आज देव उठनी एकादशी, तुलसी और शालिग्राम का होगा विवाह; जानिए इसके पीछे की कथा

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Rahul Garhwal
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आज देव उठनी एकादशी, तुलसी और शालिग्राम का होगा विवाह; जानिए इसके पीछे की कथा

BHOPAL. आज देव उठनी एकादशी है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं। आज तुलसी और शालिग्राम का विवाह होगा। तुलसी-शालिग्राम के विवाह के बाद से ही शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। क्या आप जानते हैं कि तुलसी और शालिग्राम का विवाह क्यों कराया जाता है। इसके पीछे की कथा क्या है। आइए हम आपको बताते हैं।





शालिग्राम कौन हैं ?





भगवान विष्णु के निराकार और विग्रह रूप को शालिग्राम कहते हैं। जैसे शिव का शिवलिंग के रूप में पूजन होता है, वैसे ही विष्णु का विग्रह रूप शालिग्राम है। भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का वर्णन पद्मपुराण में है। पौराणिक कथा के अनुसार तुलसी के श्राप की वजह से विष्णु हृदयहीन शिला में बदल गए थे। उनके इस रूप को शालिग्राम कहा गया।





क्यों किया जाता है तुलसी और शालिग्राम का विवाह





पौराणिक कथा के अनुसार, वृंदा नाम की एक कन्या थी जिसका विवाह समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए जलंधर राक्षस से हुआ। वृंदा भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी और पतिव्रता स्त्री थी। उसके तप से उसका पति जलंधर और भी ज्यादा शक्तिशाली हो गया। महादेव भी जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे। इसलिए शिव और सभी देवताओं ने विष्णु से जलंधर का नाश करने की प्रार्थना की।





विष्णु को मिला काला पत्थर बनने का श्राप





भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण करके पतिव्रता स्त्री वृंदा की पवित्रता नष्ट कर दी। इससे जलंधर की ताकत खत्म हो गई और महादेव ने उसका वध कर दिया। जब वृंदा को विष्णु की माया का पता चला तो वे क्रोधित हो गईं और उन्होंने विष्णु को हृदयहीन काला पत्थर (शालिग्राम) बनने का श्राप दिया। वृंदा ने कहा कि वे अपनी पत्नी से अलग हो जाएंगे। राम के अवतार में वे माता सीता से अलग होते हैं।





माता लक्ष्मी की प्रार्थना पर वृंदा ने वापस लिया श्राप





भगवान विष्णु को पत्थर होता देख देवी-देवताओं में हाहाकार मच गया। माता लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना की। इसके बाद वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया और स्वयं जलंधर के साथ सती हो गईं।





तुलसी के बिना प्रसाद स्वीकार नहीं करते भगवान विष्णु





वृंदा के सती होने के बाद उनकी राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया और स्वंय को पत्थर में समाहित करते हुए कहा कि आज से मैं तुलसी के बिना प्रसाद स्वीकार नहीं करूंगा। तब से शालिग्राम को तुलसी के साथ पूजा जाता है और कार्तिक माह की एकादशी पर शालिग्राम और तुलसी का विवाह कराया जाता है।



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