कांवड़ यात्रा कितने तरह के होते हैं, जानें कौन सी यात्रा मानी जाता है सबसे कठिन

कांवड़ यात्रा सावन माह में भगवान शिव की पूजा के लिए की जाती है, जिसमें श्रद्धालु गंगाजल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। इस यात्रा के मुख्य प्रकार हैं: सामान्य, खड़ी, डाक और दंड कांवड़।

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Kaushiki
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कल 11 जुलाई से सावन का पवित्र महीना शुरु होने जा रही है। ऐसे में बहुत से भक्त भगवान शिव के आशीर्वाद के लिए कांवड़ यात्रा करते है। कांवड़ यात्रा भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसमें श्रद्धालु भगवान शिव की पूजा और आशीर्वाद के लिए यात्रा करते हैं।

यह यात्रा विशेष रूप से सावन माह में होती है जिसमें लाखों शिव भक्त हरिद्वार, गंगाजल लाने और शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिए कांवड़ यात्रा पर जाते हैं।

इस यात्रा की शुरुआत समुद्र मंथन की मान्यता से जुड़ी हुई है, जब भगवान शिव ने हलाहल विष पिया था और देवताओं ने उनका जलाभिषेक किया। ये यात्रा भगवान परशुराम और रावण से भी जुड़ी हुई है। तो ऐसे में आज हम जानेंगे कि कांवड़ यात्रा के कितने प्रकार के होते हैं और इनका महत्व क्या है।

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कांवड़ यात्रा के प्रकार

इस यात्रा के कई प्रकार होते हैं, जिनमें से मुख्य रूप से चार प्रमुख प्रकार की कांवड़ यात्रा प्रसिद्ध हैं। ये हैं – सामान्य कांवड़, खड़ी कांवड़, डाक कांवड़ और दंड कांवड़।

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सामान्य कांवड़ 

यह सबसे सामान्य और सरल प्रकार की यात्रा होती है, जिसे बड़ी संख्या में लोग करते हैं। इस यात्रा में श्रद्धालु कांवड़ लेकर चलते हैं और जब थकान महसूस होती है, तो कांवड़ को जमीन पर रखकर आराम करते हैं। यात्रा में लोग "बोल बम" के जयकारे लगाते हुए यात्रा करते हैं। यह यात्रा बहुत ही साधारण और श्रद्धा से भरी होती है।

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खड़ी कांवड़

खड़ी यात्रा सामान्य कांवड़ से थोड़ी कठिन होती है। इस यात्रा में दो साथी होते हैं, जो कांवड़ को एक साथ उठाकर चलने का प्रयास करते हैं।

एक साथी थकने के बाद कांवड़ को दूसरे साथी से बदलता है, लेकिन इस यात्रा में कांवड़ को कभी भी जमीन पर नहीं रखा जाता। यह यात्रा कठिन होती है क्योंकि कांवड़ को स्थिर नहीं रहने दिया जाता और यह हमेशा उठाकर चलनी पड़ती है।

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डाक कांवड़

डाक कांवड़ सबसे कठिन प्रकार की कांवड़ यात्रा होती है। इसमें गंगाजल भरने के बाद उसे 24 घंटों के भीतर शिवलिंग पर जलाभिषेक के लिए पहुंचाना होता है।

इस यात्रा में कांवड़ यात्री निरंतर चलते रहते हैं या तेज दौड़ते रहते हैं। इस यात्रा में उन्हें किसी भी तरह की रुकावट नहीं होती और उनके लिए एक अलग रास्ता भी निर्धारित किया जाता है। यह यात्रा शारीरिक रूप से बेहद कठिन होती है।

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दंड कांवड़

दंड कांवड़ यात्रा एक और कठिन और लंबी यात्रा होती है। इस यात्रा में कांवड़ यात्री दंड बैठक करते हुए यात्रा पूरी करते हैं। इसे पूरा करने में लगभग एक महीने का समय लगता है। यह यात्रा शारीरिक और मानसिक रूप से कठिन होती है और इसे पूरी श्रद्धा और समर्पण से किया जाता है।

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कांवड़ यात्रा के नियम

हर प्रकार की कांवड़ यात्रा के कुछ नियम होते हैं, जिनका पालन करना जरूरी होता है:

  • सामान्य कांवड़ में श्रद्धालु आराम कर सकते हैं और अपनी यात्रा को आराम से करते हैं।
  • खड़ी कांवड़ में कांवड़ को स्थिर न होने देना और यात्रा के दौरान हमेशा एक साथी से मदद लेना होता है।
  • डाक कांवड़ में यात्रा के दौरान किसी प्रकार की रुकावट या आराम की अनुमति नहीं होती है। इसे तेजी से और बिना रुके पूरा करना होता है।
  • दंड कांवड़ में यात्री दंड बैठकों के साथ यात्रा करते हैं, जो कठिन और लंबी होती है।
  • यात्रा के समय "बोल बम" के नारे लगाए जाते है।
  • यह यात्रा भारत की प्रमुख धार्मिक यात्राओं में शामिल है।
  • कांवड़ यात्रा में श्रद्धा और भक्ति की भावना प्रधान होती है।

धार्मिक यात्रा

कांवड़ यात्रा एक महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा है जो विशेष रूप से सावन महीने में भगवान शिव के भक्तों द्वारा की जाती है। इस यात्रा में श्रद्धालु गंगाजल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए लंबी यात्रा करते हैं। 

यह यात्रा मुख्य रूप से हरिद्वार, बद्रीनाथ, गंगोत्री, और अन्य पवित्र स्थानों से शुरू होती है। कांवड़ यात्रा से श्रद्धालु भोलेनाथ की कृपा प्राप्त करने की कामना करते हैं।

इस दौरान भक्त ऊंची आवाज में "बोल बम" के साथ गंगाजल लेकर शिवालयों तक पहुंचते हैं और उनके मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। यह यात्रा भारत की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में से एक मानी जाती है।

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