आज से होलाष्टक शुरू, इस दौरान नहीं करने चाहिए मांगलिक काम, मायके में रहती हैं नवविवाहिताएं, दान करना होता है शुभ

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BP Shrivastava
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आज से होलाष्टक शुरू, इस दौरान नहीं करने चाहिए मांगलिक काम, मायके में रहती हैं नवविवाहिताएं, दान करना होता है शुभ

BHOPAL. हिंदी कलेंडर के मुताबिक, हर बार चैत्र मास की प्रतिपदा ति​थि को होली का त्योहार मनाने की परंपरा है। इसके आठ रोज पहले होलाष्टक प्रारंभ हो जाते हैं। इन आठ दिनों में लगातार ग्रहों की स्थिति बदलती रहती है। साथ ही इस दौरान शुभ कार्य करने वर्जित माने जाते हैं। इस बार होलाष्टक 27 फरवरी यानी आज से प्रारंभ हो रहे हैं और इसका समापन 7 मार्च को होगा। अगले दिन 8 मार्च को होली मनाई जाएगी।



 ...इसलिए नहीं मानते होलाष्टक के समय को शुभ



हिंदू मान्यताओं के अनुसार अगर कोई व्यक्ति होलाष्टक के दौरान कोई मांगलिक काम करता है तो उसे कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं व्यक्ति के जीवन में कलह, बीमारी और अकाल मृत्यु का साया भी मंडराने लगता है। इसलिए होलाष्टक के समय को शुभ नहीं माना जाता है। 



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होलाष्टक के दौरान इन कामों को करने से बचें




  • इस दौरान शादी, विवाह, भूमि पूजन, गृह प्रवेश या कोई नया बिजनेस खोलना वर्जित माना जाता है। 


  • शास्त्रों के अनुसार, होलाष्टक शुरू होने के साथ 16 संस्कार जैसे नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार जैसे शुभ कार्यों पर भी रोक लग जाती है। 

  • किसी भी प्रकार का हवन, यज्ञ कर्म भी इन दिनों में नहीं किया जाता है। 

  • इसके अलावा नव विवाहिताओं को इन दिनों में मायके में रहने की सलाह दी जाती है। 



  • होलाष्टक के दौरान ये काम जरूर करें




    •  मान्यता है कि होलाष्टक में दान जैसा शुभ कार्य किया जा सकता है। जिससे सभी कष्ट दूर हो सकता है।


  •  इस समय आप पूजा पाठ भी कर सकते हैं।



  • आज से शुरू हो रहे हैं होलाष्टक



    इस साल होलिका दहन 7 मार्च 2023 को होगा। 8 मार्च को रंग वाली होली खेली जाएगी। होली के आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाते हैं। इसलिए इस वर्ष 27 फरवरी यानी आज से होलाष्टक शुरू हो जाएंगे और 7 मार्च तक रहेंगे। 



    होलाष्टक का महत्व



    ये आठ दिनों का समय जिसे होलाष्टक कहते हैं। वो भक्ति की शक्ति का प्रतीक माना गया है। कहते हैं कि इस समय के दौरान यदि तप किया जाए तो बहुत शुभ होता है। होलाष्टक पर पेड़ की एक शाखा काटकर उसे जमीन में लगाने का रिवाज़ हैं। उसके बाद इस शाखा पर रंग-बिरंगे कपड़े बांधे जाते हैं। बता दें कि इसी शाखा को प्रह्लाद का रूप माना जाता है।



    होलाष्टक की कहानी



    होलाष्टक पर एक प्रचलित कथा है कि होलाष्टक के दिन ही भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग करने की कोशिश की थी जिसके चलते महादेव क्रोधित हो गए थे। इसी दौरान उन्होंने अपने तीसरे नेत्र से काम देवता को भस्म कर दिया था। हालांकि, कामदेव ने गलत इरादे से भगवान शिव की तपस्या भंग नहीं की थी। कामदेव की मृत्यु के बारे में पता चलते ही पूरा देवलोक शोक में डूब गया। इसके बाद कामदेव की पत्नी देवी रति ने भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना की और अपने मृत पति को वापस लाने की मनोकामना मांगी जिसके बाद भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया था।


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