भगवान शंकर को प्रसन्न करने करें ये सरल उपाय, संकट से मिलेंगी मुक्ति

अगर आप किसी घोर संकट में फंस गए हो सोमवार को सायंकाल के समय घट-घट वासी भूतभाव भगवान शंकर की पूजा कर इस सबसे सरल उपाय को एक बार करके देखिए... कैसै भोलेनाथ आपको सभी संकटों से मुक्ति दिला देंगे।

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Shyam Kishor Suryawanshi
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The easiest way to get rid of serious problems by pleasing Lord Shankar immediately

हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार सातों दिन किसी न किसी देवताओं की विशेष रूप से पूजा की जाती है, लेकिन इन शास्त्रों दिनों में सबसे खास दिन सोमवार के दिन को माना जाता है, कहा जाता है कि सोमवार का दिन भूत भावन भगवान भोलेनाथ महादेव अर्थात सब की सभी कामनाओं को पूरी करने वाले “ईश्वर जो मनुष्य ही नहीं, बल्कि समस्त देवी देवताओं सहित प्रजापित ब्रह्मा जी एवं जगत के पालनहार भगवान विष्णुजी के भी आराध्य देव माने जाते हैं और सभी के द्वारा पूजे जाते हैं, तथा सभी की मनोकामनाओं को पूरी करते हैं।

शिव चालीसा के पाठ से प्रसन्न होते हैं भोलेनाथ

वेद शास्त्रों के अनुसार भगवान शंकर की पूजा सोमवार के दिन एक तो सुबह ब्रह्म मुहूर्त में और दूसरा सायं काल को गोधुली बेला में करने का विधान है कहा जाता है इस समय भगवान शंकर की पूजा करने से वह तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं। अगर कोई भक्त सोमवार के दिन गोधूली बेला सायंकाल के समय में गाय के घी का दो मुखी दीपक जला करके भगवान शंकर की इस स्तुति श्री शिव चालीसा का पाठ श्रद्धापूर्वक करता है तो भगवान शंकर तुरंत उसी समय से उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होने का आशीर्वाद देते हैं।

अथ श्री शिव चालीसा स्तुति

॥ दोहा ॥

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

॥ चौपाई ॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।

कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये।

मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।

छवि को देखि नाग मन मोहे॥

मैना मातु की हवे दुलारी।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।

सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ।

या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा।

तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

किया उपद्रव तारक भारी।

देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

आप जलंधर असुर संहारा।

सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

किया तपहिं भागीरथ भारी।

पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं।

सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला।

जरत सुरासुर भए विहाला॥

कीन्ही दया तहं करी सहाई।

नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा।

जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।

कमल नयन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।

भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी।

करत कृपा सब के घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।

भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।

येहि अवसर मोहि आन उबारो॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।

संकट से मोहि आन उबारो॥

मात-पिता भ्राता सब होई।

संकट में पूछत नहिं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी।

आय हरहु मम संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदा हीं।

जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन।

मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।

शारद नारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमः शिवाय।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

जो यह पाठ करे मन लाई।

ता पर होत है शम्भु सहाई॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी।

पाठ करे सो पावन हारी॥

पुत्र हीन कर इच्छा जोई।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे।

ध्यान पूर्वक होम करावे॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा।

ताके तन नहीं रहै कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

जन्म जन्म के पाप नसावे।

अन्त धाम शिवपुर में पावे॥

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

॥ दोहा ॥

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

।।इति श्री शिव चालीसा संपूर्णः।।

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