/sootr/media/media_files/2025/10/06/kartik-mahina-2025-2025-10-06-15-23-40.jpg)
Kartik Mahina 2025: हिंदू पंचांग में कार्तिक मास को बारह मासों में सबसे श्रेष्ठ और पवित्र माना गया है। धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस पवित्र महीने का नामकरण भगवान शिव और माता पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र कुमार कार्तिकेय के नाम पर हुआ है। भगवान कार्तिकेय को दक्षिण भारत में मुरुगन या स्कंद स्वामी के नाम से जाना जाता है।
उनका जन्म, पराक्रम और असुरों पर विजय की गाथा इस मास की महत्ता को कई गुना बढ़ा देती है। यह महीना न केवल भगवान विष्णु और राधा रानी की भक्ति के लिए विशेष है बल्कि यह कार्तिकेय द्वारा की गई कठोर साधना और उनकी वीरता का भी माह माना जाता है।
तारकासुर वध की कथा
कार्तिक मास के नामकरण की कहानी सीधे तारकासुर नामक क्रूर और अहंकारी राक्षस के अत्याचारों और देवताओं की रक्षा से जुड़ी हुई है:
तारकासुर का वरदान
पौराणिक काल में तारकासुर नामक दैत्य ने अपनी कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया। उसने वरदान मांगा कि उसका वध केवल भगवान शिव और उनकी पत्नी की संतान के हाथों ही हो सकता है। उस समय भगवान शिव माता सती के वियोग के कारण घोर तपस्या में लीन थे और समस्त संसार से विरक्त थे। तारकासुर ने सोचा कि शिव कभी विवाह नहीं करेंगे इसलिए वह अजेय हो जाएगा।
देवताओं का संकट
वरदान पाते ही तारकासुर ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया। उसके बढ़ते अत्याचारों और अधर्म से पीड़ित होकर सभी देवता और ऋषि-मुनि परेशान हो गए। तब देवताओं ने भगवान विष्णु की सलाह पर शिव जी से पुनः विवाह करने और संसार की रक्षा के लिए पुत्र उत्पन्न करने की प्रार्थना की।
पार्वती का तप और कार्तिकेय का जन्म
इसी बीच, माता सती ने पार्वती रूप में जन्म लिया और शिव जी को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या कर रही थीं। देवी पार्वती की भक्ति और देवताओं के अनुरोध के फलस्वरूप, महादेव ने उनसे विवाह किया। शिव-पार्वती के विवाह के बाद कुमार कार्तिकेय का जन्म हुआ। लेकिन उनका पालन-पोषण शिव-पार्वती से दूर एक वन में छह कृत्तिकाओं (सप्त ऋषियों की पत्नियां) ने मिलकर किया। इसीलिए उनका नाम कार्तिकेय पड़ा।
ये खबर भी पढ़ें...
कार्तिक महीना का नामकरण
कार्तिकेय स्वामी ने देवताओं के सेनापति बनकर तारकासुर से भीषण युद्ध किया और अपनी दिव्य शक्ति से उसका संहार किया। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, तारकासुर का वध और कार्तिकेय की यह महान विजय कार्तिक मास के दौरान ही हुई थी।
इस विजय के बाद भगवान शिव और माता पार्वती कार्तिकेय स्वामी से अत्यंत प्रसन्न थे। इस महान पराक्रम और साधना से प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने इस पवित्र महीने को 'कार्तिक' नाम दिया।
कार्तिक मास में भगवान कार्तिकेय की पूजा का विशेष महत्व है। खासकर इस मास की षष्ठी तिथि को जिसे स्कंद षष्ठी भी कहते हैं। उनकी पूजा करने से भक्तों को शक्ति, साहस और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
ये खबर भी पढ़ें...
दीवाली, छठ और तुलसी विवाह कब? जानें कार्तिक मास 2025 के 10 सबसे बड़े पर्वों की लिस्ट और पूजा विधि
ज्ञान, नियंत्रण और सफलता के प्रतीक
धार्मिक मान्यता (पौराणिक कथाएं) के मुताबिक, भगवान कार्तिकेय को ज्ञान, शक्ति और नियंत्रण का प्रतीक माना जाता है। उनके पूजन के कुछ प्रमुख लाभ और उनसे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें:
अहंकार का नाश:
भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर है। मोर अपनी सुंदरता और चंचलता के लिए जाना जाता है, जिसे नियंत्रण करना कठिन होता है। मोर को अपना वाहन बनाकर कार्तिकेय ने यह संदेश दिया कि वे मन की चंचलता और अहंकार को भी नियंत्रित कर सकते हैं। जो भक्त उनकी पूजा करते हैं उन्हें अपनी इंद्रियों को वश में रखने की शक्ति मिलती है।
जीवन में खुशहाली:
कुछ मान्यताओं के मुताबिक, भगवान कार्तिकेय ने संसार से विरक्त होकर इसी मास में साधना की थी। कहा जाता है कि इस माह में कार्तिकेय के दर्शन करने से घरों में खुशहाली और सुख-शांति बनी रहती है। मध्य प्रदेश के ग्वालियर जैसे कुछ स्थानों पर भगवान कार्तिकेय का मंदिर वर्ष में केवल एक बार कार्तिक पूर्णिमा को ही खुलता है जहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
कोर्ट-कचहरी और धन लाभ:
भगवान कार्तिकेय शक्ति और ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि कोर्ट-कचहरी के मामलों, जमीन-जायदाद के विवादों या धन से जुड़ी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए भगवान कार्तिकेय की आराधना करना अत्यंत लाभदायक होता है।
इस तरह कार्तिक मास न केवल भगवान विष्णु या राधा रानी के दामोदर स्वरूप के लिए बल्कि कुमार कार्तिकेय के पराक्रम और त्याग को सम्मान देने का भी पवित्र समय है।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
ये खबर भी पढ़ें...
इस बार दिवाली 2025 पर 20 और 21 का चक्कर, जानें लक्ष्मी पूजा का सबसे श्रेष्ठ मुहूर्त और सही तारीख