NEW DELHI. केंद्र सरकार ने धर्मांतरित दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने पर अध्ययन करने के लिए एक आयोग गठित किया है। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आयोग के अध्यक्ष केजी बालकृष्णन हैं। उनका कहना है कि धर्मांतरण करने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा मिलना चाहिए या नहीं, इस बात पर आयोग एक साल के अंदर अपनी रिपोर्ट दे सकता है। आयोग अब इस बात की जांच कर रहा है कि क्या सिख और बौद्ध धर्म के अलावा दूसरे धर्मों में जाने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा मिलना चाहिए या नहीं।
आयोग में 3 सदस्यीय टीम
आयोग की 3 सदस्यीय टीम में सरकार ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन, सेवानिवृत IAS रविन्दर कुमार जैन व यूजीसी की सदस्य प्रोफेसर (डाक्टर) सुषमा यादव शामिल हैं। जस्टिस बालाकृष्णन की मानें तो यह काम 2024 के चुनाव से पहले पूरा हो सकता है। आयोग को अपना काम पूरा करने के लिए 2 साल का समय दिया गया है। हालांकि, जस्टिस बालकृष्णन ने कहा कि उन्हें अभी तक सभी सुविधाएं मुहैया नहीं कराई गई हैं।
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2024 से पहले आ सकती है रिपोर्ट
जस्टिस बालकृष्णन ने कहा- सभी सुविधाएं प्रदान नहीं की गई हैं। ऑफिस दिया गया है, अन्य चीजें नहीं हैं। अगर काम शुरू होता है, तो (रिपोर्ट में) केवल 1 साल लगेगा, मुझे ऐसा लगता है। यह 2024 से पहले खत्म हो जाएगा। हालांकि सुविधाएं प्रदान करने में सरकार की ओर से किसी भी तरह की देरी से इंकार किया। उन्होंने कहा, सरकार आगे बढ़ रही है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई चल रही है।
20 साल से SC में लंबित है याचिका
ये याचिकाएं 20 साल से सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। सरकार ने शीर्ष अदालत से जस्टिस बालकृष्णन आयोग की रिपोर्ट आने तक इस पर रुकने को कहा है, लेकिन 12 अप्रैल को हुई पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सवाल पूछा था। इस सुनवाई में जस्टिस संजय किशन कौल ने सरकार से कहा था कि आपके पास आज एक आयोग है, कल दूसरा हो सकता है। विभिन्न राजनीतिक दल इस मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं को ला सकते हैं। 20 साल हो गए हैं। इतने साल में बहुत सारी सामग्री इकठ्ठा हो गई है। अब आप एक नया आयोग गठित कर दें तो वर्तमान आयोग भी उसी के साथ समाप्त हो जाएगा।
रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट में क्या था?
इसी मामले में 2007 में रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट ने सिफारिश की थी कि हिंदू धर्म में जातिगत उत्पीड़न से बचने के लिए इस्लाम और ईसाई धर्म अपनाने वाले दलितों को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जाति के आरक्षण का लाभ लेने की अनुमति दी जानी चाहिए। सरकार ने तर्क दिया था कि रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट अदूरदर्शी थी। जो एक कमरे की चार दीवारों के भीतर बैठकर बनाई गई थी। याचिकाकर्ताओं के वकीलों सीयू सिंह और कॉलिन गोंसाल्विस, प्रशांत भूषण और फ्रैंकलिन सीजर थॉमस ने अदालत से न्यायमूर्ति बालकृष्णन की रिपोर्ट का इंतजार नहीं करने का आग्रह किया था।