NEW DELHI. अरब सागर में उठे चक्रवाती तूफान बिपरजॉय के गुजरात के समुद्री तट से टकराने में अब सिर्फ 1 दिन बाकी है। मौसम विभाग (IMD) के अनुमान के मुताबिक ये खतरनाक चक्रवात गुरूवार, 15 जून की शाम तक कच्छ के जखाउ पोर्ट से टकराएगा। इस दौरान 135 से 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तेज हवाओं के साथ भारी बारिश होने और समुद्र में 20 फीट ऊंची लहरें उठने की संभावना है। बिपरजॉय की भयावहता और इससे संभावित तबाही को देखते हुए IMD ने गुजरात और महाराष्ट्र के तटीय इलाकों के लिए रेड अलर्ट घोषित किया है। आइए आपको समझाते हैं कि अरब सागर में उठा ये चक्रवाती तूफान (साइक्लोन) इतना खतरनाक क्यों माना जा रहा है और ये दूसरे तूफान (STROM) से अलग कैसे हैं?
चक्रवात क्या होते हैं और ये बनते कैसे हैं?
साइक्लोन शब्द ग्रीक भाषा के साइक्लोस (Cyclos) से लिया गया है, जिसका अर्थ है सांप की कुंडलियां। इसे ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में ट्रॉपिकल साइक्लोन समुद्र में कुंडली मारे सांपों की तरह नजर आते हैं। चक्रवात एक गोलाकार तूफान (सर्कुलर स्टॉर्म) होते हैं, जो गर्म समुद्र के ऊपर बनते हैं। जब ये चक्रवात जमीन पर पहुंचते हैं, तो अपने साथ भारी बारिश और तेज हवाएं लेकर आते हैं। ये हवाएं उनके रास्ते में आने वाले पेड़ों, बिजली-टेलीकॉम के टॉवर, कमजोर मकानों और गाड़ियों को भी तबाह कर सकती हैं।
समुद्र में ऐसे बनते हैं चक्रवात
चक्रवात समुद्र के गर्म पानी के ऊपर बनते हैं। समुद्री सतह का तापमान बढ़ने पर उसके ऊपर मौजूद हवा गर्म और नम होने की वजह से ऊपर उठती है। इससे उस हवा का एरिया खाली हो जाता है और नीचे की तरफ हवा का प्रेशर कम हो जाता है। इस खाली जगह को भरने के लिए आसपास की ठंडी हवा वहां पहुंचती है। इसके बाद ये नई हवा भी गर्म और नम होकर ऊपर उठती है। इस तरह ऐसी प्रक्रिया की साइकिल शुरू हो जाती है, जिससे बादल बनने लगते हैं। पानी के भाप में बदलने से और भी बादल बनने लगते हैं। इससे एक स्टॉर्म साइकिल या तूफानी चक्र बनता जाता है। स्टॉर्म सिस्टम के तेजी से घूमने की वजह से उसके सेंटर में एक आई बनता है। तूफान के आई को उसका सबसे शांत इलाका माना जाता है, जहां एयर प्रेशर सबसे कम होता है।
- ये स्टॉर्म सिस्टम हवा की स्पीड 62 किलोमीटर प्रति घंटा होने तक ट्रॉपिकल स्टॉर्म कहलाते हैं। हवा की रफ्तार 120 किलोमीटर प्रति घंटा पहुंचने पर ये स्टॉर्म साइक्लोन बन जाते हैं।
साइक्लोन और स्टॉर्म में ये अंतर है
स्ट्रॉर्म या तूफान वातावरण में एक तरह का विक्षोभ (डिस्टर्बेंस) होता है, जो तेज हवाओं के जरिए सामने आता है और उसके साथ बारिश, बर्फ या ओले पड़ते हैं। जब ये पृथ्वी पर होते हैं तो आम तूफान (स्टॉर्म) कहलाते हैं, लेकिन समुद्र से उठने वाले स्टॉर्म को साइक्लोन (चक्रवात) कहते हैं। साइक्लोन आम स्टॉर्म से ज्यादा तीव्र और खतरनाक होते हैं। साइक्लोन, हरिकेन और टाइफून तीनों एक ही चीज होते हैं और इन्हें ट्रॉपिकल साइक्लोन भी कहा जाता है। दुनियाभर में साइक्लोन को अलग-अलग नामों से बुलाया जाता है। जैसे उत्तरी अमेरिका और कैरेबियन आइलैंड में बनने वाले साइक्लोन को हरिकेन, फिलीपींस, जापान और चीन में आने वाले साइक्लोन को टाइफून और ऑस्ट्रेलिया और हिंद महासागर यानी भारत के आसपास आने वाले तूफान को साइक्लोन कहा जाता है। वहीं टॉरनेडो भी भयानक तूफान होते हैं, लेकिन ये साइक्लोन नहीं होते हैं क्योंकि ये समुद्र के बजाय ज्यादातर धरती पर ही बनते हैं। टॉरनेडो सबसे ज्यादा अमेरिका में आते हैं।
कैसे तय होता है चक्रवात खतरनाक है या हल्का ?
समुद्र में लगभग सालभर साइक्लोन बनते हैं, लेकिन ये सभी खतरनाक नहीं होते हैं। इनमें से जो साइक्लोन धरती की ओर बढ़ते हैं वही खतरनाक होते हैं। साइक्लोन को स्पीड के हिसाब से 5 कैटेगरी में बांटा जाता है।
साइक्लोनिक स्टॉर्म
इसमें हवा की अधिकतम स्पीड 62 से 88 किलोमीटर प्रति घंटे होती है। ये साइक्लोन का सबसे कम घातक रूप होता है।
सीवियर साइक्लोन
इस साइक्लोन में हवा की स्पीड 89 से 120 किलोमीटर प्रति घंटे तक होती है। ये समुद्र में मौजूद नावों या जहाजों के लिए खतरनाक होते हैं।
वेरी सीवियर साइक्लोन
हवा 118 से 165 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाले साइक्लोन सीवियर कहलाते हैं। ये साइक्लोन जमीन की ओर बढ़ने पर जान-माल को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
एक्स्ट्रीमली सीवियर साइक्लोन
ये बेहद घातक होते हैं, इनमें हवाओं की स्पीड 166-220 किलोमीटर प्रति घंटे होती है। ये जमीन पर पहुंचने पर बड़ी तबाही ला सकते हैं।
सुपर साइक्लोन
इसमें हवा की स्पीड 220 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा होती है, जो कई बार 300-400 किलोमीटर घंटे से भी ज्यादा हो सकती है। ये रास्ते में आने वाले पेड़ों, टॉवर, गाड़ियों और यहां तक बिल्डिंगों को भी तबाह कर सकते हैं।
औसतन कितने दिन तक चलते हैं साइक्लोन, समय के साथ धीमे क्यों पड़ जाते हैं ?
समुद्र से जमीन पर पहुंचने के कुछ घंटों या 1-2 दिन बाद साइक्लोन आमतौर पर कमजोर पड़ने लगते हैं, क्योंकि उन्हें गर्म समुद्री पानी से मिलने वाली एनर्जी और नमी मिलना बंद हो जाती है। हालांकि तब भी कई बार साइक्लोन जमीन में काफी दूर तक सफर तय करते हैं और अपने साथ तेज बारिश और हवा लाते हैं, जिससे भारी तबाही होती है। साइक्लोन वैसे तो कई दिनों या हफ्तों तक जारी रह सकता है, लेकिन बड़े जमीनी इलाके या ठंडे समुद्र के ऊपर से गुजरने के साथ ही ये धीमे पड़ने लगते हैं और खत्म हो जाते हैं। बिपरजॉय साइक्लोन के 10 दिनों तक रहने की संभावना है। वहीं जमीन से टकराने के अगले ही दिन से कमजोर पड़ जाएगा।
बिपरजॉय चक्रवात कहां से उठा और भारत में क्या असर होगा ?
चक्रवात बिपरजॉय 6 जून 2023 को अरब सागर में उठा था। शुरुआती 6 दिनों तक ये कराची की तरफ बढ़ रहा था, लेकिन अब रास्ता बदलकर गुजरात की तरफ बढ़ रहा है। फिलहाल इसके बढ़ने की रफ्तार 9 किलोमीटर प्रति घंटा है। मौसम विभाग का अनुमान है कि 15 जून को बिपरजॉय के गुजरात के तटीय इलाकों से टकराएगा। 16 जून के बाद इस चक्रवात के धीमा पड़कर बेअसर होने की संभावना है। बिपरजॉय हाल के दिनों में अब तक का सबसे लंबे समय तक रहने वाला तूफान है। समुद्र के ऊपर एक चक्रवाती तूफान जितने अधिक समय तक रहता है, उसमें उतनी ही ज्यादा ऊर्जा और नमी जमा होने की संभावना होती है। जिससे तूफान के और अधिक ताकतवर होने और जमीन से टकराने के बाद ज्यादा तेज हवाओं के साथ भारी बारिश से जान-माल के ज्यादा नुकसान की संभावना बढ़ जाती है।
गुजरात में ये नुकसान की आशंका
बिपरजॉय के 15 जून को गुजरात के तटीय इलाकों से टकराने के बाद 8 जिलों में नुकसान पहुंचने की आशंका है। अनुमान है कि तेज हवा और भारी बारिश से छप्पर-झोपड़ी वाले घर पूरी तरह तबाह हो जाएंगे। कच्चे घरों को भारी डैमेज होगा और पक्के मकानों को भी कुछ नुकसान हो सकता है। बिजली के खंभे और कम्युनिकेशन टॉवर्स झुक सकते हैं या पूरी तरह उखड़ सकते हैं। कच्ची और पक्की सड़कें डैमेज हो जाएंगीं। रेलवे परिवहन, बिजली के तारों और सिग्ननलिंग सिस्टम में बाधा हो सकती है। खड़ी फसलों को व्यापक नुकसान होगा। फलदार पेड़ पूरी तरह झड़ जाएंगे। समुद्र में किनारों से बंधी छोटी नावें और स्टीमर बह सकते हैं।
कैसे नाम पड़ा बिपरजॉय
18वीं सदी तक साइक्लोन के नाम कैथोलिक संतों के नाम पर रखे जाते थे। 19वीं सदी में साइक्लोन के नाम महिलाओं के नाम पर रखे जाने लगे। 1979 से इन्हें पुरुष नाम भी देने का चलन शुरू हुआ। 'बिपरजॉय' बांग्ला भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है 'आपदा'। इस खतरनाक होते तूफान को बिपरजॉय नाम बांग्लादेश द्वारा दिया गया है।
चक्रवातों के नाम कौन और कैसे रखे जाते हैं
विश्व मौसम संगठन (WMO) और यूनाइटेड नेशंस इकोनॉमिक एंड सोशल कमिशन फॉर द एशिया पैसिफिक (ESCAP) ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र के तूफानों के नामकरण की प्रक्रिया 2000 से शुरू की। अभी साइक्लोन के नाम रखने का काम दुनियाभर में मौजूद 6 विशेष मौसम केंद्र यानी रीजनल स्पेशलाइज्ड मेट्रोलॉजिकल सेंटर्स (RSMCS) और 5 चक्रवाती चेतावनी केंद्र यानी ट्रॉपिकल साइक्लोन वॉर्निंग सेंटर्स (TCWCS) करते हैं। RSMSC और TCWCS चक्रवात और तूफानों को लेकर अलर्ट जारी करने और नामकरण में भूमिका निभाते हैं।
इन समुद्री इलाकों के नाम रखता है IMD
भारतीय मौसम विभाग (IMD) भी RSMCS के 6 सदस्यों में शामिल हैं, जो चक्रवात और आंधी को लेकर एडवाइजरी जारी करता है। IMD हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर इलाके में आने वाले साइक्लोन के नाम रखने और इस इलाके के 13 अन्य देशों को अलर्ट करने का काम करता है। हिंद महासागर के इलाकों में आने वाले साइक्लोन के नाम रखने के फॉर्मूले पर 2004 में सहमति बनी थी। पहले इसमें 8 देश-भारत, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल थे, 2018 में इसमें ईरान, कतर, सऊदी अरब, यूएई और यमन भी शामिल हुए, जिन्हें मिलाकर इनकी संख्या 13 हो गई।
65 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा रफ्तार वाले साइक्लोन का नाम रखना जरूरी
साइक्लोन के नाम इसलिए रखे जाते हैं, ताकि उनकी पहचान करना आसान हो। हर साल साइक्लोन के नाम अल्फाबेटकली क्रम में यानी A से Z तक तय होते हैं। एक नाम का दोबारा इस्तेमाल कम से कम 6 साल बाद ही हो सकता है। साइक्लोन का नाम कौनसा देश रखेगा, इसका फैसला उस देश नाम से अल्फाबेटकली तय होता है। आने वाले साइक्लोन का नाम सितरंग थाईलैंड ने दिया है। हिंद महासागर इलाके में आने वाले साइक्लोन के हुदहुद, तितली, फेथाई, फानी, वायु और अम्फान जैसे नाम दिए जा चुके हैं। हर साइक्लोन का नाम नहीं रखा जाता है। केवल 65 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ज्यादा वाले साइक्लोन का नाम रखना जरूरी होता है।
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दुनिया में अब तक के ये 5 सबसे खतरनाक तूफान
सबसे घातक साइक्लोन था भोला
ये तूफान पूर्वी पाकिस्तान यानी वर्तमान बांग्लादेश में साल 1970 में आया था। ये भारत ही नहीं दुनिया का सबसे घातक साइक्लोन था। इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इस तूफान में करीब 5 लाख लोगों की जान चली गई थी। बंगाल की खाड़ी में इस तूफान की शुरुआत 8 नवंबर 1970 को हुई थी और 12 नवंबर को पूर्वी पाकिस्तान में पहुंच गया। इसके बाद तूफान ने भयानक कहर बरपाया।
हूगली रिवर साइक्लोन
इस तूफान की वजह से करीब साढ़े 3 लाख लोगों की मौत हुई थी। इस तूफान को इतिहास के सबसे खतरनाक साइक्लोन में गिना जाता है। 1737 में आए इस तूफान ने कोलकाता में भारी तबाही मचाई थी।
हैपोंग टाइफून
इस तूफान की शुरुआत वियतनाम में 27 सितंबर 1881 को हुई थी, लेकिन इसने 8 अक्टूबर को सबसे अधिक तबाही मचाई थी। इसकी वजह से करीब 3 लाख लोगों की मौत हो गई थी।
कोरिंगा साइक्लोन
ये तूफान भारत के आंध्र प्रदेश के कोरिंगा में 25 नवंबर 1839 को आया था। इस तूफान के कारण समुद्र में 40 फीट ऊंची लहरें उठ रही थीं। इसकी वजह से करीब 25 हजार जहाज बर्बाद हो गए थे।
बैकरगंज साइक्लोन
बैकरगंज चक्रवाती तूफान ने 29 अक्टूबर से 1 नवंबर 1876 तक भारी तबाही मचाई थी। इस तूफान में करीब 2 लाख लोगों की मौत हो गई थी। इस दौरान पानी की तेज रफ्तार में कई लोग बह गए थे, जबकि कई लोगों को भुखमरी का शिकार होना पड़ा था।