नरक चौदस को छोटी दिवाली, काली चौदस, या रूप चौदस भी कहा जाता है। ये दिवाली से एक दिन पहले मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था और 16,000 कन्याओं को उसके अत्याचार से मुक्त कराया था। इसे आत्मशुद्धि, बुराई का नाश, और सुंदरता और स्वास्थ्य के लिए पूजा का दिन माना जाता है।
नरक चौदस का महत्व
नरक चौदस के दिन लोग स्नान कर अपनी आत्मा और शरीर को शुद्ध करते हैं। यह दिन नरक से मुक्ति और पापों के नाश का प्रतीक है। इस दिन किए गए स्नान से मनुष्य को पापों से मुक्ति और अगले जन्म में शुभ फल प्राप्त होते हैं। साथ ही, इस दिन रूप और सौंदर्य के लिए भी पूजा की जाती है, इसलिए इसे रूप चौदस भी कहा जाता है।
नरक चौदस की कथा
नरकासुर एक शक्तिशाली और क्रूर राक्षस था। उसने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। उसने 16,000 कन्याओं का अपहरण किया था और उन्हें बंदी बनाकर रखा था। उसके अत्याचारों से सभी देवी-देवता और मनुष्य परेशान हो गए थे। अंततः सभी देवता भगवान श्रीकृष्ण के पास मदद के लिए गए। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ नरकासुर का वध किया और सभी कन्याओं को उसकी कैद से मुक्त किया। इस विजय के उपलक्ष्य में नरक चौदस का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को याद कर बुराई के नाश की प्रार्थना की जाती है।
नरक चौदस की पूजा विधि
- नरक चौदस के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन तेल और उबटन का प्रयोग कर स्नान करना शुभ माना जाता है, इसे 'अभ्यंग स्नान' कहते हैं।
- शाम को घर के मुख्य द्वार और आंगन में दीप जलाना चाहिए, जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो।
- भगवान कृष्ण, माता काली और यमराज की विशेष पूजा की जाती है। उनके समक्ष धूप, दीप, पुष्प और नैवेद्य अर्पित किया जाता है।
- पूजा के दौरान स्वयं को चंदन या रोली का तिलक लगाएं।
- रात के समय दीप जलाकर यमराज की पूजा की जाती है और घर के बाहर दीप रखा जाता है ताकि अंधकार और नकारात्मकता का नाश हो।
पूजा की सामग्री
- तिल का तेल
- उबटन ( हल्दी, बेसन, और चंदन से बना )
- दीपक और घी
- धूप और अगरबत्ती
- पुष्प ( विशेष रूप से गेंदे के फूल )
- फल और मिठाई ( नैवेद्य )
- जल से भरा हुआ कलश
- पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर )
- तिलक के लिए रोली या चंदन
- प्रसाद के लिए मिठाई और फल
पूजा मंत्र
नरकासुर वध का मंत्र:
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
यमराज के लिए प्रार्थना मंत्र:
मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति॥
अभ्यंग स्नान मंत्र:
अभ्यंग स्नानं करिष्येऽहं नरक प्रीतये सदा।
तुलसी जलसंयुक्तं पापहान्यै हरिं स्मरेत्॥
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