आज संत रविवास की 645वीं जयंती है। पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ जयंती मनाई जा रही है। संत रविदास का जन्म माघ महीने की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। इसी कारण हर साल माघ महीने की पूर्णिमा तिथि पर संत रविदास की जयंती मनाई जाती है। 15वीं शताब्दी को उत्तर प्रदेश के वाराणसी (गोबर्धनपुर गांव) में इनका जन्म हुआ था। माघ मास की पूर्णिमा को जन्म लेने के कारण नाम रविदास रखा गया। यूपी, मप्र, राजस्थान में इन्हें रैदास के नाम से जाना जाता है। गुजरात और महाराष्ट्र में लोग रोहीदास के नाम से जानते हैं। जबकि बंगाल के कई इलाकों में रुईदास पुकारना चलन में है।
भक्ति में कर दिया खुद को समर्पित: रविदास जी चर्मकार कुल से थे। इसी वजह से वे जूते बनाते थे। उन्हें ऐसा करने में बेहद खुशी मिलती थी। इस काम में वे अपना तन-मन लगा देते थे। रविदास जी का मानना था कि कोई भी व्यक्ति अपने जन्म के कारण छोटा या बड़ा नहीं होता है। आदमी के कर्म उसे बड़ा बनाते हैं। व्यक्ति के कर्म ही उसे ऊंचा या नीचा बनाते हैं। बचपन के दिनों में रविदास का सामाजिक भेदभाव से भी सामना हुआ, उन्होंने झेला भी। लेकिन उन्होंने हमेशा दूसरों को प्रेम का पाठ पढ़ाया।
रविदास के विचार
- कभी भी अपने अंदर अभिमान को जन्म न दें। एक छोटी सी चींटी शक्कर के दानों को बीन सकती है लेकिन एक विशालकाय हाथी ऐसा नहीं कर सकता है।
रविदास जी के दोहे
मन चंगा तो कठौती में गंगा
अर्थ- यदि आपका मन पवित्र है तो साक्षात् ईश्वर आपके हृदय में निवास करते हैं।
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा। वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
अर्थ – रविदास जी के इस दोहे का मतलब है कि राम, कृष्ण, हरी, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग अलग नाम है।
रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम।
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम।
अर्थ– रैदास जी कहते हैं कि जिसके हृदय मे रात दिन राम समाये रहते है, ऐसा भक्त राम के समान है, उस पर न तो क्रोध का असर होता है और न ही काम भावना उस पर हावी हो सकती है।
रविदास’ जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच।
नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।
अर्थ– रविदास जी कहते हैं कि मात्र जन्म के कारण कोई नीच नहीं बन जाता हैं परन्तु मनुष्य को वास्तव में नीच केवल उसके कर्म बनाते हैं।
हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस। ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।
अर्थ – हरी के समान बहुमूल्य हीरे को छोड़ कर अन्य की आशा करने वाले अवश्य ही नरक जायेगें। यानि प्रभु भक्ति को छोड़ कर इधर-उधर भटकना व्यर्थ है।