ग्वालियर किले की तलहटी में नृत्य मुद्रा में हनुमान की प्रतिमा, शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास से लेकर सिंधिया तक रहे हैं इनके भक्त

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BP Shrivastava
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ग्वालियर किले की तलहटी में नृत्य मुद्रा में हनुमान की प्रतिमा, शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास से लेकर सिंधिया तक रहे हैं इनके भक्त

देव श्रीमाली, GWALIOR. आज, 6 अप्रैल को महाबली हनुमान जी की जयंती है और उनके जन्मोत्सव को पूरा देश बहुत ही भक्तिभाव से मना रहा है। पूरे देश में हनुमान मंदिरों में पूजा-अर्चना और भंडारे चल रहे हैं। यूं तो देशभर में हनुमान जी के लाखों मंदिर हैं, जहां वे बिराजमान हैं, लेकिन ग्वालियर के एक ऐतिहासिक मंदिर में हनुमान जी की एक ऐसी मुद्रा है कि भक्त देखकर ही मंत्रमुग्ध हो जाएं। यहां स्थित हनुमान जी की नृत्य मुद्रा की प्रतिमा देश में ही विरली है। किंवदंती है कि महाराज शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास ने भी यहां आकर आराधना की और फिर सिंधिया साम्राज्य के संस्थापक महादजी सिंधिया ने भी। उन्होंने ही यहां मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।



तलहटी वाले हनुमान का प्राचीन मंदिर



ग्वालियर के ऐतिहासिक दुर्ग की तलहटी में स्थित है यह मंदिर। यही वजह है कि इसे तलहटी वाले हनुमान के नाम से पुकारा जाता है। इसकी गिनती मध्यप्रदेश के सबसे प्राचीन हनुमान मंदिरों में की जाती है। मंदिर के पुजारी कालीचरण चतुर्वेदी कहते हैं  कि प्रतिमा तो प्रागैतिहासिक है, लेकिन यह मंदिर ग्वालियर की स्टेट का सबसे प्राचीन हनुमान मंदिर है। उनका कहना है कि जब महादजी सिंधिया ग्वालियर दुर्ग को फतह करने आए थे। तब उन्हें हनुमान जी की इस मूर्ति के दर्शन हुए थे। और उन्होंने मंदिर में पूजा-पाठ शुरू करवाया था।  बताया जाता है कि यह मूर्ति स्वयं प्रकट मूर्ति है, जिसकी सेवा उनका पुजारी परिवार महाद्जी सिंधिया के समय से करते आ रहे हैं। 



समर्थ रामदास ने करवाई थी स्थापना



मंदिर की प्राचीनता को लेकर ग्वालियर के मंदिरों पर शोध करने वाले  माता प्रसाद शुक्ल कहते हैं  कि यह मंदिर बहुत ही  प्राचीन है। इसका उल्लेख शिवाजी महाराज काल के समय के अभिलेखों में भी मिलता है। शुक्ल ने  बताया कि शिवाजी महाराज के गुरु स्वामी समर्थ रामदास जी महाराज कुछ समय ग्वालियर में रहे थे। और इसी दौरान उन्होंने हनुमान जी की इस अद्भुत  मूर्ति की पूजा-अर्चना शुरू हुई थी। उन्होंने बताया कि इस दौरान स्वामी रामदास महाराज ने ग्वालियर में कई मंदिरों की स्थापना करवाई थी। जिनमें से कई में उनके  खड़ाऊ आज भी मौजूद हैं।



अपने खास अंदाज के कारण सबसे अलग है यह हनुमान



मंदिर के सहायक पुजारी ने बताया कि यह मूर्ति भगवान की अन्य मूर्तियों से एकदम अलग और अनूठी  है क्योंकि यह मूर्ति भगवान की अति प्रसन्न मुद्रा नृत्य मुद्रा में है।  जिसमें हनुमान हरि भक्ति में नाचते गाते हुए भगवान का भजन करते प्रतीत हो रहे हैं। इसके साथ ही यह मूर्ति दुर्ग की आखिरी दीवाल पर प्रकट हुई है. जोकि गोपाचल पर्वत की चट्टान से स्वयं प्रकट हुई है। जिससे ऐसा प्रतीत होता है। कि मानो भगवान श्री हनुमान पूरे दुर्ग का वजन अपने ऊपर लिए हैं और इस को संभाले हुए हैं।



तीन दशक पहले उतरा था चोला, निकला था 10 क्विंटल सिंदूर



मंदिर के सहायक पुजारी ध्रुव ने बताते हैं  यह मंदिर बेहद प्राचीन है। उनकी स्मृति में करीबन 30 साल पहले जब भगवान श्री हनुमान जी महाराज लगातार चोला चढ़ने के बाद काफी गोल मटोल हो गए थे। तो इनका चोला बदलने की कवायद हुई थी तब विधि-विधान से उनका चोला उतारा गया था जिसमें लगभग 10 क्विंटल सिंदूर निकला था। उसी दौरान इसके अध्ययन और विश्लेषण के लिए पुरातत्वविदों की टीम भी आई थी। जिन्होंने मूर्ति के कुछ अवशेष लिए थे और उन अवशेषों के आधार पर संभावना जताई थी कि यह मूर्ति औरंगजेब के समय से भी पहले की हो सकती है। 



 द्वारे में सुरक्षित रखे हुए हैं



बहरहाल, मंदिर काफी प्राचीन है। जिसकी प्रतिमा वाकई बेहद रोचक और अनुकरणीय है। जिसे देख कर मन में प्रसन्नता के भाव अंकुरित होने लगते हैं। इतना ही नहीं मंदिर के आसपास की प्राकृतिक छटा बेहद रमणीय है। जहां बरसात के समय में झरने झड़ते हैं। और ऐसा प्रतीत होता है मानो किसी सुंदरवन में आ गए हो। जबकि यह स्थान शहर के बीचों-बीच घनी आबादी में मौजूद है।


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