(शेख रेहान, खंडवा/आमिर खान, टीकमगढ़). आज यानी 1 फरवरी को महाशिवरात्रि है। यह दिन भगवान शिव की महिमा और उपासना का दिन है। कोरोना की पाबंदी हटने के बाद महाशिवरात्रि बड़ी धूमधाम से मनाई जा रही है। देश के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग खंडवा जिले में है। मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग स्वयम्भू है। खंडवा जिले में ही भीमकुंड शिव मंदिर भी है। यहां पांडवों से जुड़ा हुआ एक रहस्य छिपा है। वहीं, टीकमगढ़ के कुण्डेश्वर शिवलिंग से भी कई किंवदंतियां जुड़ी हुई है। महाशिवरात्रि के इस पावन मौके पर इन शिव मंदिरों के बारे में जानते हैं।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग: ओंकारेश्वर को देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में चौथे स्थान पर माना जाता है। ओंकारेश्वर तीर्थ अलौकिक है। यह तीर्थ नर्मदा नदी के किनारे विद्यमान है। नर्मदा नदी के दो धाराओं के बंटने से एक टापू का निर्माण हुआ था, जिसका नाम मांधाता पर्वत पड़ा। आज इसे शिवपुरी भी कहा जाता है। इसी पर्वत पर भगवान ओंकारेश्वर महादेव विराजमान हैं। मान्यता है कि भगवान राम के 10 पीढ़ी पूर्व के महाराजा मांधाता ने भगवान शिव की तपस्या की। भगवान प्रसन्न होकर ओंकारेश्वर में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए। विश्वभर के श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के निकट ही एक ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग है। इन दोनों ज्योतिर्लिंगों की गिनती एक ही ज्योतिर्लिंग के रूप में की जाती है। कहते हैं श्री ओंकारेश्वर लिंग का निर्माण मनुष्य ने नहीं बल्कि खुद प्रकृति ने किया है। इस ओंकार का भौतिक विग्रह ओंकार क्षेत्र है। इस क्षेत्र में कुल 68 तीर्थ हैं। यहां जो व्यक्ति अन्नदान, तप, पूजा आदि करता है, उसे भगवान शिव के लोक में स्थान मिलता है।
आबना नदी के टापू पर भीमकुंड शिव मंदिर: ये मंदिर खंडवा शहर से करीब पांच किलोमीटर दूर आबना नदी के टापू पर स्थित है। चारों तरफ से पानी से घिरे इस मंदिर पर पहुंचने के लिए पक्का रास्ता नहीं है, पगडंडी के सहारे रास्ता तय करना पड़ता है। मान्यता है कि यह मंदिर करीब 5 हजार साल पुराना है। इसकी स्थापना तब हुई थी जब अज्ञातवास में पांडव यहां आए थे। पानी के लिए भीम ने अपने गदा से कुंड स्थापित किया था। बताते हैं कि उसी दौरान अपनी तपस्या के लिए भीम ने शिवलिंग स्थापित किया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, वैज्ञानिक इसमें कई बार गोताखोरी भी करवा चुके हैं। इसके बाद भी जल कुंड की कोई थाह नहीं पा पाया। यहां शिवरात्रि पर खंडवा जिला समेत देश भरसे भक्त पहुचते हैं। पेड़-पौधों से घिरा होने की वजह से लोग यहां सुकुन की तलाश में भी आते हैं।
कुंडेश्वर की किंवदंती: टीकमगढ़ जिले में भगवान कुंडेश्वर का मंदिर है। कुण्डेश्वर स्थित शिवलिंग प्राचीन काल से ही लोगों की आस्था का प्रमुख केन्द्र रहा है। कहा जाता है कि द्वापर युग में दैत्य राजा बाणासुर की पुत्री ऊषा जंगल के मार्ग से आकर यहां पर बने कुंड के अंदर भगवान शिव की आराधना करती थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें कालभैरव के रूप में दर्शन दिए थे और उनकी प्रार्थना पर ही कालांतर में भगवान यहां पर प्रकट हुए। बताया जाता है कि कुण्डेश्वर मंदिर में प्रत्येक वर्ष बढ़ने वाले शिवलिंग की हकीकत पता करने सन 1937 में टीकमगढ़ रियासत के तत्कालीन महाराज वीर सिंह जू देव द्वितीय ने यहां पर खुदाई प्रारंभ कराई थी। उस समय खुदाई में हर तीन फीट पर एक जलहरी मिलती थी। ऐसी सात जलहरी महाराज को मिली। लेकिन शिवलिंग की पूरी गहराई तक नही पहुंच सके। इसके बाद भगवान ने उन्हें सपना दिया और यह खुदाई बंद कराई गई। कहा जाता है कि यह शिवलिंग प्रतिवर्ष चावल के दाने के आकार का बढ़ता है।