सावन का महीना 25 जुलाई से शुरु हो रहा है। यह माह शिव भक्तों के लिए बहुत ही खास माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि अगर आप इस माह पूर्णतः विधि-विधान के साथ भगवान भोलेनाथ की भक्ति करते हैं तो आपको मनवांछित फल की प्राप्ति होगी। भगवान शिव को समर्पित सावन माह में चारों ओर शिव की भक्ति देखने को मिलती है। हम सभी जानते हैं कि शिवलिंग के ऊपर एक कलश रखा जाता है, जिसमें से निरंतर बूंद-बूंद पानी की बूंदे नीचे रखे शिवलिंग पर टपकती रहती हैं। इसके अलावा शिवलिंग से निकली जल निकासी नलिका, जिसे जलाधारी कहा जाता है, उसे भी परिक्रमा के दौरान लांघा नहीं जाता है। इतना सब जान लेने के बाद अब आपके भी मन में ये सवाल तो पैदा होता ही होगा कि आखिर कि हर शिवलिंग के ऊपर रखे कलश से बूंद-बूंद पानी गिरने का रहस्य क्या है एवं परिक्रमा के दौरान आखिर जलाधारी को लांघा क्यों नहीं जाता? आइए जानते है इसके पीछे का कारण
शिव को पसंद है अभिषेक
इन दोनों कारणों का संबंध समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है। दरअसल, समुद्र मंथन के दौरान निकले हलाहल विष को पीने के बाद महादेव का गला नीला पड़ गया था और उनके शरीर में बहुत ज्यादा जलन हो रही थी। उनका मस्तक गर्म हो गया था। तब उनके सिर और माथे को ठंडक पहुंचाने के लिए उनके ऊपर जल चढ़ाया गया। ऐसा करने से भगवान महादेव के शरीर को थोड़ी ठंडक मिली। तभी से महादेव को जलाभिषेक अत्यंत प्रिय है। इसीलिए महादेव के भक्त उनकी पूजा के दौरान जलाभिषेक जरूर करते हैं और यही कारण है कि शिव जी को ठंडक पहुंचाने के लिए शिवलिंग के ऊपर बूंद-बूंद टपकने वाला कलश रखा जाता है।
जलधारी को लांघना पाप
वहीं अब जलधारी की बात करें तो परिक्रमा के दौरान इसे भी लांघना नहीं चाहिए। इस बात से तो आप भी परिचित होंगे कि सभी मंदिरों की और देवताओं की पूरी परिक्रमा की जाती है लेकिन शिवलिंग की चंद्राकार परिक्रमा की जाती है। यानी शिव के भक्त उनके जलाधारी को लांघते नहीं, वहीं से वापस लौट आते हैं। शास्त्रों में जलाधारी को लांघना पाप माना जाता है।