तृष्णाएं छोड़ें : इच्छाओं को वश में करने से सब होगा हासिल, वासना का करें त्याग

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तृष्णाएं छोड़ें : इच्छाओं को वश में करने से सब होगा हासिल, वासना का करें त्याग

कामनाएं पूर्ण होने पर भी संतोष नहीं होता, वरन् पहले से भी और अधिक प्यास बढ़ती है । कहते हैं कि मनुष्य अपूर्ण हैं, किंतु अगर वह अपनी वासनाएं छोड़ दे तो इसी जीवन में पूर्ण हो सकता है। तृष्णा एक बंधन है, जो आत्मा को जन्म-मरण के जाल में जकड़े हुए हैं। जिसे सांसारिक वस्तुओं की तृष्णा हरदम सताती रहती है, भला वह भवबंधनों से किस प्रकार पार हो सकेगा? प्रपंच का फेरा तभी तक है जब तक की विभिन्न प्रकार की इच्छाओं ने प्राणी को बांध रखा है।

संतोष से ही सब मिलेगा

जिन्हें मुक्ति की आकांक्षा है, जिन्हें पूर्ण सत्य की खोज करनी है उनके लिए सर्वोत्तम साधन ये है कि वे अपनी इच्छाओं को वश में करें। इस संसार में संतोष से बढ़ कर कोई धन नहीं है। कोई मनुष्य देखनें में कितना ही स्वाधीन क्यों न प्रतीत हो, पर वह बेचारा वास्तव में एक कैदी के समान है, जिसके मन में तृष्णा का डेरा पड़ा हुआ है। चाहे वह कितना भी बड़ा धनी क्यों न हो, भिखारी से ही उसकी तुलना की जा सकती है।

वासनाओं का त्याग करें

यदि तुम संसार में कुछ श्रेष्ठ कर्म करना चाहते हो तो आवश्यक है कि तृष्णा और वासनाओं का परित्याग कर दो। कर्म करो, अपने कर्म में त्रुटि मत रखो, परंतु फल के लिए प्यासे मत फिरो। जो करेगा, उसे मिलेगा। किंतु जो पाने के लिए व्याकुल फिरेगा, उसे आपत्तियों के पहाड़ सिर पर उठाने पड़ेंगे।

द सूत्र the sootr मन को वश में करना सबसे कठिन