सिद्धार्थ ने 29 की उम्र में घर छोड़ा, 6 साल बाद बुद्ध बने, पूर्णिमा ये तीन बातें जुड़ीं, किसी ने मौत का पूछा तो बुद्ध खामोश रहे

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Neha Thakur
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सिद्धार्थ ने 29 की उम्र में घर छोड़ा, 6 साल बाद बुद्ध बने, पूर्णिमा ये तीन बातें जुड़ीं, किसी ने मौत का पूछा तो बुद्ध खामोश रहे

BHOPAL. मई में वैशाख महीने में आने वाली पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं। बुद्ध पूर्णिमा महोत्सव एशिया भारत समेत तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया, थाइलैंड, चीन, कोरिया, वियतनाम, कंबोडिया आदि में खास तौर पर मनाया जाता है। ये दिन 3 वजहों से भी खास है। क्योंकि इसी दिन राजकुमार सिद्धार्थ का जन्म लुंबिनी में हुआ। वहीं इसी दिन बुद्ध को बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। बुद्ध एक महान धर्म प्रचारक थे और इन्होंने ही बौद्ध धर्म की स्थापना की थी। इनके विचार बहुत ही प्रेरक और सही मार्ग पर चलने की सीख देते हैं। इनका मानना था कि आप चाहें जितनी किताबें पढ़ लें, कितने भी अच्छे प्रवचन सुन लें, उनका कोई फायदा नहीं होगा, जब तक कि आप उनको अपने जीवन में नहीं अपनाते। बुद्ध का महापरिनिर्वाण भी पूर्णिमा के दिन ही हुआ था।





विष्णु की भक्ति का है विशेष महत्व





धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सनातन धर्म में वैशाख माह को भगवान विष्णु की भक्ति के लिए उत्तम माना जाता है। इस दिन हजारों श्रद्धालु पवित्र तीर्थ स्थलों में स्नान, दान कर पुण्य अर्जित करते हैं। पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्त्व है। वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा या पीपल पूर्णिमा कहा जाता है। प्रत्येक माह की पूर्णिमा जगत के पालनकर्ता श्रीहरि विष्णु भगवान को समर्पित होती है। इसी दिन भगवान बुद्ध की जयंती और निर्वाण दिवस भी बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है।





तीन तिथियों का बढ़ा धार्मिक महत्व





स्कन्द पुराण के अनुसार वैशाख पूर्णिमा का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि वैशाख मास को ब्रह्मा जी ने सभी महीनों में उत्तम सिद्ध किया है। अतः यह महीना भगवान विष्णु को अति प्रिय है। वैशाख के शुक्ल पक्ष त्रयोदशी से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियां 'पुष्करणी' कही गई हैं। इनमें स्नान, दान-पुण्य करने से पूरे माह स्नान का फल मिल जाता है। पूर्व काल में वैशाख मास की एकादशी तिथि को अमृत प्रकट हुआ, द्वादशी को भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की, त्रयोदशी को श्रीहरी ने देवताओं को सुधापान कराया तथा चतुर्दशी को देवविरोधी दैत्यों का नाश किया। वैशाख की पूर्णिमा के दिन ही समस्त देवताओं को उनका साम्राज्य प्राप्त हो गया। अतः सभी देवताओं ने प्रसन्न होकर इन तीन तिथियों को वर दिया -'वैशाख मास की ये तीन शुभ तिथियां मनुष्य के समस्त पापों का नाश करने वाली तथा सब प्रकार के सुख प्रदान करने वाली हों'।





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वैशाख पूर्णिमा या बुद्ध पूर्णिमा का महत्व





बुद्ध पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान और पूजा-पाठ का विषेश महत्व होता है। इससे व्यक्ति को जीवन में तरक्की मिलती है और वह खूब आगे बढ़ता है। इस दिन अगर आप किसी कारणवश नदी में स्नान न कर पाएं तो पानी में थोड़ा-सा गंगाजल डालकर स्नान करना चाहिए। साथ ही इस दिन यथा शक्ति कुछ न कुछ दान भी जरूर करना चाहिए।  इसके अलावा अगर आपसे अनजाने में कोई पाप हो गया है तो इस दिन चीनी और तिल का दान देने से इस पाप से छुटकारा मिल जाता है।





बुद्ध का जन्म और शिक्षा





गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 563 साल पहले नेपाल के लुम्बिनी वन में हुआ। उनकी माता कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी जब अपने नैहर देवदह जा रही थीं, तो उन्होंने रास्ते में लुम्बिनी वन में बुद्ध को जन्म दिया। वैसे तो सिद्धार्थ ने कई विद्वानों को अपना गुरु बनाया, किंतु गुरु विश्वामित्र के पास उन्होंने वेद और उपनिषद् पढ़े, साथ ही राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली। कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हांकने में कोई उनकी बराबरी नहीं कर सकता था।





बुद्ध का विवाह





शाक्य वंश में सिद्धार्थ का जन्म हुआ था। 16 वर्ष की उम्र में उनका विवाह दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ हुआ। राजा शुद्धोदन ने सिद्धार्थ के लिए भोग-विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया। तीन ऋतुओं के लायक तीन सुंदर महल बनवा दिए। वहां पर नाच-गान और मनोरंजन की सारी सामग्री जुटा दी गई। दास-दासी उसकी सेवा में रख दिए गए। पर ये सब चीजें सिद्धार्थ को संसार में बांधकर नहीं रख सकीं। एक रात अपनी पत्नी यशोधरा और बेटे राहुल को देख उनके मस्तक पर हाथ रखा और धीरे से महल से बाहर निकल कर घोड़े पर सवार हो गए। रातोंरात वह 30 की उम्र में गोरखपुर के नजदीक अमोना नदी के तट पर जा पहुंचे और अपने राजसी वस्त्र उतार कर, अपने केश काटकर संन्यासी बन गए।





बुद्ध का महापरिनिर्वाण





सुजाता नाम की एक महिला ने वटवृक्ष से मन्नत मांगी थी कि मुझको यदि पुत्र हुआ तो खीर का भोग लगाऊंगी। उसकी मन्नत पूरी हो गई तब वह सोने की थाल में गाय के दूध की खीर लेकर वटवृक्ष के पास पहुंची और देखा की सिद्धार्थ उस वट के नीचे बैठे तपस्या कर रहे हैं। सुजाता ने इसे अपना भाग्य समझा और सोचा कि वटदेवता साक्षात हैं तो सुजाता ने बड़े ही आदर-सत्कार के साथ सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा 'जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई है यदि तुम भी किसी मनोकामना से यहां बैठे हो तो तुम्हारी मनोकामना भी पूर्ण होगी।' वैशाख पूर्णिमा के दिन यानी बुद्ध के जन्म हुआ, पूर्णिमा के दिन ही ज्ञान प्राप्त हुआ और पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध को महापरिनिर्वाण मिला यानी देह छोड़ दी। देह छोड़ने के पूर्व उनके अंतिम वचन थे 'अप्प दिपो भव:...सम्मासती यानी अपना दीपक खुद बनो...' स्मरण करो कि तुम भी एक बुद्ध हो। हिन्दुओं के लिए वैशाख पूर्णिमा का दिन पवित्र माना जाता है।



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