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इस बार गुरु पूर्णिमा का पर्व 10 जुलाई, गुरुवार को मनाया जाएगा। इस दिन लोग अपने-अपने गुरुओं की पूजा करते हैं। ये कोई भी हो सकता है यानी गुरु धार्मिक भी हो सकते हैं और आध्यात्मिक भी।
गुरू पूर्णिमा का महत्व शिक्षा देने वाले गुरू से है। इस दिन छात्र अपने गुरू को सम्मान देते हैं। अगर आप इस दिन अपने गुरू को सम्मान देना चाहते हैं, और उन्हें धन्यवाद देना चाहते है, तो हम आपको ऐसे सम्मान के तरीके के बारे में बताएंगे।
जिससे गुरू पूर्णिमा के अवसर पर अपने प्रशन्न करके उनसे आशर्वाद ले सकते हैं। साथ ही आप गुरू से जिदंगी में आगे बढ़ने के भी टिप्स लें सकते हैं। गुरू से कुछ इस तरह का खास टिप्स लें सकते हैं। जो आगे आपको हर एक परेशानियों से बचाएगा।
जीवन जीने की कला
गुरु हमें सिखाते हैं कि धर्म केवल पूजा-पाठ तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे आचरण, विचार और व्यवहार का मूल आधार है। गुरु से यह सीखें कि सत्य, अहिंसा, संयम, सेवा और कर्तव्य पर आधारित जीवन को कैसे जी सकते हैं। जो व्यक्ति धर्म के अनुसार चलता है, उसके जीवन में किसी भी प्रकार की परेशानी स्थायी नहीं रह सकती।
विवेक और निर्णय की क्षमता
गुरु हमें यह बताते हैं कि जीवन में हर निर्णय भावनाओं से नहीं, बल्कि विवेक से लेना चाहिए। सत्संग और गुरु की शिक्षा से हम यह जान सकते हैं कि कब किस कार्य को करना उचित है और किससे बचना चाहिए। विवेकशील निर्णय भविष्य को मंगलमय बनाते हैं।
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कर्म योग की महत्ता
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन – यह गीता का सिद्धांत गुरु से सीख सकते है। गीता में के अनुसार केवल कर्म पर ध्यान देना और फल की चिंता न करना, यही सच्चा योग है। गुरु हमें यह सिखाते हैं कि अपने कर्म को पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से करें, फल अपने आप प्राप्त होगा।
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सत्संग और साधना का खास महत्व
गुरु पूर्णिमा पर यह संकल्प लें कि सत्संग और साधना को जीवन का अभिन्न अंग बनाएंगे। गुरु बताते हैं कि आत्मा की शुद्धि और मन की स्थिरता के लिए ध्यान, जाप, और सत्संग अत्यंत जरूरी हैं। ये अभ्यास हमें मानसिक शांति और आध्यात्मिक ऊंचाई प्रदान करते हैं.
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क्षमाशीलता और नम्रता का करें अभ्यास
गुरु का एक प्रमुख गुण होता है क्षमा और विनम्रता..इस दिन गुरु से यह सीखें कि जीवन में कैसे क्रोध, द्वेष और घृणा को त्याग कर क्षमा और नम्रता को अपनाया जाए. यह गुण न केवल रिश्तों को सुदृढ़ बनाते हैं, बल्कि हृदय में दिव्यता का वास करते हैं.
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