BHOPAL. नवरात्रि पर्व का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। नवरात्रि में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों का पूरे विधि-विधान से पूजन पाठ किया जाता है। आपको बता दें कि सालभर में कुल 4 नवरात्रि आती हैं, जिसमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि का महत्व काफी ज्यादा होता है। बाकि दो नवरात्री को गुप्त नवरात्री के तौर पर माना जाता है। इस नवरात्रि में माता की पूजा-अर्चना करने से देवी दुर्गा की खास कृपा होती है। मां दुर्गा की सवारी वैसे तो शेर है लेकिन जब वह धरती पर आती हैं तो उनकी सवारी बदल जाती है। इस बार मां दुर्गा नाव पर सवार होकर धरती पर आएंगी।
110 साल बाद बन रहा दुर्लभ संयोग
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार प्रतिपदा तिथि 21 मार्च रात में 11 बजकर 4 मिनट पर लग जाएगी इसलिए 22 मार्च को सूर्योदय के साथ नवरात्रि की शुरुआत कलश स्थापना के साथ होगी। इस वर्ष देवी मां का आगमन नौका पर है, इसे सुख-समृद्धि कारक कहा जाता है। पूरे 9 दिनों के नवरात्र में मां के 9 स्वरूपों की पूजा होगी। इस बार चार ग्रहों का परिवर्तन नवरात्र पर देखने को मिलेगा। यह संयोग 110 वर्षों के बाद आ रहा है। इस बार नव संवत्सर लग रहा है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने पृथ्वी की रचना की थी। इसलिए यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
चैत्र नवरात्र में माता की पूजा का है विशेष महत्व..
घट स्थापना के शुभ मुहूर्त
चैत्र नवरात्रि का पर्व 22 मार्च 2023 से शुरू होकर 30 मार्च तक चलेंगा। घटस्थापना नवरात्रि के दौरान महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक माना जाता है। शास्त्रों में नवरात्रि की शुरुआत में एक निश्चित अवधि के दौरान घटस्थापना करने के लिए अच्छी तरह से परिभाषित नियम और दिशा-निर्देश हैं। नवरात्रि में घट या कलश स्थापना को मुहूर्त के मुताबिक करना चाहिए। चैत्र नवरात्रि में घट स्थापना प्रतिपदा तिथि को आती है और इसका मुहूर्त द्वि-स्वभाव मीणा लग्न के दौरान आता है। घटस्थापना करने के लिए सबसे शुभ या शुभ समय दिन का पहला एक तिहाई है जबकि प्रतिपदा प्रचलित है। यदि किन्हीं कारणों से यह समय उपलब्ध नहीं है तो अभिजित मुहूर्त में घटस्थापना की जा सकती है।
घट स्थापना मुहूर्त शुभ मुहूर्त- 06:23 AM से 07:32 AM तक
अवधि - 1 घंटा 9 मिनिट
- प्रतिपदा तिथि प्रारंभ- 21 मार्च 2023 को रात्रि 10:52 बजे
2023 चैत्र नवरात्रि घट स्थापना की विधि
कलश को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है। देवी दुर्गा की पूजा से पहले कलश की पूजा की जाती है, पूजा स्थल पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगाजल से साफ किया जाता है फिर सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया जाता है। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि पर सवेरे-सवेरे जल्दी स्नान करके पूजा और व्रत का संकल्प लें, चौकी रखें जहां पर कलश में जल भरकर रखें, फिर कलश पर कलावा बांधे। इसके बाद कलश के मुख पर आम या अशोक के पत्ते लगाएं। इसके बाद नारियल को लाल चुनरी में लपटेकर कलश पर रख दें। इसके बाद धूप, दीप जलाकर मां दुर्गा का ध्यान करें और शास्त्रों के मुताबिक मां दुर्गा की पूजा-उपासना करें।
कलश स्थापना के बाद, गणेश जी और मां दुर्गा की आरती करते है जिसके बाद नौ दिनों का व्रत शुरू हो जाता है।
मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की होती है पूजा
- नवरात्रि पहला दिन 22 मार्च 2023 दिन बुधवार: मां शैलपुत्री पूजा (घटस्थापना)
इन बातों का रखें विषेश ध्यान
- व्रत रखने वाले लोग नवरात्रि पर कलश स्थापना जरूर करें और 9 दिनों तक माता की पूजा के साथ कलश का भी पूजन करें।
हिंदू नववर्ष 2023 में इस बार होंगे 13 माह
इस साल नव संवत्सर 2080 में 12 नहीं 13 माह होंगे क्योंकि इस साल अधिक मास लग रहा है. अधिक मास 18 जुलाई से 16 अगस्त तक है. अधिक मास सावन में लग रहा है, इसलिए सावन माह दो महीने का होगा. इस बार सावन के सोमवार और मंगला गौरी व्रत हर बार से अधिक होंगे. शिव परिवार की कृपा पाने का शुभ अवसर होगा।
जानिए हिंदू नववर्ष की 5 बड़ी बातें
- चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से ब्रह्म देव ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी, इस तिथि से हिंदू नववर्ष शुरु होता है और इस दिन से चैत्र नवरात्रि भी प्रारंभ होती है।
दक्षिण भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है गुड़ी पड़वा
गुड़ी पड़वा का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। जिसमें गुड़ी का अर्थ होता है विजय पताका और पड़वा का मतलब होता है प्रतिपदा। वहीं, गुड़ी पड़वा को दक्षिण भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है और इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। कर्नाटक में इसे युगादि,आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उगादि नाम से जानते हैं, वहीं गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय के लोग इसे संवत्सर पड़वो के नाम से जानते हैं।
सिंधी समाज मनाता है चेटीचंड
झूलेलाल जी को जल के देवता वरुण का अवतार माना जाता है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में चन्द्र दर्शन की तिथि को सिंधी चेटीचंड मनाते हैं। सिंधी समुदाय के लोगों के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक झूलेलाल जयंती है। झूलेलाल जयंती पर सिंधी समुदाय के लोग झूलेलाल मंदिरों में जाते हैं और श्रद्धा भाव के साथ पूजा करते हैं।
सिंधी हिंदुओं के नए साल की होती है शुरुआत
संत झूलेलाल को लाल साईं, उदेरो लाल, वरुण देव, दरियालाल और जिंदा पीर भी कहा जाता है। सिंधी हिंदुओं के लिए संत झूलेलाल उनके उपास्य देव हैं, इस त्यौहार को चेटी चंड भी कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार संत झूलेलाल वरुण देव के अवतार माने जाते हैं। सिंधी हिंदुओं के लिए झूलेलाल झूलेलाल का मंत्र बिगुल माना जाता है। चंद्र-सौर हिंदू पंचांग के अनुसार, झूलेलाल जयंती की तिथि वर्ष और चेत के हिन्दू महीने की पहली तिथि को मनाया जाता है। सिंधी समुदाय के लोगों के लिए यह तिथि बेहद शुभ मानी जाती है क्योंकि इस दिन से सिंधी हिंदुओं का नया साल प्रारंभ होता है।