व्यक्ति जब अहंकार, क्रोध, वासना और अन्य पशु प्रवृत्ति की बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह एक शून्य का अनुभव करता है। यह शून्य जिस अवधि में आध्यात्मिक धन से भरता है, यह अवधि “नवरात्रि” है। इस प्रयोजन के निमित्त , व्यक्ति सभी भौतिकवादी, आध्यात्मिक धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए देवी की पूजा करता है। वर्ष में दो बार आने वाला यह समय ही “नवरात्रि” है|
शून्य से उबारती है नवरात्रि
नवरात्रि उत्सव देवी अंबा (विद्युत) का प्रतिनिधित्व है। वसंत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। इन दोनों विशेष समय खास तौर पर मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते हैं। त्यौहार की तिथियां चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं। नवरात्रि पर्व, मां-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति अर्थात उदात्त, परम, परम रचनात्मक ऊर्जा की पूजा का सबसे शुभ और अनोखी अवधि मानी गई है। यह पूजा विधान वैदिक युग से पहले, अर्थात प्रागैतिहासिक काल से चला आ रहा है। वैदिक युग के बाद से, नवरात्रि के दौरान की भक्ति प्रथाओं में से एक रूप गायत्री साधना का हैं।
शक्तिपीठों का अलग-अलग महत्व
भारत देश में अनेकों शक्तिपीठ हैं |नवरात्रि में देवी के शक्तिपीठ और सिद्धपीठों पर भारी मेले लगते हैं। माता के सभी शक्तिपीठों का महत्व अलग-अलग हैं, परन्तु माता का स्वरूप सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक ही हैं। वे जम्मू कटरा के पास वैष्णो देवी बन जाती हैं। तो कहीं वे चामुंडा रूप में पूजी जाती हैं। हिमाचल प्रदेश मे नैना देवी नाम से उनकी ख्याति है तो वहीं सहारनपुर में शाकुंभरी देवी को इस अवसर पर लाखों लोग शीश नवाते हैं| लोक मान्यताओ के अनुसार लोगों का मानना है कि नवरात्रि के दिन व्रत करने से माता प्रसन्न होती हैं। यह पूजा देवी की ऊर्जा और शक्ति की होती है। प्रत्येक दिन दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित है।
व्यक्ति आसानी से बुरी प्रवृत्तियों और धन पर विजय प्राप्त कर तो लेता है, पर वह सच्चे ज्ञान से वंचित रहता है। ज्ञान मानवीय जीवन जीने के लिए आवश्यक है भले ही वह सत्ता और धन के साथ समृद्ध हो। इसलिए, नवरात्रि के दौरान देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। सभी पुस्तकों और अन्य साहित्य सामग्रियों को एक स्थान पर इकट्ठा कर दिया जाता हैं और एक दीया देवी आह्वान और आशीर्वाद लेने के लिए, मन्दिर में स्थापित देवता के सामने जलाया जाता है।
नारी की शक्ति के साथ करें गुणों का सम्मान
नवरात्रि में सारी प्रार्थना, आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश के उद्देश्य के साथ की जाती हैं। इसमें अष्टमी व नवमी का काफी महत्व है, अष्टमी पर 'यज्ञ' किया जाता है। यह एक बलिदान है जो देवी दुर्गा का सम्मान तथा उनको विदा देता है| नौवां दिन नवरात्रि का अंतिम दिन है। यह महानवमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन कन्या पूजन होता है। जिसमें उन नौ कन्याओं की पूजा का विधान है। इन नौ कन्याओं को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है। कन्याओं का सम्मान तथा स्वागत करने के लिए उनके पैर धोए जाते हैं। पूजा के अंत में कन्याओं को उपहार के रूप में नए कपड़े प्रदान किए जाते हैं।
इस धरती की हर नारी शक्ति का स्वरूप है जिस तरह हम नवरात्रि में मातृशक्ति के अनेक स्वरूपों का पूजन करते हैं, उनका स्मरण करते हैं। उसी प्रकार नारी के गुणों का हम सम्मान करें। हमारे परिवार में रहने वाली माता, पत्नी, बहन, बेटी के साथ ही समाज की हर नारी को सम्मान दें। तभी मां शक्ति की आराधना की सच्ची सार्थकता साबित हो सकेगी।