नवरात्रि के दिनों में जहां भी मां दुर्गा की पूजा होती है वहां माता की मूर्ति के साथ परम शक्तिशाली असुर महिषासुर की भी प्रतिमा माता के साथ होती है। इस मूर्ति में माता त्रिशूल से महिषासुर का वध कर रही होती हैं। तस्वीरों में भी माता के साथ महिषासुर को दर्शाया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि माता के साथ महिषासुर क्यों होता है। दरअसल इसके पीछे माता का करुणामय हृदय है जो शत्रुओं पर दया भाव रखता है।
क्या है कथा
कथा है कि रंभ नाम का एक असुर जिसने अग्निदेव की तपस्या से एक पुत्र प्राप्त किया। जो एक महिषी यानी भैंस से उत्पन्न हुआ। इसलिए वह महिषासुर कहलाया। यह असुर वरदान के कारण जब चाहे मनुष्य और भैंस का रूप ले सकता था। ब्रह्माजी की तपस्या करके इसने वरदान पा लिया कि कोई स्त्री ही उसका अंत कर सकती है। इसलिए यह देवताओं के लिए अजेय था और शक्ति के मद में आकर इसने देवलोक पर अधिकार कर लिया। महिषासुर के शासन में देवता और मनुष्य भयभीत रहने लगे। ऐसे में सभी देवी देवताओं ने अपने तेज को मिलाकर एक तेजोमय शक्ति को प्रकट किया जो स्त्री रूप में अवतरित हुई। यही मां दुर्गा कहलाई। सभी देवी देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र से देवी को सजाया।
देवी के हाथों मृत्यु प्राप्त कर राक्षस का हुआ कल्याण
मां दुर्गा ने महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा। देवी और महिषासुर में 9 दिनों तक महायुद्ध हुआ। महिषासुर को अपने अंत समय में माता दुर्गा की शक्ति का अहसास हुआ और उस असुर ने देवी से प्रार्थना की, हे माता आपके हाथों मेरा वध हो और मुझे मुक्ति मिले। मैं आपकी शरण में हूं। आप मेरा उद्धार करें। शरण में आए हुए असुर पर माता ने करुणा दृष्टि दिखाई और वरदान दिया कि मेरे हाथों से मृत्यु पाकर तुम्हें मेरा सायुज्य प्राप्त होगा। मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा होगी।
माता के इसी वरदान के कारण देवी भागवत पुराण में बताया गया है कि माता के साथ महिषासुर का वध करते हुए माता की मूर्ति बनाकर देवी की नौ दिनों तक पूजा करनी चाहिए इससे भक्तों को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होगी।