जबलपुर. MPPSC एग्जाम-2019 के प्रिलिम्स और मुख्य परीक्षा के रिजल्ट को चुनौती देने वाली याचिका की जबलपुर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। 10 फरवरी को जस्टिस शील नागू और जस्टिस सुनीता यादव की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई की। सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने पूरे एग्जाम के रिजल्ट को लंबित कर दिया है। हाईकोर्ट में दलील दी गई कि आयोग ने 17 फरवरी 2020 के नियम के अनुसार रिजल्ट जारी किया है। इस नियम के मुताबिक रिजर्व कैटेगरी के कैंडिडेट्स के उच्चतम अंक होने पर भी अनारक्षित पद पर चयनित नहीं किया जा सकता है। इस तरह से कम्युनल रिजर्वेशन लागू किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में निर्धारित किया है कि कम्युनल रिजर्वेशन लागू नहीं किया जा सकता है।
सरकार से किया जवाब-तलब: हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए प्रदेश सरकार को आठ सप्ताह के अंदर जवाब देने के लिए निर्देशित किया है। याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने अदालत को बताया कि मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग ने MPPSC-2019 का नोटिफिकेशन 14 नवंबर 2019 को जारी किया था। उस समय जो नियम थे, उन्हीं नियमों के अनुसार मुख्य परीक्षा और प्रिलिम्स परीक्षा का रिजल्ट घोषित करना चाहिए था। लेकिन आयोग ने ऐसा नहीं किया।
स्टूडेंट्स ने दोबारा दायर की याचिका: याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि सरकार ने 17 फरवरी 2020 को परीक्षा के नियमों में संशोधन कर अंसवैधानिक नियम बना दिया। इसी असंवैधानिक नियमों को चुनौती देते हुए प्रदेश के हजारों छात्रों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। सरकार ने याचिकाओं के कारण 20 दिसंबर 2021 को इस नियम में संशोधन कर दिया। आयोग ने 31 दिसंबर 2021 को एमपीपीएससी मेंस का रिजल्ट घोषित कर दिया। लेकिन इस रिजल्ट में 17 फरवरी के नियमों को ही फॉलो किया गया। इसी के विरोध में स्टूडेंट्स ने दोबारा याचिका दायर की थी।