BHOPAL. वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है। इस बार एकादशी का व्रत कल यानी 16 अप्रैल को रखा जाएगा। वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की उपासना की जाती है। पुराणों के अनुसार वरुथिनी एकादशी समस्त पापों का नाश करती है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए ये दिन बहुत उत्तम माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा के साथ वरुथिनी एकादशी का उपवास करता है और भगवान विष्णु की उपासना करता है उसके सभी संकटों से छुटकारा मिल जाता हैं। इस दिन भगवान श्रीहरि का स्मरण करने और उनके मंत्रों का जाप करने मात्र से जीवन के समस्त संकट खत्म हो जाते हैं।
मान्यता मृत्यु के बाद मिलता है मोक्ष
वरुथिनी एकादशी के दिन उपवास रखने से ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद मोक्ष मिलता है। इस दिन तिल दान करने वाले को स्वर्ण दान करने से भी अधिक शुभ माना गया है। इस दिन उपवास करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत करने से सूर्य ग्रहण के समय दान करने के बराबर फल मिलता है।
जन्म-मरण के चक्र से मिलता है छुटकारा
वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य लोक और परलोक दोनों में सुख भोगता है और जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा मिलता है। पुराणों के अनुसार इस दिन व्रत रखने से भूमि दान करने से भी ज्यादा पुण्यों की प्राप्ति होती है। जितना पुण्य मनुष्य को गंगा स्नान करने से प्राप्त होता है उससे अधिक पुण्य वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मिलता है। शास्त्रों के अनुसार अगर कोई महिला वरुथिनी एकादशी का उपवास करती है तो उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
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ये है पौराणिक कथा
प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा का राज्य था। वह अत्यन्त दानशील और तपस्वी राजा था। एक समय जब वह जंगल में तपस्या कर रहा था। उसी समय जंगली भालू आकर उसका पैर चबाने लगा। इसके बाद भालू राजा को घसीट कर वन में ले गया। तब राजा घबराया, तपस्या धर्म का पालन करते हुए उसने क्रोध न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की। राजा की पुकार सुनकर भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए़ और चक्र से भालू का वध कर दिया। तब तक भालू राजा का एक पैर खा चुका था। इससे राजा मान्धाता बहुत दुखी थे। भगवान श्री विष्णु ने राजा की पीड़ा को देखकर कहा कि- मथुरा जाकर तुम मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा और वरूथिनी एकादशी का व्रत करो, इसके प्रभाव से भालू ने तुम्हारा जो अंग काटा है, वह अंग ठीक हो जाएगा। तुम्हारा यह पैर पूर्वजन्म के अपराध के कारण हुआ है। भगवान विष्णु की आज्ञा अनुसार राजा ने इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ किया और वह फिर से सुन्दर अंग वाला हो गया।