गंगाजल सालों तक क्यों नहीं होता है खराब? जानिए इसके पीछे छुपा वैज्ञानिक राज

क्या आपको पता है, क्यों गंगा का पानी सालों बाद भी खराब नहीं होता और इसका असर हमारे जीवन पर कितना गहरा है? आइए जानें इस अनोखे चमत्कार की कहानी।

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Kaushiki
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भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा को मां गंगा के नाम से जाना जाता है। यह नदी केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक मात्र नहीं है। इसकी वैज्ञानिक विशेषताएं भी इसे अद्भुत बनाती हैं। भारत की सबसे लंबी नदियों में गंगा नदी शीर्ष स्थान पर है। इसे देश की सबसे पवित्र नदी माना जाता है। साथ ही साथ, गंगा के पानी का विशेष महत्व भी है।

यह बात हम सभी जानते हैं कि गंगा का पानी घर में लंबे समय तक रखा जा सकता है और यह कभी खराब नहीं होता। क्या आपने कभी सोचा है कि इसके पीछे क्या वैज्ञानिक कारण हो सकते हैं? इस लेख में हम गंगाजल की इस अद्भुत क्षमता और उसके पीछे छिपे रहस्यों की खोज करेंगे।

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भारत की पवित्रतम नदी गंगा

गंगा नदी का स्रोत उत्तराखंड के गोमुख से होता है और यह करीब 2,525 किलोमीटर की दूरी तय कर बंगाल की खाड़ी में मिलती है। गंगा को हिंदू धर्म में ‘मां’ का दर्जा प्राप्त है और यह अनेक पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है।

गंगा के पानी को ‘गंगाजल’ कहा जाता है, जिसे पवित्र माना जाता है। पारंपरिक मान्यता है कि गंगाजल में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पूजा-पाठ, हवन और धार्मिक अनुष्ठानों में गंगाजल का प्रयोग अमृत के समान होता है।

गंगाजल खराब क्यों नहीं होता

एक रिसर्च के मुताबिक 135 साल पहले की बात है जब भारत में अकाल पड़ा था और हैजा जैसी महामारियां फैलीं। उस समय इलाहाबाद (प्रयागराज) के संगम क्षेत्र में माघ मेला लगा था, जहां लाशें गंगा में बहाई जाती थीं। 

इस स्थिति में भी गंगा का जल संक्रमित नहीं हुआ और लोगों को कोई हानि नहीं हुई। ब्रिटिश बैक्टीरियोलॉजिस्ट अर्नेस्ट हैन्किन ने इस रहस्य की खोज की। उन्होंने पाया कि गंगा में ‘बैक्टीरियोफेज’ नामक वायरस होते हैं जो हैजा और अन्य बैक्टीरियल संक्रमणों के कारणों को खत्म कर देते हैं।

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वैज्ञानिक कारण जो गंगाजल को विशिष्ट बनाते हैं

बैक्टीरियोफेज वायरस

गंगा के पानी में लगभग एक हजार प्रकार के बैक्टीरियोफेज वायरस पाए जाते हैं, जो हानिकारक बैक्टीरिया को खत्म करने का काम करते हैं। अन्य नदियों की तुलना में गंगा में ये वायरस कई गुना अधिक पाए जाते हैं, जिससे इसका पानी स्वाभाविक रूप से शुद्ध रहता है।

सल्फर की अधिक मात्रा

गंगाजल में सल्फर की उच्च मात्रा होती है, जो इसे लंबे समय तक खराब होने से बचाती है। सल्फर के कारण पानी में जीवाणु विकास नहीं होता, जिससे बदबू भी नहीं आती।

ऑक्सीजन की उच्च मात्रा

गंगा में वायुमंडल से ऑक्सीजन अवशोषण की क्षमता अन्य नदियों से लगभग 20 गुना अधिक है। ऑक्सीजन पानी को सड़ने से बचाती है और बैक्टीरिया के विकास को रोकती है।

प्राकृतिक जड़ी-बूटियां और खनिज

हिमालय से निकलने वाली गंगा अपने रास्ते में कई प्राकृतिक जड़ी-बूटियां और खनिजों से होकर गुजरती है। ये तत्व पानी को प्राकृतिक रूप से शुद्ध और औषधीय गुणों से भरपूर बनाते हैं।

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गंगाजल का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में गंगा नदी का धार्मिक महत्व अत्यंत विशाल है। इसे केवल नदी नहीं, बल्कि जीवन देने वाली ‘मां’ के रूप में पूजा जाता है। हिंदू धर्म में गंगा का जल ‘पवित्र’ और ‘अमृत’ माना जाता है।

जीवन के अनेक महत्वपूर्ण अवसरों, जैसे पूजा, हवन, संस्कार, और तर्पण आदि में इसका प्रयोग अनिवार्य है। इसके अलावा, गंगा में स्नान करने से लोगों को पापों से मुक्ति और शारीरिक-मानसिक शुद्धि का आभास होता है। हर साल लाखों श्रद्धालु गंगा में स्नान करने और गंगा घाटों पर दर्शन करने के लिए आते हैं।

गंगा जल को लेकर सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी लोग रुचि दिखा रहे हैं। यूएई समेत कई देशों में गंगाजल की खोज और सर्च की संख्या में वृद्धि देखी गई है। यह दर्शाता है कि गंगा का महत्व अब वैश्विक स्तर पर भी पहचाना जा रहा है।

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