NEW DELHI. राज्यसभा चुनाव के रिजल्ट ने हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार के भविष्य को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ( Sukhwinder Singh Sukhu ) के इस्तीफे की पेशकश की खबरें भी उड़ीं, जिसे उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया। हालांकि, जिस प्रकार पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी आक्रमक होकर राजनीति कर रही है, उससे यह साफ है कि सुक्खू सरकार से संकट टला नहीं है या यूं कहें कि उसके सामने संकट आ कर खड़ा हो गया है, जिससे सुक्खू सरकार का सामना होकर ही रहेगा। आइए, हम आपको बताते हैं कि सीएम सुक्खू के पास कितने विकल्प हैं अपनी सरकार को बचाए रखने के लिए।
हर हाल में विरोधी गुट को मना लेना ही बेहतर
- कांग्रेस के लिए राहत की बात है कि वह हिमाचल में मैदान से बाहर नहीं हुई है। अभी बागी गुट कांग्रेस नेतृत्व के नेटवर्क की जद में है। थोड़े गंभीर प्रयास से बात बन सकती है। हालांकि मध्य प्रदेश और कर्नाटक के मुकाबले हिमाचल में कांग्रेस की स्थिति थोड़ी सी ही सही है, इसे बेहतर भी कह सकते हैं।
- हिमाचल प्रदेश में सरकार बचाने के लिए कांग्रेस आलाकमान के पास फिलहाल एक ही विकल्प है, जैसे भी संभव हो वो हर हाल में वीरभद्र सिंह के परिवार को मना ले। अगर अतिरिक्त प्रयास की जरूरत हो तो कांग्रेस की वो भी कोशिश होनी चाहिए।
- और प्रयास का लेवल भी वही होना चाहिए, जैसा बीजेपी की तरफ से राज्यसभा की एकमात्र सीट जीतने को लेकर हुई थी। हर्ष महाजन को राज्यसभा भेज पाना बीजेपी के लिए काफी मुश्किल था। नंबर का फासला भी बहुत बड़ा था और कांग्रेस उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी के सामने कोई सीधा खतरा नहीं था। बीजेपी ने उंगली टेढ़ी की और पूरा घी निकाल लिया। घी भी इतना निकल चुका है जिससे लोकसभा चुनाव 2024 में हिमाचल प्रदेश की चारों सीटें फिर से हासिल की जा सकें, और सत्ता पर कब्जा भी जमाया जा सके।
- कांग्रेस की तरफ से असंतुष्टों को ऐसी पेशकश होनी चाहिए, जो बीजेपी भी देने की स्थिति में ना हो और विधायकों को भी जो सपने दिखाए गए हों, वो बीजेपी के किसी भी ऑफर पर भारी पड़ना चाहिए।
- प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह के मंत्रीमंडल से इस्तीफे के बाद तो बिलकुल साफ हो गया कि हालात कांग्रेस की पकड़ से काफी आगे निकल चुके हैं। कांग्रेस को तो ये संकेत तभी समझ लेने चाहिए थे जब विक्रमादित्य सिंह ने राम मंदिर उद्घाटन समारोह में शामिल होने का ऐलान किया था और अयोध्या जाकर समारोह में शामिल भी हुए।
- ये ठीक है कि राहुल गांधी ने कांग्रेस के स्टैंड में भूल सुधार भी कर लिया था। पहले कांग्रेस के बयान में कहा गया था कि पार्टी का कोई भी नेता अयोध्या नहीं जाएगा, बाद में राहुल गांधी ने कह दिया कि जिसकी श्रद्धा हो वो जा सकता है। विक्रमादित्य सिंह की ही तरह निर्मल खत्री और आचार्य प्रमोद कृष्णम भी गए ही और अब तो विक्रमादित्य सिंह भी आचार्य प्रमोद कृष्णम के रास्ते पर ही बढ़ते दिखाई दे रहे हैं।
- हिमाचल प्रदेश में चल रहे सियासी तूफान के बीच मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू वास्तव में इस्तीफे की पेशकश किए होते तो विक्रमादित्य सिंह के इस्तीफे के बाद डैमेज कंट्रोल की कोशिश मानी जाती। सुक्खू की पेशकश को वीरभद्र सिंह परिवार और बाकी नाराज विधायकों को मनाने की कोशिश के रूप में ही देखा जा सकता था।
कांग्रेस का ऑफर BJP से बहुत बड़ा हो तभी कारगर
- हिमाचल प्रदेश में बीजेपी विक्रमादित्य सिंह या प्रतिभा सिंह को एकनाथ शिंदे की तरह मुख्यमंत्री पद का ऑफर दे सकती है और ऐसा ही ऑफर देकर कांग्रेस बागियों को समझा सकती है कि कांग्रेस में बने रहते उनकी पोजीशन बहुत बेहतर रहेगी, बल्कि बीजेपी में चले जाने के बाद की स्थिति के।
- ऐसे नाजुक समय में कांग्रेस की तरफ से वीरभद्र सिंह परिवार को कोई मजबूत संदेश दिया जाना जरूरी हो गया है। संदेश ऐसा कि प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य सिंह के सामने नेतृत्व परिवर्तन जैसी कोई उम्मीद की किरण नजर आए और वे आगे की रणनीति पर फिर से विचार कर सकें।
- यह भी जरूरी है कि कांग्रेस का ऑफर हर हाल में बीजेपी से बहुत बड़ा होना चाहिए और ये सिर्फ प्रतिभा सिंह या विक्रमादित्य सिंह को मुख्यमंत्री बना दिया जाना भर ही नहीं है। क्रॉसवोटिंग करने वाले विधायकों को भी संतुष्ट करना उतना ही जरूरी है।
- बेशक ये डील काफी मुश्किल और चुनौतीपूर्ण है, लेकिन समय की डिमांड भी यही है। हालांकि, डील करते वक्त ये भी ध्यान रखना जरूरी होगा कि बैलेंस भी बना रहे। कहीं ऐसा ना हो कि प्रतिभा सिंह को मनाने के चक्कर में कांग्रेस की तरफ से ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि आने वाले दिनों में सुक्खू ही एकनाथ शिंदे बनने को मजबूर हो जाएं।
- अगर अभी कोई समाधान निकल भी जाए, तो कांग्रेस नेतृत्व को ऐसे विकल्पों पर भी विचार करना होगा, जो कांग्रेस के दोनों पक्षों को मंजूर हो। जैसे सुक्खू की जगह लेने के मामले में कांग्रेस नेता राजेंद्र राणा और डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री के नाम की चर्चा है। ये दोनों भी ठीक ना लगें तो कांग्रेस नेतृत्व किसी और के नाम पर भी विचार और पेशकश कर सकता है।
सबक न लेना और नेतृत्व की कमजोरी का नतीजा
- हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस नेतृत्व बुरी तरह फंसा है। जैसे बीते दिनों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में देखने को मिलता था। अशोक गहलोत अपनी काबिलियत से राजस्थान में अपनी सरकार पांच साल चला लिए, लेकिन मध्य प्रदेश में कमलनाथ तो चूक ही गए और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का झगड़ा चुनावों में भारी पड़ा।
- हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का उलटा एक्सपेरिमेंट किया था। 2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट और टीएस सिंह देव की नाराजगी को दरकिनार कर क्रमशः कमलनाथ, अशोक गहलोत और भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाया था।
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व को सुखविंदर सिंह सुक्खू में ज्योतिरादित्य और सचिन पायलट की छवि दिखी और वहां प्रतिभा सिंह को नजरअंदाज कर फैसला लिया। हालांकि कांग्रेस हाईकमान का फैसला उचित ही था, लेकिन उसके बाद की स्थितियों को संभालने की कोई कोशिश नहीं की गई, जबकि ये सबको पता था कि सुक्खू के विरोधियों के मन में आग धधक रही है। - और कहां, विक्रमादित्य सिंह और उनके समर्थकों को संतुष्ट करने की कोशिश होती, सुक्खू ने उनको मिले दो में से एक मंत्रालय भी छीन लिया। ये फैसला तो नाराजगी बढ़ाने वाला ही था, क्योंकि प्रतिभा सिंह अपने समर्थक विधायकों को मंत्री बनाना चाह रही थीं।
कांग्रेस के सामने हिमाचल प्रदेश में बड़े ही सीमित और मुश्किल विकल्प ही बचे हैं, और समय तेजी से निकलता जा रहा है। वहीं बीजेपी अपनी रणनीति के तहत किसी भी स्तर पर जाकर सत्ता में काबिज होने कोई कसर नहीं छोड़ेगी। जानकार मानते हैं कि कांग्रेस हिलाहवाली करती रहे तो अभी जो हादसा जैसा लग रहा है, इसके हकीकत बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।