News Strike : खत्म होने का नाम नहीं ले रही रावत की मुश्किलें, इन दिग्गजों के गुस्से से होगा बड़ा नुकसान ?

मध्यप्रदेश बीजेपी में भी राम निवास रावत के रास्ते में कांटे बिछने शुरू हो गए हैं। बीजेपी के दिग्गज ही उनकी खिलाफत पर उतर आए हैं। खास बात ये है कि ये खिलाफत दबी छुपी नहीं है बल्कि, खुलकर सामने आ रही है। आइए बताते हैं इस नाराजगी के कारण... 

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Harish Divekar
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मध्‍य प्रदेश | News Strike :  मोहन यादव कैबिनेट में मंत्री बने राम निवास रावत का हाल अब इमरती देवी जैसा होने वाला है। कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आना राम निवास रावत को ज्यादा फल नहीं रहा है। अब तो वो मंत्री भी बन चुके हैं। इसके बावजूद मुश्किलें है कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। आशंका तो अब इस बात की भी है कि कहीं रावत उपचुनाव ही न हार जाएं। न जीतेंगे चुनाव न रहेगा मंत्रीपद। ऐसी दो खास वजह हैं जिसके चलते उनके ही क्षेत्र में उनकी हार होती दिखाई देती है। आपको वही दो खास कारण बताता हूं। 

रावत को समझना होगा जहां फूल होते हैं कांटे भी वहीं उगते हैं

विजयपुर से विधायक राम निवास रावत धुर कांग्रेसी रहे हैं। कांग्रेस के टिकट से वो एक दो बार नहीं बल्कि, छह बार विधायक रहे हैं। इस बार भी वो जीते कांग्रेस के ही टिकट से, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले वो भाजपाई हो गए और अब मोहन कैबिनेट में मंत्री भी बन गए हैं। अटकलों पर यकीन करें तो बहुत जल्द वो मलाईदार विभाग की कमान संभालेंगे। मंत्रीपद मिलने के बाद शायद राम निवास रावत को भी लगा होगा कि अब राह में बस फूल ही फूल हैं, लेकिन उन्हें ये भूलना नहीं चाहिए कि जहां फूल होते हैं कांटे भी वहीं उगते हैं।

पैराशूट नेताओं को कैबिनेट में जगह मिलने के बाद बीजेपी में नाराजगी है

बीजेपी में भी राम निवास रावत की रास्ते में कांटे बिछने शुरू हो गए हैं। बीजेपी के दिग्गज ही उनकी खिलाफत पर उतर आए हैं। खास बात ये है कि ये खिलाफत दबी छुपी नहीं है। बल्कि, खुलकर सामने आ रही है। एक के बाद एक पैराशूट नेताओं को मोहन कैबिनेट में जगह मिलने के बाद बीजेपी में अंदरखानों में खासी नाराजगी है। 

  • अजय विश्नोई, जयंत मलैया, ओमप्रकाश सकलेचा, रघुनंदन शर्मा और गोपाल भार्गव जैसे दिग्गज बीजेपी विधायक इस बात पर नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। विश्नोई ने इस मुद्दे पर खुलकर कह दिया है कि वो शर्तों पर आए हैं इसलिए उन्हें पद मिल रहा है, जबकि हम समर्पण पर काम करने वाले नेता हैं। जो लोग शर्तों पर आ रहे हैं उन्हें इनाम मिल रहा है।
  • हालांकि, गोपाल भार्गव और जयंत मलैया इस मुद्दे पर विश्नोई जितने मुखर नहीं है। गोपाल भार्गव का इस बारे में कहना है कि वरिष्ठता से मंत्री पद मिल रहा होता तो मैं नवीं बार का विधायक हूं। उन्होंने ये भी कहा कि ज्यादा खुलकर बोलते हैं तो दूसरे नुकसान हो जाते हैं। 
  • पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा ने भी तीखा विरोध दर्ज कराया है। उन्होंने भोपाल में ही एक कार्यक्रम में कहा कि बाहरी लोग दलाल के रूप में एजेंट बनकर सत्ता में घुस जाते हैं। ऐसे लोगों से पार्टी को बचाने की जिम्मेदारी सीएम की है। उन्होंने जिस मंच से ये बात कही उसी मंच पर खुद सीएम मोहन यादव भी मौजूद थे।
  • जयंत मलैया और ओमप्रकाश सकलेचा ने ये साफ कर दिया कि वो पार्टी फोरम पर ही अपनी बात रखेंगे। जाहिर है ये नेता पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर विरोध दर्ज नहीं करवाना चाहते, लेकिन अंदर ही अंदर विरोध सुलगने लगा है। ये विरोध लाजमी भी है क्योंकि मोहन मंत्रिमंडल में पूरे पांच ऐसे नेता हैं जिन्हें पैराशूट नेता कहा जा सकता है।

फिलहाल मोहन केबिनेट में 32 पद भर चुके हैं और गुंजाइश 35 पदों की है

सीएम मोहन यादव के मंत्रिमंडल में ज्योतिरादित्य सिंधिया के चार करीबी ऐदल सिंह कंसाना, गोविंद राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तोमर और तुलसीराम सिलावट शामिल हैं। ये कांग्रेस के उन 22 विधायकों में से थे, जो मार्च 2020 में बीजेपी में शामिल हो गए थे, जिसके बाद प्रदेश की कमलनाथ सरकार गिर गई थी। रावत के बाद अब कांग्रेस से आयातित और बीजेपी की सरकार में कैबिनेट मंत्रियों की संख्या 5 हो गई है और बहुत जल्द ये संख्या छह हो जाए तो कोई ताज्जुब नहीं होगा। असल में अमरवाड़ा सीट पर उपचुनाव हैं। इस सीट पर कांग्रेस से बीजेपी में आए कमलेश शाह अगर जीत जाते हैं तो यकीनन उन्हें भी मंत्रीपद देना ही होगा। फिलहाल मोहन केबिनेट में 32 पद भर चुके हैं और गुंजाइश 35 पदों की है। इसी में से एक पद कमलेश शाह के खाते में जाएगा, जबकि दो पद इमरजेंसी के लिए बचा कर रखे जा सकते हैं। इस बात से साफ है कि फिलहाल पुराने और तजुर्बेकार नेताओं को यादव केबिनेट में जगह मिलने की कोई संभावना नहीं है।

जिन सीटों पर दल बदल हुआ वहां कार्यकर्ताओं में खासी नाराजगी

दिग्गज नेताओं की नाराजगी का खतरा अब राम निवास रावत के चुनाव पर मंडरा रहा है। ये मैं आपको पहले भी बहुत बार बता चुका हूं कि जिन-जिन सीटों पर दल बदल हुआ है वहां कार्यकर्ताओं में खासी नाराजगी है। बीजेपी का कोर कार्यकर्ता इस बात से नाराज है कि बड़े नेताओं के साथ आए आयातित कार्यकर्ता बीजेपी की परंपरा को नहीं समझते हैं और अपने हिसाब से काम करते हैं। उनकी वजह से मूल कार्यकर्ता की अनदेखी हो रही है। बीजेपी खुद भी बहुत बार इस खतरे को महसूस कर चुकी है कि मूल कार्यकर्ता की अनदेखी से पार्टी में असंतोष फैल रहा है वो जीत की संभावनाएं कम हो जाती हैं। अब राम निवास रावत की सीट पर भी यही संकट मंडरा सकता है। उनकी सीट पर सबोटाज की पूरी संभावनाएं हैं। इस बार राम निवास रावत जब विधायक बने तब उन्होंने बीजेपी के बाबू लाल मेवरा को हराया। बाबू लाल मेवरा वो शख्स हैं जो विजयपुर से ही दो बार विधायक रह चुके हैं। रावत के आने से उनका सियासी भविष्य दांव पर लग गया है। तो क्या मेवरा उपचुनाव में रावत के लिए कांटा नहीं बनेंगे। हो सकता है खुलकर नाराजगी न जाहिर कर सकें, लेकिन ये तो संभव है कि बीजेपी के मेवरा समर्थित कार्यकर्ता ही उदासीन या नाराज नजर आए। इसकी वजह से रावत की हार की संभावनाएं बढ़ सकती हैं।

रावत की तरह इमरती देवी को भी उपचुनाव से पहले मंत्री बनाया था

अब आपको बताता हूं कि मैंने ये क्यों कहा कि रावत का हाल इमरती देवी जैसा हो सकता है। सबसे पहले इमरती देवी के इतिहास को देखिए। जब तक कांग्रेस में थीं डबरा से उनकी जीत केक वॉक की तरह थी। वो इस सीट से बहुत आसानी से जीत रही थीं। कमलनाथ सरकार में वो मंत्री भी रहीं। साल 2020 में दल बदल कर ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में आ गईं। रावत की तरह उन्हें भी उपचुनाव से पहले ही मंत्री पद से नवाजा गया। बीजेपी में आने के बाद इमरती देवी फुल कॉन्फिडेंस के साथ डबरा में उपचुनाव की तैयारी करती रहीं, लेकिन उस चुनाव में उन्हें हार मिली। इसके बाद हालिया चुनाव में भी इमरती देवी जीत नहीं सकीं। जबकि जीत की खातिर उन्होंने जमकर मेहनत की, लेकिन ये मेहनत 2023 में भी खाली गई। इसकी सबसे बड़ी वजह थी डबरा के वोटर्स। डबरा सीट का वोटर कांग्रेस का कोर वोटर कहा जा सकता है। जिस वजह से कांग्रेस में रहते हुए इमरती देवी आसानी से जीतती रहीं, लेकिन पार्टी बदलने के बाद जीत मुश्किल हो गई। 

विजयपुर के मतदाताओं ने ज्यादातर कांग्रेस का ही साथ दिया है 

अब इसी तरह से रावत की सीट का समीकरण भी समझ लीजिए। रावत विधायक हैं विजयपुर से। अंदर की बात ये है कि साल 2018 से ही रावत का इस सीट से मोहभंग हो गया था। 2018 के चुनाव में वो सबलगढ़ से टिकट चाहते थे, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें विजयपुर से ही मैदान में उतारा। नतीजा ये हुआ कि रावत चुनाव हार गए। हालांकि, 2024 में उन्होंने चुनाव जीतकर फिर से हार का बदला ले लिया, लेकिन इससे आप विजयपुर के मतदाता की तासीर समझ सकते हैं। रावत बेशक छह बार के विधायक हैं, लेकिन हर बार उनकी जीत आसान रही है ये कहना गलत होगा। विजयपुर के मतदाता ने कभी कांग्रेस को तो कभी बीजेपी को मौका दिया है, लेकिन ज्यादातर साथ कांग्रेस का ही दिया है। 2018 में बीजेपी यहां सेंध लगाने में कामयाब रही थी। उसकी वजह खुद रावत की सक्रियता कम होना था क्योंकि वो यहां से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। इस हिसाब से माना देखा जाए तो कांग्रेस का प्रत्याशी चयन बहुत कुछ रावत की जीत का समीकरण तय करेगा। कांग्रेस किसी एक्टिव प्रत्याशी को टिकट देती है तो उसकी जीत की संभावनाएं ज्यादा होंगी क्योंकि फिर मूल कांग्रेसी वोटर भटकेगा नहीं।

वोटर की इमानदारी, दिग्गज नेताओं की नाराजगी और कार्यकर्ताओं की उदासीनता तीन ऐसे फेक्टर्स  बन सकते हैं जो रावत की जीत मुश्किल कर दें और अगर रावत हारे तो ये भी तय है कि उन्हें मंत्रीपद से इस्तीफा देना पड़ेगा।

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