गणेश जी के सिर कटने के पीछे छिपी हैं दो कहानियां, जानें प्रथम पूज्य गणेश जी की उत्पत्ति का सच

पंचांग के मुताबिक 27 अगस्त से शुरू हो रहे गणेशोत्सव से पहले आइए जानें भगवान गणेश की उत्पत्ति की कथा। माता पार्वती द्वारा निर्मित और शिव द्वारा गजमुख रूप में पुनर्जीवित किए गए गणपति को देवताओं ने प्रथम पूज्य और बुद्धि के देवता जैसे कई वरदान दिए थे।

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Kaushiki
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कब है गणेश चतुर्थी:पंचांग के मुताबिक, इस साल 27 अगस्त से देशभर में गणेशोत्सव का महापर्व शुरू हो रहा है। यह दस दिवसीय उत्सव भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है जो बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के प्रतीक हैं। हर साल भक्त गणपति बप्पा का स्वागत धूमधाम से करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

ऐसे में क्या आप जानते हैं कि प्रथम पूज्य भगवान गणेश की उत्पत्ति कैसे हुई थी और उन्हें देवताओं ने क्या-क्या वरदान दिए थे? आइए, गणेशोत्सव के इस शुभ अवसर पर उनकी उत्पत्ति से जुड़ी अनोखी और विस्तृत पौराणिक कथा के बारे में जानते हैं।

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भगवान गणेश की उत्पत्ति की कथा

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माता पार्वती द्वारा निर्मित गणेश:

पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार, जब भगवान शिव अपनी ध्यान साधना में लीन थे, तब माता पार्वती ने स्नान करने का निश्चय किया। उनकी अनुपस्थिति में कोई भी उनके कक्ष में प्रवेश न करे यह सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने अपनी त्वचा से मैल (उबटन) निकालकर एक बालक की आकृति बनाई और उसमें प्राण फूंक दिए।

इस तरह, भगवान गणेश का जन्म हुआ। माता पार्वती ने उस बालक को द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया और उसे आदेश दिया कि कोई भी उनकी अनुमति के बिना अंदर प्रवेश न करे।

जब भगवान शिव ध्यान से लौटे, तो उन्होंने देखा कि एक बालक उन्हें अंदर जाने से रोक रहा है। शिव ने बालक को समझाने की कोशिश की, लेकिन गणेश ने अपनी माता के आदेश का पालन करते हुए उन्हें अंदर नहीं जाने दिया।

इस पर क्रोधित होकर शिव और गणेश के बीच भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध के दौरान, शिव ने त्रिशूल से बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब माता पार्वती ने यह देखा, तो वह अत्यंत क्रोधित हुईं और उन्होंने सृष्टि का विनाश करने का निश्चय किया।

सभी देवताओं ने उनसे शांत होने की विनती की और शिव से अनुरोध किया कि वे बालक को पुनः जीवित करें। शिव ने एक हाथी का सिर लेकर बालक के धड़ से जोड़ा और उसे जीवनदान दिया।

इस प्रकार, गजमुख (हाथी के सिर वाले) गणपति का जन्म हुआ। सभी देवताओं ने उन्हें प्रथम पूज्य होने का वरदान दिया, ताकि कोई भी शुभ कार्य उनकी पूजा के बिना पूरा न हो।

शनि देव की दृष्टि से उत्पन्न गणेश

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव और पार्वती के घर गणेश का जन्म हुआ, तो सभी देवताओं को दर्शन के लिए बुलाया गया।

शनि देव भी बालक को देखने आए, लेकिन वे अपनी दृष्टि से होने वाले बुरे प्रभाव के कारण बच्चे को सीधे नहीं देखना चाहते थे। माता पार्वती के आग्रह पर, शनि देव ने बच्चे को देखा और उनकी दृष्टि पड़ते ही बच्चे का सिर धड़ से अलग हो गया।

इस घटना से दुखी होकर भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर लाकर गणेश के धड़ से जोड़ा और उन्हें पुनर्जीवित किया। यह कथा भी गणेश जी के गजमुख होने का कारण बताती है और उनके जन्म की दिव्यता को दर्शाती है।

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भगवान गणेश को मिले वरदान

कथा के मुताबिक, गणेश जी (भगवान गणेश की पूजा) की उत्पत्ति के बाद, सभी देवी-देवताओं ने उन्हें विभिन्न वरदान दिए जिसने उनकी महिमा को और बढ़ा दिया। ये वरदान गणेश जी को अद्वितीय बनाते हैं और उनकी पूजा को अनिवार्य करते हैं।

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प्रथम पूज्य होने का वरदान

भगवान शिव ने गणेश को यह वरदान दिया कि किसी भी शुभ कार्य, पूजा-पाठ या धार्मिक अनुष्ठान को शुरू करने से पहले उनकी पूजा की जाएगी। इसके बिना कोई भी कार्य सफल नहीं होगा। यह वरदान उन्हें सभी देवताओं में सर्वोच्च स्थान प्रदान करता है और इसी कारण उन्हें 'प्रथम पूज्य' कहा जाता है।

विघ्नहर्ता का वरदान

सभी देवताओं ने मिलकर गणेश जी को 'विघ्नहर्ता' होने का वरदान दिया। इसका अर्थ है कि वे अपने भक्तों के जीवन से सभी बाधाओं और परेशानियों को दूर करेंगे। इसीलिए, किसी भी नए काम की शुरुआत में उनकी पूजा की जाती है, ताकि वह निर्विघ्न रूप से पूरा हो सके।

बुद्धि और ज्ञान का वरदान

ब्रह्मा जी ने गणेश जी को यह वरदान दिया कि वे बुद्धि और ज्ञान के देवता होंगे। उनकी बुद्धि इतनी तीव्र होगी कि कोई भी उन्हें चुनौती नहीं दे पाएगा। इसी वरदान के कारण गणेश जी को विद्या और बुद्धि का स्वामी माना जाता है।

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लेखन कला का वरदान

सरस्वती देवी ने गणेश जी को यह वरदान दिया कि वे उत्कृष्ट लेखक होंगे। यह वरदान तब साबित हुआ, जब उन्होंने महर्षि वेदव्यास के कहने पर बिना रुके महाभारत जैसे विशाल महाकाव्य को लिपिबद्ध किया। यह घटना गणेश जी को लेखन कला का भी देवता बनाती है।

सुख और समृद्धि का वरदान

भगवान विष्णु ने गणेश जी को यह वरदान दिया कि वे अपने भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि और खुशहाली लाएंगे। इसीलिए गणेश जी को 'रिद्धि-सिद्धि' का दाता भी कहा जाता है, जहां रिद्धि का अर्थ समृद्धि और सिद्धि का अर्थ सफलता है।

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एकदंत का सम्मान

महाभारत लिखते समय जब गणेश जी की कलम टूट गई तो उन्होंने अपने एक दांत को तोड़कर कलम बनाया। इस महान त्याग के बाद उन्हें 'एकदंत' के रूप में जाना गया और उन्हें इस त्याग के लिए विशेष सम्मान मिला। यह उनके समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा को दर्शाता है।

तो गणेश जी की उत्पत्ति की कहानी और उन्हें मिले वरदान हमें यह सिखाते हैं कि उनका महत्व केवल एक पूजा तक सीमित नहीं है। वे जीवन के हर पहलू में हमारे मार्गदर्शक हैं। 

उनका गजमुख होना यह दर्शाता है कि हर जीव में ईश्वर का वास है। उनका 'विघ्नहर्ता' स्वरूप हमें यह विश्वास दिलाता है कि अगर हम सच्चे मन से उनकी पूजा करें तो कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती।

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