सावन मास की शुरुआतः भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाते हुए रखें इन बातों का ध्यान

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सावन मास की शुरुआतः भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाते हुए रखें इन बातों का ध्यान

आज से सावन का महीना शुरू हो रहा है, जो 22 अगस्त तक चलेगा। हिंदू धर्म में सावन का महीना बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। ये महीना भोलेनाथ को बहुत प्रिय होता हैं। इस महीने में शिव भक्त भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करते हैं। कुछ लोग इस महीने में व्रत रखते हैं। मान्यता है कि इस महीने में विधि- विधान से पूजा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। भोलेनाथ को भांग, धतूरा, बेलपत्र, फूल, फल आदि चीजें अर्पित की जाती है। भोलेनाथ को बेलपत्र बहुत पसंद है।

माता पार्वती के पसीने से बेलपत्र की उत्पत्ति

स्कंदपुराण में बेलपत्र का जिक्र किया गया है। इस पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने अपना पसीना पोंछकर फेंका जिसकी कुछ बूंदे मदार पर्वत पर गिरी जिससे बेल के वृक्ष की उत्पत्ति हुई है। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में माहेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती और फूलों में गौरी का वास माना जाता है। इसलिए भोलेनाथ को बेलपत्र अति प्रिय हैं, लेकिन इसे चढ़ाने से पहले कुछ नियमों के बारे में जान लें।

क्या है नियम

भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाते समय उसकी दिशा का खास ध्यान रखना चाहिए। हमेशा भोलनाथ को चिकनी सतह से बेलपत्र चढ़ाना चाहिए। इस दिशा में बेलपत्र चढ़ाने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी। भोलेनाथ को बेलपत्र चढ़ाते समय अनामिका, अंगूठे और मध्यम अंगुली की मदद से चढ़ाएं। इसके साथ- साथ जल की धार अर्पित करें। हमेशा बेलपत्र चढ़ाते समय इस बात का ध्यान दें कि तीन पत्तियां हों। पत्तियां कटी- फटी नहीं होनी चाहिए। मान्यता है कि बेलपत्र के मूलभाग में सभी तीर्थों का वास होता है। शास्त्रों के अनुसार, बेलपत्र कभी अशुद्ध नहीं होता है। पहले से चढ़ाया बेलपत्र फिर से धोकर चढ़ाया जा सकता है। चतुर्थी, नवमी, अष्टमी और अमावस्या की तिथियों को बेलपत्र चढ़ाना वर्जित माना जाता है। इसके अलावा संक्रांति और सोमवार को भी बेलपत्र नहीं तोड़ना चाहिए। पूजा में इस्तेमाल करने के लिए एक दिन पहले तोड़कर रख लें।

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