ऐसे शुरू हुआ था सावन सोमवार का व्रत, जानें पहली बार कब और क्यों रखा गया था ये व्रत

सावन सोमवार व्रत की शुरुआत देवी पार्वती और चंद्रदेव की पौराणिक कथाओं से जुड़ी है। जानें इसका धार्मिक महत्त्व, विधि और कैसे यह व्रत शिवकृपा प्राप्त करने का साधन है...

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Kaushiki
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सावन का महीना हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह महीना भगवान शिव की पूजा का सबसे पुण्यकाल माना जाता है। विशेष रूप से सावन के प्रत्येक सोमवार को रखे जाने वाले व्रत को सावन सोमवार व्रत कहा जाता है।

यह व्रत न केवल भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है, बल्कि इसका आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व भी है। तो ऐसे में आइए जानते हैं कि सावन सोमवार व्रत की शुरुआत कब और क्यों हुई थी। 

सावन सोमवार व्रत की पौराणिक कथा

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देवी पार्वती की तपस्या

सावन सोमवार व्रत की शुरुआत देवी पार्वती की तपस्या से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी।

नारद मुनि ने उन्हें मार्गदर्शन देते हुए सावन महीने के प्रत्येक सोमवार को उपवास, एकाग्र ध्यान और शिवलिंग पर जलाभिषेक करने का विधान बताया। माता पार्वती ने पूरे श्रद्धा भाव से इस व्रत को किया और उनके अटूट संकल्प से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।

यही कारण है कि यह व्रत अविवाहित कन्याओं के लिए अत्यधिक लाभकारी माना जाता है, क्योंकि इसे रखने से उन्हें योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।

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चंद्रदेव की कथा

एक अन्य प्रचलित कथा चंद्रदेव से जुड़ी हुई है। कहते हैं कि चंद्रमा ने एक बार भगवान शिव का अनादर कर दिया था जिसके कारण शिवजी ने उन्हें श्राप दे दिया कि उनका तेज क्षीण हो जाएगा।

यह श्राप से मुक्ति पाने के लिए चंद्रदेव ने सावन माह के सोमवार को उपवास रखा और शिवलिंग पर गंगाजल और दूध से अभिषेक किया।

उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने चंद्रदेव को श्रापमुक्त कर दिया। तब से यह व्रत संकटों से मुक्ति, मानसिक शांति और रोगों से छुटकारा पाने के उपाय के रूप में प्रचलित हो गया।

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सावन सोमवार व्रत का महत्त्व

ये व्रत का महत्त्व केवल विवाह-योग्यता और संकट निवारण तक सीमित नहीं है। यह व्रत समर्पण, संयम और श्रद्धा का प्रतीक है। इस व्रत के माध्यम से शिवभक्त भगवान शिव से जीवन-सुख, समृद्धि और मोक्ष की कामना करते हैं।

प्राचीन काल से लेकर आज तक, लाखों शिवभक्त इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास के साथ करते आ रहे हैं। इस व्रत में व्रती पूरे दिन उपवासी रहते हैं और व्रत के विधि मुताबिक शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, दूध और मधुर पुष्प अर्पित करते हैं। साथ ही, “ॐ नमः शिवाय” का मंत्र जपते हुए संध्या आरती के बाद व्रत का पारण करते हैं।

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सावन सोमवार व्रत की विधि

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सावन सोमवार व्रत में व्रति स्नान करने के बाद निर्जल या फलाहार रहते हुए शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र और पुष्प अर्पित करते हैं।

  • स्नान और उपवासी रहना: व्रती सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और निर्जल या फलाहार रहकर व्रत करते हैं।
  • शिवलिंग पर जलाभिषेक: व्रत के दौरान शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र और फूल अर्पित किए जाते हैं।
  • मंत्रजाप: “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते हुए व्रति पूरी श्रद्धा से शिव की पूजा करते हैं।
  • संध्या आरती: व्रत के समाप्ति पर संध्या के समय शिव की आरती की जाती है।

सावन सोमवार व्रत से जुड़ी मान्यताएं

  • संकटों से मुक्ति: यह व्रत मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभकारी माना जाता है।
  • सौभाग्य की प्राप्ति: अविवाहित कन्याओं के लिए यह व्रत एक उपयुक्त जीवनसाथी की प्राप्ति का साधन माना जाता है।
  • शिवकृपा की प्राप्ति: यह व्रत पूरी श्रद्धा और विश्वास से भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का एक उत्तम उपाय है।

सावन सोमवार व्रत विशेष रूप से अविवाहित कन्याओं के लिए फायदेमंद है, क्योंकि इसे रखने से योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, यह व्रत किसी भी संकट से मुक्ति, मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए भी लाभकारी है।

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