे आम उपभोक्ताओं, विशेषकर निम्न और मध्यम वर्ग को सीधा फायदा पहुंचेगा।
राशन दुकानों पर गेहूं की उपलब्धता
पिछले वर्षों में कम सरकारी खरीद के कारण कुछ राज्यों में गेहूं की जगह चावल दिया जा रहा था। अब बफर स्टॉक बढ़ने के साथ राशन कार्ड धारकों को फिर से गेहूं मिल सकेगा, जो पोषण संतुलन के लिहाज से भी लाभकारी है।
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खाद्य सुरक्षा में मजबूती
सरकार का फोकस बफर स्टॉक बढ़ाने पर है ताकि आपातकालीन परिस्थितियों में भी देश में खाद्यान्न संकट न हो। इससे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (NFSA) को मजबूती मिलेगी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव
भारत हाल के वर्षों में एक उभरता हुआ गेहूं निर्यातक बन रहा था। 2021-22 में रिकॉर्ड 7.23 मिलियन टन गेहूं का निर्यात हुआ था। निर्यात प्रतिबंध के कारण भारत की "विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता" की छवि को थोड़ी चोट पहुंच सकती है। इससे भविष्य में भारत के वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी प्रभावित हो सकती है।
भारत सरकार का यह कदम घरेलू स्तर पर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है, लेकिन किसानों को बाजार मूल्य में गिरावट का सामना करना पड़ सकता है। आम जनता को खाद्य कीमतों में स्थिरता का लाभ मिलेगा, पर भारत की वैश्विक निर्यात महत्वाकांक्षाओं को थोड़ा झटका लग सकता है। यह एक संतुलन साधने वाला निर्णय है, जिसमें घरेलू प्राथमिकताओं को अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर वरीयता दी गई है।
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