देश-विदेश में प्रसिद्ध है उज्जैन का मंगलनाथ मंदिर, कुंडली में मंगल दोष का होता है निवारण, भक्त करते हैं भात पूजा

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The Sootr CG
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देश-विदेश में प्रसिद्ध है उज्जैन का मंगलनाथ मंदिर, कुंडली में मंगल दोष का होता है निवारण, भक्त करते हैं भात पूजा


 Ujjain,उज्जैन. महाकाल नगरी उज्जैन ज्योर्तिंलंग के साथ अन्य मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है।  भगवान मंगलनाथ मंदिर सदियों पुराना है। सिंधिया राजघराने ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था। यहां की गई मंगल की पूजा का विशेष महत्व है। भक्तों द्वारा यहां मंगलनाथ को शिव रुप में ही पूजा जाता है। उज्जैन को कालों के काल महाकाल की नगरी कहा जाता है और महाकाल की इस नगरी में बहती शिप्रा नदी मोक्षदायिनी क्षिप्रा कहा जाता है। शिप्रा के पवित्र तटों पर जन्मी आध्यात्मिक संस्कृति की बदौलत ही शास्त्रों में ये नगर उज्जैयनी के नाम से विख्यात हुआ और ये ही उज्जैयनी पुराणों में मंगल की जननी भी कहलाई। यहां अमअमंगल को मंगल में बदलने वाले भगवान मंगलनाथ भी हैं। 

 



भात पूजा से दूर होता कुंडली दोष




महाकाल की नगरी कही जाती है, अवन्तिका अर्थात वर्तमान समय का उज्जैन। अनंतकाल से ही उज्जैन का धार्मिक महत्व सर्वोच्च रहा है जो हिंदुओं के लिए 7 सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। उज्जैन में कई ऐसे मंदिर स्थित हैं जिनका इतिहास सहस्त्राब्दियों पुराना है और जो पौराणिक महत्व के हैं। इनमें से एक मंदिर है, मंगलनाथ जहां देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग अपनी कुंडली के मंगल दोष के निवारण के लिए आते हैं। मोक्षदायिनी क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित इस मंदिर की विशेषता है। यहां होने वाली ‘भात पूजा’, तो आइए आपको इस मंदिर के महत्व और प्राचीन इतिहास के बारे में बताते हैं।



पौराणिक इतिहास  



मत्स्य पुराण के अनुसार मंगलनाथ ही मंगल का जन्म स्थान माना गया है। कहा जाता है कि अंधकासुर नामक दैत्य को भगवान शिव का वरदान प्राप्त था कि उसके रक्त की बूंदों से सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे। इसी वरदान के चलते अंधकासुर पृथ्वी पर उत्पात मचाने लगा। इस पर सभी ने भगवान शिव से प्रार्थना की। उन्होंने अंधकासुर के अत्याचार से सभी को मुक्त करने के लिए उससे युद्ध करने का निर्णय लिया। दोनों के बीच भयानक युद्ध हुआ। इस युद्ध में भगवान शिव का पसीना बहने लगा जिसकी गर्मी से धरती फट गई और उससे मंगल का जन्म हुआ। इस नवउत्पन्न मंगल ग्रह ने दैत्य के शरीर से उत्पन्न रक्त की बूंदों को अपने अंदर सोख लिया। इसी कारणवश मंगल का रंग लाल माना गया है। यह मंदिर बहुत पुराना है लेकिन इसके जीर्णोद्धार का श्रेय सिंधिया राजघराने को जाता है। दरअसल मंगलनाथ मंदिर में भगवान शिव ही मंगलनाथ के रूप में विराजमान हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव, एक शिवलिंग के रूप में स्थापित हैं। वैसे तो सम्पूर्ण उज्जैन ही सनातन ज्ञान का एक महान केंद्र है लेकिन महाकाल मंदिर और मंगलनाथ दोनों ही खगोल अध्ययन के केंद्र भी माने गए हैं।



मंगल दोष निवारण



इस मंदिर में किसी भी तरह के अमंगल को मंगल में बदलने का सामर्थ्य है। यहां भारत ही नहीं अपितु विदेशों में रहने वाले लोग भी अपनी कुंडली के मंगल दोष के निवारण के लिए आते हैं। जिन लोगों को ज्योतिषशास्त्र और कर्मकांड में भरोसा है उनके लिए यह मंदिर विशेष महत्व का है। मंगलनाथ मंदिर में मंगल की शांति के लिए विधि-विधान से पूजा-पाठ का आयोजन किया जाता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है यहां की भात पूजा। इस विशेष पूजा के दौरान मंदिर में स्थापित भगवान शिव का भात श्रृंगार किया जाता है। कुंडली में मंगल दोष के निवारण के लिए भक्तों के द्वारा मंदिर में भात पूजा कराई जाती है। अत्यंत पवित्र क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित होने के कारण इस मंदिर का और यह होने वाली पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है। इसके अलावा इस मंदिर में नवग्रह पूजा भी संपन्न होती है।



क्‍या होता है मंगलदोष



मंगल दोष एक ऐसी स्थिति है, जो जिस किसी जातक की कुंडली में बन जाये तो उसकी जिंदगी में उथल-पुथल हो जाती है. मंगल दोष कुंडली के किसी भी घर में स्थित अशुभ मंगल के द्वारा बनाए जाने वाले दोष को कहते हैं, जो कुंडली में अपनी स्थिति और बल के चलते जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याएं उत्पन्न कर सकता है। मंगल दोष पूरी तरह से ग्रहों की स्थति पर आधारित है। 



मंगल दोष के कारण उठानी पड़ती हैं ये समस्याएं



मंगल दोष के कारण व्यक्ति को वैवाहिक जीवन में परेशानियां आती हैं। विवाह में देरी और तेज गुस्से जैसी परेशानियां होती है। मंगल दोष मंगल ग्रह की खराब स्थिति के कारण उत्पन्न होता है। अगर किसी की कुंडली में लग्न भाव, चौथे भाव, सातवें भाव, आठवें भाव या फिर बारह्वें भाव में मंगल हो तो मंगल दोष उत्पन्न होता है। जातक को कड़ी परेशानियों को झेलना पड़ता है।



ज्योतिष शास्त्र में मंगल दोष के उपाय



मंगल ग्रह को क्रूर ग्रह माना जाता है। ज्योतिषशास्त्र में मंगल ग्रह की शांति के उपाय करने से कुंडली में मंगल दोष समाप्त होता है। मंगल ग्रह की शांति के उपाय करने से मंगल दोष का प्रभाव भी कम हो जाता है। हनुमान जी की आराधना, बजरंग बाण, हनुमान चालीसा आदि के जाप व अन्य प्रकार के उपाय से मंगल दोष के प्रभाव खत्म हो जाते हैं। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल दोष है तो उसे उज्जैन के मंगल नाथ मंदिर में जरुर जाना चाहिए। इसके साथ ही मंगल नाथ के दर्शन और पूजा-पाठ करने से मंगल दोष से छुटकारा भी मिलता है।



क्‍या कहते हैं ज्‍योतिष 



ज्योतिष की मानें तो यदि किसी जातक के जन्म चक्र के पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें घर में मंगल हो तो ऐसी स्थिति में पैदा हुआ जातक मांगलिक कहा जाता है। यह स्थिति विवाह के लिए अत्यंत अशुभ मानी जाती है। संबंधों में तनाव व बिखराव, घर में कोई अनहोनी व अप्रिय घटना, कार्य में बेवजह बाधा और असुविधा तथा किसी भी प्रकार की क्षति और दंपत्ति की असामायिक मृत्यु का कारण मांगलिक दोष को माना जाता है।



मंगल दोष को लेकर मंदिर की मान्यता



उज्जैन स्थित मंगल नाथ मंदिर की मान्यता देश और विदेश में है। मान्यता के अनुसार जिन लोगों की कुंडली में मांगलिक दोष होता है वे यहां आकर उसके उपाय हेतु पूजा-पाठ एवं कर्म- कांड करवाते हैं। मंगल ग्रह को समर्पित इस मंदिर में सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, उज्जैन नगरी को मंगल की जननी भी कहा जाता है। इसलिए यहां पर मंगल दोष से पीड़ित जातक अपने दोष के निवारण हेतु आते हैं।



मंगलवार को लगता है भक्तों का तांता



मंगलनाथ मंदिर में मंगल की शांति के लिए विधि-विधान से पूजा-पाठ का आयोजन किया जाता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है यहाँ की भात पूजा। इस विशेष पूजा के दौरान मंदिर में स्थापित भगवान शिव का भात श्रृंगार किया जाता है। कुंडली में मंगल दोष के निवारण के लिए भक्तों के द्वारा मंदिर में भात पूजा कराई जाती है। अत्यंत पवित्र क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित होने के कारण इस मंदिर का और यह होने वाली पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है। इसके अलावा इस मंदिर में नवग्रह पूजा भी संपन्न होती है। हर मंगलवार को इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन कुछ विशेष पर्वों पर यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ जाती है, जैसे महाशिवरात्रि, अंगारक चतुर्थी और श्रावण मास।



वैशाख में भात पूजन का महत्व



मंगलनाथ और अंगारेश्वर मंदिर में भात पूजन कराने का दूसरा महत्व वैशाख मास भी है। मान्यता है कि वैशाख की गर्मी में भगवान को राहत देने के लिए भात पूजा की जाती है। वैसे भी भगवान मंगल देव और अंगारेश्वर की प्रकृति गर्म होने से ही भात पूजा का विधान है। भगवान पूजन से प्रसन्न होकर भक्तों का कल्याण करते है।


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