सागर (रमन अग्रवाल). यहां के परकोटा वार्ड निवासी शांतनु शुक्ला की कहानी देश के हजारों स्टूडेंट्स को उम्मीद देती है, जो गलत कॉपी चेकिंग का शिकार हो जाते हैं। शांतनु ने 2018 में 12वीं की परीक्षा दी थी। जब इसका रिजल्ट आया तो शांतनु को 374 मिले। मेधावी छात्र स्कीम का लाभार्थी बनने के लिए शांतनु को 375 नंबर की जरूरत थी। यहां से शांतनु की लड़ाई शुरू होती है।
हाईकोर्ट में पेशी की: शांतनु ने माध्यमिक शिक्षा मंडल (mp board) में रीटोटलिंग का आवेदन दिया था। यहां से शांतनु को कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद उसने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 3 साल तक कोर्ट में पेशी जारी रखी। इसमें शांतनु के 15 हजार रुपए खर्च हुए। जबलपुर हाईकोर्ट ने 6 बार माध्यमिक शिक्षा मंडल को नोटिस जारी किया। लेकिन इसके बाद भी शिक्षा मंडल ने अपना पक्ष नहीं रखा। हाईकोर्ट ने फिर से नोटिस जारी कर बोर्ड को पुन:मूल्याकंन कर 80.4 प्रतिशत की अंकसूची जारी करने के लिए कहा। इसके बाद से ही शांतनु की खुशी का ठिकाना नहीं था।
छात्र ने बयां की कहानी: शांतनु ने बताया की 1 नंबर के कारण वो मेधावी छात्र योजना से वंचित रह गए। जिसके बाद उसने रीटोटलिंग का फॉर्म भी भरा पर कुछ बदलाव नहीं दिखा। फिर उसने बुक कीपिंग अकाउंटेंसी की कॉपी निकल वाई, जिसमें सभी उत्तर तो जांचे गए थे लेकिन किसी किसी उत्तर में नम्बर नहीं दिए गए थे। जिसके कारण उसका प्रतिशत कम रह गया। बाद में घर पर बात करने के बाद उसने कोर्ट में याचिका दायर की और लगभग 3 साल तक कोर्ट मे पेश होने के बाद, अब जाकर उसे नई मार्कशीट मिली। जिसमें उसके 28 नम्बर बढ़े और अब उसका प्रतिशत 80.4 हो गया। इसके बाद शांतनु का पूरा परिवार खुश है।