धनतेरस पर क्यों जलाया जाता है यम दीपक, जानें यम दीया जलाने की पूरी विधि और यमलोक तक प्रकाश पहुंचाने का रहस्य

कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी यानी धनतेरस पर मृत्यु के देवता यमराज के लिए दीपक जलाया जाता है। जानें यम का दीया जलाने की सही तिथि, दक्षिण दिशा में दीया रखने के नियम और महत्व।

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Kaushiki
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Yam Deepak on Dhanteras
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यम दीपक: हिन्दू धर्म में दीपावली का पांच दिवसीय उत्सव न केवल प्रकाश का पर्व है बल्कि यह जीवन, स्वास्थ्य और आयु की कामना का भी त्योहार है। इन पांच दिनों की शुरुआत धनतेरस से होती है। इसी दिन शाम को एक विशेष दीपक जलाया जाता है, जिसे यम का दीया या यम दीपक कहा जाता है। 

यह दीपक मृत्यु के देवता यमराज को समर्पित होता है। इस परंपरा का गहरा धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि यम के नाम से दीया जलाने से घर के सदस्यों को अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है और पूरे परिवार को दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

यह दीया घर के अंधकार को दूर करने के साथ-साथ परिवार के जीवन पर आने वाले संकटों को भी हर लेता है। 2025 में यह पवित्र दीप दान 18 अक्टूबर, 2025 को किया जाएगा। आइए, इस विशेष दिन से जुड़ी कुछ जरूरी जानकारी को विस्तार से जानते हैं।

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यम दीपक 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

यम का दीया हमेशा कार्तिक मास (kartik mahina) के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर जलाया जाता है, जिसे हम आम भाषा में धनतेरस कहते हैं। इस दीप दान का काम संध्याकाल या प्रदोष काल में करना सबसे शुभ माना जाता है।

  • 18 अक्टूबर 2025 (शनिवार) 

    यम दीपक जलाया जाएगा। यह दिन धनतेरस के रूप में भी मनाया जाता है।

  • त्रयोदशी तिथि का समय

    त्रयोदशी तिथि का आरंभ - 18 अक्टूबर 2025 को दोपहर 12 बजकर 18 मिनट पर होगा।

    त्रयोदशी तिथि का समापन - 19 अक्टूबर 2025 को दोपहर 01 बजकर 51 मिनट पर होगा।

  • दीप दान का शुभ समय

    यम का दीप दान हमेशा संध्याकाल में करना शुभ माना जाता है। शुभ समय के लिए आपको अपने स्थानीय पंचांग के मुताबिक सूर्यास्त का समय देखना होगा।

त्रयोदशी तिथि का अधिकतर हिस्सा 18 अक्टूबर को है और दीपावली के उत्सव में धनतेरस का पर्व भी इसी दिन मनाया जाता है, इसलिए यम दीपक 2025 भी इसी दिन जलाया जाएगा।

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क्यों जलाया जाता है यम का दीया 

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, यम दीपक जलाने की परंपरा का संबंध यमराज से है।

दीवाली के पहले क्यों और कैसे होती है यमराज की पूजा 

यम दीपक जलाने की परंपरा का कारण एक पौराणिक कथा में छिपा है। एक समय राजा हंस का पुत्र था, जिसके विवाह के चौथे दिन ही सांप के काटने से उसकी मृत्यु निश्चित थी।

उसकी नवविवाहित पत्नी ने अपनी सूझबूझ से पति को यमराज से बचा लिया। उसने अपने घर के चारों ओर और दरवाजे पर खूब सारे दीपक जलाए, जिनकी रोशनी से यमदूतों का मार्ग भ्रमित हो गया और वे उसके पति के प्राण हरण किए बिना ही लौट गए।

इस घटना के बाद, कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी (धनतेरस) की शाम को यमराज को दीप दान करने की परंपरा शुरू हुई। इस दीप दान का उद्देश्य परिवार को अकाल मृत्यु के भय से बचाना और दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त करना है।

दीया हमेशा घर के बाहर, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जलाया जाता है। इस दिन यमराज के लिए दीया जलाकर एक तरह से उन्हें दीप दान किया जाता है। माना जाता है कि यह दीया यमदूतों को मार्ग दिखाता है और उन्हें प्रसन्न करता है, जिससे वे उस घर के सदस्यों को कष्ट नहीं देते।

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यम दीपक जलाने के नियम

यम का दीया जलाते समय कुछ विशेष नियमों का पालन करना जरूरी माना गया है। इन नियमों का पालन करने से ही दीप दान का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

दीया कैसा होना चाहिए

चौमुखी दीपक: 

मान्यता के मुताबिक, यम दीपक हमेशा चौमुखी होना चाहिए, यानी उसमें चार बत्तियां लगाई जाती हैं। यह चारों दिशाओं से परिवार पर आने वाले संकटों को दूर करने का प्रतीक है।

इस दीये में सरसों के तेल का उपयोग किया जाता है। सरसों का तेल शनि देव और स्वास्थ्य से भी संबंधित माना जाता है। दीया मिट्टी का या आटे से बनाया हुआ होना चाहिए। आटे का दीया सबसे शुद्ध और शुभ माना जाता है।

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यम का दीया कहां और किस दिशा में रखें

मान्यता के मुताबिक, यह दीया हमेशा घर के बाहर जलाया जाता है न कि घर के अंदर। इसे घर के मुख्य द्वार पर या दहलीज पर रखना चाहिए। कुछ लोग इसे नाली के पास या कूड़े के ढेर के पास भी रखते हैं, जो जीवन की नश्वरता को दर्शाता है लेकिन मुख्य नियम इसे मुख्य द्वार के बाहर रखने का है।

दिशा

यम का दीया हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जलाना चाहिए। दक्षिण दिशा को यमराज की दिशा माना गया है। इस दिशा में दीपक जलाने से यमराज प्रसन्न होते हैं और भक्तों को सभी भयों से मुक्ति मिलती है। दीये का मुख दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए, ताकि उसका प्रकाश यमलोक की ओर जाए।

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दीप दान की विधि और प्रार्थना 

  • धनतेरस की शाम को स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें।

  • एक चौमुखी दीया लें, उसमें सरसों का तेल और चार बत्तियां लगाएं।

  • दीया जलाते समय हाथ जोड़कर यह प्रार्थना करनी चाहिए:

    "मृत्युनां दण्डपाशाभ्यां कालेन श्यामया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति।"

    अर्थ: "त्रयोदशी के इस दीप दान से मृत्यु के बंधन से मुक्त करने वाले, काल और देवी श्यामा के साथ रहने वाले सूर्यपुत्र यमराज मुझ पर प्रसन्न हों।"

  • दीया जलाने के बाद, उसे घर के बाहर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके रख दें। इस दीये को रखने के बाद इसे वापस पलटकर नहीं देखना चाहिए।

यह यमराज पूजा दीप दान परिवार के सभी सदस्यों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है और पूरे दीपावली उत्सव के लिए शुभ वातावरण तैयार करता है। why and how Yamraj is worshiped before Diwali

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