गायत्री मंत्र में है वेदों का सार, विश्वामित्र ने सामान्य जन तक पहुंचाया, 90 से ज्यादा देशों के लोग गायत्री परिवार से जुड़े हैं

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Atul Tiwari
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गायत्री मंत्र में है वेदों का सार, विश्वामित्र ने सामान्य जन तक पहुंचाया, 90 से ज्यादा देशों के लोग गायत्री परिवार से जुड़े हैं

BHOPAL. गायत्री मां से ही चारों वेदों की उत्पति मानी जाती हैं। इसलिए वेदों का सार भी गायत्री मंत्र को माना जाता है। मान्यता है कि चारों वेदों का ज्ञान लेने के बाद जिस पुण्य की प्राप्ति होती है, अकेले गायत्री मंत्र को समझने मात्र से चारों वेदों का ज्ञान मिलता जाता है। गायत्री मां को हिंदू भारतीय संस्कृति की जन्मदात्री मानते हैं।



कौन हैं मां गायत्री 

 

चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियां सभी गायत्री से ही पैदा हुए माने जाते हैं। वेदों की उत्पति के कारण इन्हें वेदमाता कहा जाता है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की आराध्य भी इन्हें ही माना जाता है, इसलिए इन्हें देवमाता भी कहा जाता है। समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं, इस कारण गायत्री को ज्ञान-गंगा भी कहा जाता है। इन्हें भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता है। गायत्री को मां पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी की अवतार भी कहा जाता है।

 

ऐसे हुआ गायत्री का विवाह

 

कहा जाता है कि एक बार भगवान ब्रह्मा यज्ञ में शामिल होने जा रहे थे। मान्यता है कि यदि धार्मिक कार्यों में पत्नी साथ हो तो उसका फल अवश्य मिलता है, लेकिन उस समय किसी कारणवश ब्रह्मा जी के साथ उनकी पत्नी सावित्री मौजूद नहीं थीं, इस कारण उन्होंनें यज्ञ में शामिल होने के लिए वहां मौजूद देवी गायत्री से विवाह कर लिया। 



गायत्री का अवतरण

 

माना जाता है कि सृष्टि के आदि में ब्रह्मा जी पर गायत्री मंत्र प्रकट हुआ। मां गायत्री की कृपा से ब्रह्मा जी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रूप में की। शुरुआत में गायत्री सिर्फ देवताओं तक सीमित थी, लेकिन जिस प्रकार भगीरथ कड़े तप से गंगा को स्वर्ग से धरती पर उतार लाए, उसी तरह विश्वामित्र ने भी कठोर साधना कर मां गायत्री की महिमा अर्थात गायत्री मंत्र को सर्वसाधारण तक पंहुचाया।



कब मनाई जाती है गायत्री जयंती?

 

गायत्री जयंती की तिथि को लेकर भिन्न-भिन्न मत हैं। कुछ स्थानों पर गंगा दशहरा और गायत्री जयंती की तिथि एक समान बताई जाती है तो कुछ इसे गंगा दशहरा से अगले दिन यानि ज्येष्ठ मास की एकादशी को मनाते हैं। वहीं, श्रावण पूर्णिमा को भी गायत्री जयंती के उत्सव को मनाया जाता है। श्रावण पूर्णिमा के दिन गायत्री जयंती को अधिकतर स्थानों पर स्वीकार किया जाता है। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी-एकादशी को भी मान्यतानुसार गायत्री जयंती मनाई जाती है। 



मां गायत्री की महिमा

 

गायत्री की महिमा में प्राचीन भारत के ऋषि-मुनियों से लेकर आधुनिक भारत के विचारकों तक अनेक बातें कही हैं। वेद, शास्त्र और पुराण तो गायत्री मां की महिमा गाते ही हैं। अथर्ववेद में मां गायत्री को आयु, प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली देवी कहा गया है।

 

महाभारत के रचयिता वेद व्यास कहते हैं गायत्री की महिमा में कहते हैं जैसे फूलों में शहद, दूध में घी सार रूप में होता है वैसे ही समस्त वेदों का सार गायत्री है। यदि गायत्री को सिद्ध कर लें तो यह कामधेनु (इच्छा पूरी करने वाली दैवीय गाय) के समान है। जैसे गंगा शरीर के पापों को धो कर तन मन को निर्मल करती है, उसी प्रकार गायत्री रूपी ब्रह्म गंगा से आत्मा पवित्र हो जाती है।

 

गायत्री को सर्वसाधारण तक पहुंचाने वाले विश्वामित्र कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने तीनों वेदों का सार तीन चरण वाला गायत्री मंत्र निकाला है। गायत्री से बढ़कर पवित्र करने वाला मंत्र और कोई नहीं है। नियमित रूप से गायत्री का जप करने वाला मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है। 



गायत्री परिवार के संस्थापक पं. श्रीराम शर्मा



श्रीराम शर्मा आचार्य एक समाज सुधारक, दार्शनिक और अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक थे। आचार्य श्रीराम शर्मा आचार्य का जन्म 20 सितंबर,1911 को उत्तर प्रदेश के आगरा के आंवलखेड़ा गांव में हुआ था। उनके पिता पंडित रूपकिशोर शर्मा जी जमींदार घराने के थे और दूर-दराज के राजघरानों के राजपुरोहित, उद्भट विद्वान, भगवत कथाकार थे। उनकी मां का नाम दंकुनवारी देवी था। पं. श्रीराम शर्मा की पत्नी का नाम भगवती देवी शर्मा था। पंडित मदन मोहन मालवीय ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार कर गायत्री मंत्र की दीक्षा दी। 15 साल की उम्र से 24 साल की उम्र तक हर साल 24 लाख बार गायत्री मंत्र का जप किया। चार बार हिमालय गए। स्वतंत्रता आंदोलन मे भी भाग लिया। तीन बार जेल गए। 1971 में हरिद्वार में शांतिकुंज की स्थापना की। यहीं से गायत्री परिवार की शुरुआत हुई। 2 जून 1990 को हरिद्वार में पं. श्रीराम शर्मा ब्रह्मलीन हो गए। 994 में श्रीराम शर्मा के उत्तराधिकारी के रूप में उनके दामाद डॉ. प्रणव पंड्या ने संस्था की कमान संभाली और 2002 में डॉक्टर पंड्या ने शांतिकुंज को नई दिशा देने के लिए देव संस्कृति विश्वविद्यालय की स्थापना की।



पत्नी बेटी का यज्ञोपवीत कराया



नारी जागरण की शुरुआत श्रीराम शर्मा ने अपने घर से की। उन्होंने अपनी पत्नी और बेटी को गायत्री मंत्र से दीक्षित किया और उनका यज्ञोपवीत संस्कार करवाया। उस वक्त महिलाओं के लिए गायत्री मंत्र का जाप करना और यज्ञोपवीत धारण करना सनातन धर्म में वर्जित था।



कर्मकांड की परिभाषा बदली



आचार्य ने सनातन धर्म में कर्मकांड कराने वाले पुरोहितों की परिभाषा बदल डाली। हिंदू धर्म में धार्मिक कर्मकांड कराने का अधिकार केवल ब्राह्मणों को ही है, लेकिन आचार्य ने इस प्रथा को जाति-उन्मूलन अभियान चलाकर तोड़ा। आदिवासियों, पिछड़ों, दलितों और समाज के दूसरे उपेक्षित वर्गों को वैदिक कर्मकांड की शिक्षा-दीक्षा देकर उन्हें पुरोहित के रूप में स्थापित किया। आज शांतिकुंज में अलग-अलग जातियों से जुड़े लोग वैदिक कर्मकांड कराने वाले पुरोहित के रूप में देखे जा सकते हैं।



ऐसा है गायत्री परिवार



डॉ. प्रणव पंड्या के मुताबिक, इस समय गायत्री परिवार के सदस्यों-साधकों की संख्या भारत में करीब 15 करोड़ और अन्य देशों में करीब 50 लाख है। लाखों साधक अपनी मेहनत की कमाई में से रोज 20 पैसे से लेकर एक रुपया तक जमा करते हैं और उसे ही शांतिकुंज को देते हैं। श्रद्धा हो तो भोजन एवं अन्य व्यवस्थाओं के लिए कुछ ज्यादा दे देते हैं। इसी से निर्माण एवं अन्य योजनाओं की व्यवस्था होती है। हरिद्वार के आसपास के क्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के साधक नियमित रूप से अन्न भेजते हैं। गेहूं, चावल, शक्कर की पूर्ति यही लोग करते हैं। इसके अलावा र्इंटें, सीमेंट, सरिया यही लोग दान करते हैं।



गायत्री परिवार असम, नागालैंड, झारखंड, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, तेलंगाना एवं गुजरात के सुदूर क्षेत्रों में भी है। भारत से बाहर गायत्री परिवार का काम 1972 में पं. श्रीराम शर्मा आचार्य की अफ्रीका यात्रा से ही शुरू हो गया था। इसके बाद तो परिवार का विश्वव्यापी स्वरूप उभरकर आया है। अमेरिका, रूस, कनाडा, इंग्लैंड, डेनमार्क, फिजी, दक्षिण अफ्रीका, मॉरिशस, केन्या और तंजानिया जैसे देशों में केंद्र बन चुके हैं। आज दुनिया के 90 देशों में गायत्री परिवार के साधक कार्य कर रहे हैं।



आचार्य के विचार




  • जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं- एक वे जो सोचते हैं पर करते नहीं, दूसरे जो करते हैं पर सोचते नहीं।


  • विचारों के अन्दर बहुत बड़ी शक्ति होती है । विचार आदमी को गिरा सकते हैं और विचार ही आदमी को उठा सकते हैं। आदमी कुछ नहीं हैं ।

  • लक्ष्य के अनुरूप भाव उदय होता है और उसी स्तर का प्रभाव क्रिया में पैदा होता है।

  • लोभी मनुष्य की कामना कभी पूर्ण नहीं होती।

  • मानव के कार्य ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है।

  • अव्यवस्तिथ मस्तिष्क वाला कोई भी व्यक्ति संसार में सफल नहीं हो सकता।

  • जीवन में सफलता पाने के लिए आत्मा विश्वास उतना ही जरूरी है ,जितना जीने के लिए भोजन। कोई भी सफलता बिना आत्मविश्वास के मिलना असंभव है।

  • मैं इस संसार का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हूं।

  • अवसर तो सभी को जिन्‍दगी में मिलते हैं, किंतु उनका सही वक्‍त पर सही तरीके से इस्‍तेमाल कुछ ही कर पाते हैं।

  •  इस संसार में प्यार करने लायक दो वस्तुएं हैं- एक दुख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता।

  • जब हम ऐसा सोचते हैं की अपने स्वार्थ की पूर्ति में कोई आंच ना आने दी जाए और दूसरों से अनुचित लाभ उठा लें तो वैसी ही आकांक्षा दूसरे भी हम से क्यों ना करेंगे।


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