सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव की आज 553वीं जयंती, इंदौर भी आए थे और बेटमा में लोगों की पानी की समस्या सुलझाई थी

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Rahul Garhwal
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सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव की आज 553वीं जयंती, इंदौर भी आए थे और बेटमा में लोगों की पानी की समस्या सुलझाई थी

BHOPAL. आज सिखों के पहले गुरु और सिख धर्म से संस्थापक गुरु नानक देव की जयंती है। हर साल कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को गुरु नानक देव की जयंती मनाई जाती है। इसे सिखों का गुरु पर्व और प्रकाश पर्व भी कहा जाता है। गुरु पर्व पर गुरुद्वारों में भजन-कीर्तन होता है और प्रभात फेरियां निकाली जाती हैं। गुरुद्वारों में लंगर का आयोजन किया जाता है।





गुरु नानक देव का जन्म





गुरु नानक देव का जन्म 1469 में पंजाब के तलवंडी में हुआ था। गुरु नानक जी की माता का नाम तृप्ता और पिता का नाम कल्याणचंद था। तलवंडी अब पाकिस्तान में है। इसे ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। सिखों के लिए ये पवित्र स्थल है। गुरु नानक बचपन से ही अपना ज्यादातर वक्त चिंतन करते हुए बिताते थे। उन्हें सांसारिक बातों से मोह नहीं था। गुरु नानक, संत, गुरु और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपना सारा जीवन मानव हित में समर्पित कर दिया।





16 साल की उम्र में हो गई थी गुरु नानक की शादी





सिख धर्म में माना जाता है कि गुरु नानक बचपन से ही अद्भुत शक्तियों के धनी थे। उन्होंने अपनी बहन नानकी से काफी कुछ सीखा। सिर्फ 16 साल की उम्र में गुरु नानक की शादी सुलक्खनी से हो गई। सुलक्खनी पंजाब के गुरदासपुर के लाखौकी में रहती थीं। गुरु नानक देव के दो बेटे हुए। श्रीचंद और लख्मीचंद। दोनों बेटों के जन्म के कुछ दिन बाद ही गुरु नानक तीर्थ यात्रा पर चले गए।





गुरु नानक देव ने 1521 तक की यात्राएं





गुरु नानक देव ने कई यात्राएं कीं। वे मरदाना, लहना, बाला और रामदास भी गए। यात्रा के दौरान वे उपदेश देते और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लोगों को जागरुक करते रहे। उन्होंने भारत, अरब, अफगानिस्तान सहित कई जगहों पर भ्रमण किया। पंजाबी में गुरु नानक की यात्राओं को उदासियां कहते हैं।





मध्यप्रदेश के इंदौर आए थे गुरु नानक देव





सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव अपनी दूसरी यात्रा के दौरान इंदौर बेटमा और ओंकारेश्वर आए थे। वे दक्षिण से होते हुए इंदौर पहुंचे थे। यहां गुरु नानक ने कान्ह नदी के इमली के पेड़ के नीचे आचन लगाकर शबद सुनाया। इसलिए जब यहां गुरुद्वारा बनाया गया तो उसका नाम इमली साहिब रखा गया। पुरातन कथाओं के अनुसार इस जगह को राजा गोपीचंद की नगरी के नाम से जाना जाता था। यहां भीलों का आतंक था। गुरु नानक ने यहां अहिंसा का संदेश दिया। उनके आने से बावड़ी का खारा पानी मीठा हो गया। गुरुद्वारे का नाम बावड़ी साहिब रखा। बेटमा में गड़रिए रहते थे। उन्होंने गुरु नानक का आदर-सत्कार किया और उपदेश सुने। लोगों ने गुरु नानक को पानी की समस्या के बारे में बताया। गुरु नानक ने कहा कि धन्ना करतार कहकर कुदाली से जमीन खोदो। लोगों ने ऐसा ही किया और वहां मीठे पानी का झरना फूट पड़ा। इसके बाद लोगों की पानी की समस्या दूर हो गई थी। बताया जाता है कि गुरु नानक यहां 6 महीने ठहरे थे।





दूसरी यात्रा के दौरान ओंकारेश्वर में नर्मदा किनारे पहुंचे थे गुरु नानक





गुरु नानक देव दूसरी यात्रा के दौरान इंदौर से 80 किलोमीटर दूर ओंकारेश्वर में नर्मदा के किनारे आए थे। यहां उन्होंने लोगों को ओंकार की उपमा बताई थी। उन्होंने राग रामकली में ओंकार नामक वाणी का उच्चारण किया था। आपको बता दें कि गुरु नानक देव भोपाल के ईदगाह हिल्स और उज्जैन में शिप्रा नदी के पास उदासियों के अखाड़े में भी पधारे थे। उन्होंने हर जगह ईश्वर एक है का उपदेश दिया।





22 सितंबर 1539 को दुनिया से चले गए गुरु नानक





गुरु नानक देव ने ने अपनी यात्राओं के दौरान कई जगह डेरा जमाया। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया। उन्होंने मूर्तिपूजा को निरर्थक माना और रूढ़िवादी सोच का विरोध किया। गुरु नानक देव ने अपना आखिरी वक्त पाकिस्तान के करतारपुर में बिताया। 22 सितंबर 1539 को वे दुनिया से चले गए और दुनिया को इक ओंकार सतनाम का संदेश दे गए।



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