मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थित राधा कृष्ण का यह मंदिर धार्मिक दृष्टि से अनोखा है। यहां पर भगवान की मूर्तियां नहीं हैं, लेकिन फिर भी भक्तों का तांता लगा रहता है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां राधा कृष्ण के वस्त्रों और ग्रंथों की पूजा की जाती है, न कि मूर्तियों की। यह 400 साल पुरानी परंपरा है, जो निजानंद संप्रदाय से जुड़ी हुई है। यहां के भक्त राधा कृष्ण के वस्त्रों, मुकुट और ग्रंथों को पूजा का माध्यम मानते हैं।
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अनोखी पूजा की परंपरा
मान्यता है कि, यह मंदिर निजानंद संप्रदाय से संबंधित है, जिसमें मूर्ति पूजा के बजाय भगवान के वस्त्रों, ग्रंथों और मोर मुकुट की पूजा की जाती है। इस संप्रदाय की शुरुआत प्राणनाथ जी महाराज ने की थी, जिन्होंने यह परंपरा शुरू की थी। इस पूजा विधि के मुताबिक, राधा कृष्ण के वस्त्रों की पूजा से भक्तों के जीवन में शांति, समृद्धि और कष्टों का निवारण होता है।
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मंदिर में हैं चार वस्तुएं
मंदिर में प्रवेश करते ही आपको चार वस्तुएं दिखाई देती हैं—एक ग्रंथ, एक मोर मुकुट और राधा कृष्ण के वस्त्र, जिनका श्रृंगार इस तरह किया जाता है कि ये मूर्तियों की तरह दिखाई देते हैं। यह पूजा विधि पूरी श्रद्धा और भक्ति पर आधारित है। भक्त मानते हैं कि इस पूजा से उन्हें भगवान की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में सुख-शांति आती है।
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चांदी के सिंहासन पर स्थापित ग्रंथ
मंदिर में चांदी के सिंहासन पर श्रीकृष्ण स्वरूप साहब ग्रंथ स्थापित किया गया है, जिसे मोर मुकुट के साथ राधा कृष्ण की पोशाक पहनाई जाती है। यह ग्रंथ इस तरह सजाया जाता है कि यह राधा कृष्ण की मूर्तियों जैसी प्रतीत होता है। मंदिर का वातावरण पूरी तरह भक्तिमय और शांति से भरा हुआ होता है।
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देशभर में फैले निजानंद संप्रदाय के मंदिर
यह पूजा परंपरा केवल इंदौर में ही नहीं, बल्कि देशभर के निजानंद संप्रदाय के मंदिरों में पालन की जाती है। इस संप्रदाय के लोग राधा कृष्ण को ‘राधा श्याम’ के नाम से पुकारते हैं और यही पूजा विधि कई मंदिरों में अपनाई जाती है। निजानंद संप्रदाय के अनुयायी विश्वास करते हैं कि इस पूजा से न केवल उनका धार्मिक कर्तव्य पूरा होता है, बल्कि उनकी आत्मा को शांति मिलती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं।
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प्राणनाथ जी महाराज का योगदान
निजानंद संप्रदाय की स्थापना प्राणनाथ जी महाराज ने की थी, जिन्होंने राधा कृष्ण के वस्त्रों और ग्रंथों की पूजा करने की परंपरा को शुरू किया। उनका मानना था कि इस पूजा से भगवान की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे जीवन में सुख और शांति का वास होता है।
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