BHOPAL. दीपावली का त्योहार 5 दिन मनाया जाता है। यह धनतेरस के उत्सव के साथ शुरू होता है, इसके बाद नरका चतुर्दशी (Chhoti Diwali), दिवाली, परिवा (Govardhan Puja) और भाई दूज नरका चतुर्दशी या छोटी दिवाली को रूप चतुर्दशी या चौदस के रूप में भी जाना जाता है। दिवाली से एक दिन पहले छोटी दिवाली मनाई जाती है। इस दिन भी लोग अपने घरों को लाइट, दीयों और मोमबत्तियों से सजाते हैं। यह आम तौर पर दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है।
छोटी दिवाली का इतिहास और महत्व
दिवाली से कई कहानियां और कथाएं जुड़ी हुई हैं, जो इसके इतिहास को दर्शाती हैं। ऐसा माना जाता है कि प्राग्ज्योतिषपुर (वर्तमान असम) के दैत्यराज नरकासुर ने कई देवताओं की 16 हजार बेटियों को कैद कर लिया। उसने देवी अदिति के शानदार सोने के झुमके भी छीन लिए। अदिति को सभी देवी-देवताओं की मां माना जाता था। जब यह घटना भगवान कृष्ण की पत्नी सत्यभामा के कानों तक पहुंची तो वे क्रोधित हुईं और बुराई को खत्म करने के लिए भगवान कृष्ण के पास पहुंचीं। जिस दिन भगवान कृष्ण ने राक्षस को हराया और सभी कैद बेटियों को रिहा किया। कृष्ण ने नरकासुर के पास से देवी अदिति के कीमती झुमके भी ले लिए। इस दिन को छोटी दिवाली के रूप में मनाया जाने लगा।
ऐसा माना जाता है कि नरकासुर की मां भूदेवी ने घोषणा की थी कि उसके बेटे की मौत के दिन शोक की बजाय जश्न होना चाहिए। एक अन्य पौराणिक कथा में कहा गया है कि देवताओं को डर था कि राजा बलि बहुत शक्तिशाली हो रहे हैं, इसलिए भगवान विष्णु खुद एक ऋषि के रूप में उनके सामने गए और उन्हें अपने राज्य पर तीन कदम जगह देने के लिए कहते हैं। विष्णु ने धरती और स्वर्ग लोक को 2 कदमों से माप दिया। जब विष्णु ने कहा कि तीसरा कदम कहां रखूं तो राजा बलि ने कहा कि इसे मेरे सिर पर रख लीजिए। इस तरह से देवताओं ने राजा बलि के शासन का अंत कर दिया। बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत के साथ ही यह पर्व मनाया जाता है।
नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली क्यों कहते है और कैसे मनाते हैं
नरक चतुर्दशी को कई लोग छोटी दीपावली के नाम से भी जानते हैं और हर साल नरक चतुर्दशी कार्तिक अमावस्या से एक दिन पहले आती है। इस दिन का हिंदू धर्म में काफी महत्व है और नरक चतुर्दशी के दिन लोग कई तरह की पूजा किया करते हैं। नरक चतुर्दशी यानी रूप चौदस के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान किया जाता है और यम देवता की पूजा की जाती है।
नरक चतुर्दशी का महत्व
नरक चतुर्दशी के दिन के साथ कई तरह के महत्व जुड़े हुए हुए हैं। कहा जाता है कि इस दिन सूर्य के उगने से पहले उठकर स्नान करना लाभदायक होता है। जो लोग इस दिन स्नान करते हैं, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है और साथ में ही उनका सौंदर्य भी बढ़ जाता है। इसके अलावा इस दिन शाम के समय यमराज की पूजा करने से अकाल मृत्यु भी टल जाती है।
क्यों मनाई जाती है नरक चतुर्दशी
कथा 1- भगवान कृष्ण ने किया था नरकासुर का वध
पुराणों के मुताबिक, नरकासुर धरती माता का पुत्र था और उसने धरती पर आतंक मचा रखा था। भगवान इंद्र ने भगवान विष्णु से इस दानव से लोगों की रक्षा करने की गुहार की थी। भगवान विष्णु ने इंद्र देव को वादा किया था कि वो कृष्णावतार में इसका वध करेंगे।
वहीं जब विष्णु भगवान ने धरती पर कृष्ण जी के रुप में अवतार लिया था, तो उन्होंने अपना वादा पूरा करते हुए इसका वध कर दिया। नरकासुर की कैद से हजारों महिलाओं को रिहा करवाया था। वहीं इन महिलाओं को समाज में सम्मान दिलवाने के लिए कृष्ण जी ने इन सबसे नरक चतुर्दशी के दिन विवाह कर लिया था, जिसके बाद लोगों ने अपने घरों में दीए जलाए थे।
कथा 2- कृष्ण जी की पत्नी के हाथों हुई थी नरकासुर की हत्या
ऊपर बताई गई कथा के अलावा नरकासुर के वध से एक और कथा जुड़ी हुई है और कहा जाता है कि नराकसुर को ब्रह्मा जी से वरदान मिला था, कि उसका वध केवल एक महिला के हाथों ही हो सकता है। जिसके कारण इसका वध कृष्ण जी ने अपनी पत्नी सत्यभामा के हाथों से करवाया था।
कथा 3- मां काली ने मारा था नरकासुर को
एक और कथा के अनुसार इस दानव का वध मां काली के हाथों किया गया था। इसलिए पश्चिम बंगाल में इस दिन को काली चौदस के रूप में मनाते हैं।
कथा 4: स्वर्ग में मिलती है जगह
मान्यता के अनुसार रतिदेव नामक एक राजा हुआ करता था, जो कि काफी पुण्य का काम किया करता था। वहीं एक दिन इस राजा को नर्क में ले जाने के लिए यमराज इनके पास आए। वहीं यमराज के नर्क में ले जाने की बात जब रतिदेव को पता चली तो वो हैरान हो गए और राजा ने यमराज से कहा कि मैंने कभी भी कोई गलत काम नहीं किया तो फिर नर्क में क्यों भेजा जा रहा है।
वहीं रतिदेव राजा के इस प्रश्न के उत्तर में यमराज ने उनसे कहा, कि एक बार उन्हें अपने घर से एक भूखे पुजारी को खाली पेट भेज दिया था, जिसके कारण वो नर्क में जाएंगे। हालांकि रतिदेव ने यमराज जी से एक और जिंदगी मांगने की गुहार लगाई और यमराज ने इनकी ये गुहार मान ली और उन्हें जीवनदान दे दिया। जीवनदान मिलने के बाद महाराज साधु संत से मिले और उनसे नर्क ना जाने से जुड़ा हुआ उपाय मांगा। संतों ने महाराजा को नरक चतुर्दशी के दिन उपवास रखने और भूखे पुजारी को खाना खिलाने की सलाह दी थी, ताकि वो नर्क में जाने से बच सकें।
तिल के तेल और दीपदान महत्व
मान्यता के अनुसार इस दिन शाम को पूजा करने के बाद दीपदान करना चाहिए और घर पर दीप जलाने चाहिए और जो लोग इस दिन ये करते हैं वो अपने पापों को कम कर लेते हैं।
कैसे मनाया जाता है नरक चतुर्दशी का त्योहार
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान किया जाता है और ये स्नान करने से पहले चिरचिरी के पत्तों को स्नान करने वाले पानी में डाला जाता है और फिर तेल, चंदन और उबटन जैसी चीजों से स्नान किया जाता है।
दक्षिणी भारत में ऐसे मनाई जाती है नरक चतुर्दशी
दक्षिणी भारत में इस दिन लोग जल्दी उठकर पवित्र स्नान करने के बाद कुमकुम और तेल का लेप बनाकर उसे अपने माथे पर लगाते हैं। जबकि तमिलनाडु राज्य के कुछ समुदाय के लोग इस दिन लक्ष्मी मां की पूजा भी करते हैं। वहीं पश्चिम बंगाल के लोगों इस दिन स्नान करने के बाद मां काली की आराधना करते हैं।
नरक चौदस पर कड़वा फल तोड़ने का रिवाज
इस दिन कड़वा फल तोड़ने का भी रिवाज होता है और कहा जाता है कि इस फल को तोड़ना नरकासुर की हार का प्रतीक होता है। नरक चतुर्दशी को कई लोग छोटी दीपावली के नाम से भी जानते हैं और हर साल नरक चतुर्दशी कार्तिक अमावस्या से एक दिन पूर्व आती है।
छोटी दिवाली की हिंदी कविता
त्यौहारों का है यह राजा
5 दिनों तक मनाया जाता
आज हैं हमारी छोटी दिवाली
कहती नरकाचौदस की कहानी
नरकासुर था एक राक्षस
था वो शक्तिशाली भक्षक
इंद्र को जीत बना वो शासक
चारों तरफ था उसका आतंक
जब- जब संकट आता हैं
ईश्वर हमें बचाता हैं
कृष्ण की लीला चली इस बार
हंसते-हंसते किया नरकासुर का संहार
जबसे ही यह दिन मनाया
जो आज तक नरका चौदस कहलाया।