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आज की डिजिटल दुनिया में जहां बच्चे घंटों स्क्रीन पर बिताते हैं, एक्टिव लिसनिंग यानी सक्रिय होकर सुनना एक सुपरपावर जैसा बन गया है। यह सिर्फ सुनने से बढ़कर है इसमें सामने वाले की बात को पूरी अटेंशन से समझना, उसे प्रोसेस करना और फिर सही से रिस्पॉन्ड करना शामिल है।
यह स्किल बच्चों के लिए सिर्फ क्लासरूम में ही नहीं, बल्कि उनकी ओवरऑल डेवलपमेंट और लाइफ में सक्सेस के लिए बहुत जरूरी है। आइए जानते हैं कि बच्चों में एक्टिव लिसनिंग क्यों ज़रूरी है और इसे डेवलप करने के कुछ आसान तरीके।
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क्या है एक्टिव लिसनिंगएक्टिव लिसनिंग का मतलब सिर्फ कानों से सुनना नहीं है, बल्कि दिमाग और दिल से सुनना है। इसमें ये बातें शामिल होती हैं:
तो सिर्फ सुनने और एक्टिव लिसनिंग में फर्क है। सिर्फ सुनना तो बस आवाजों को कानों तक पहुंचने देना है, जबकि एक्टिव लिसनिंग में उस आवाज को प्रोसेस करके उसका मतलब समझना और उस पर सही रिएक्शन देना है। |
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क्यों जरूरी है बच्चों में एक्टिव लिसनिंग
बच्चों में एक्टिव लिसनिंग डेवलप करना उनकी लाइफ के हर एरिया में मदद करता है:
बेहतर एकेडमिक परफॉर्मेंस:
- जब बच्चे क्लास में टीचर की बात को एक्टिवली सुनते हैं, तो वे कॉन्सेप्ट्स को बेहतर समझते हैं, इंस्ट्रक्शंस फॉलो करते हैं और टेस्ट में अच्छा परफॉर्म करते हैं।
मजबूत रिश्ते:
- जो बच्चे अच्छे लिसनर होते हैं, वे अपने पेरेंट्स, फ्रेंड्स और टीचर्स के साथ बेहतर रिश्ते बना पाते हैं। लोग उनसे बात करना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी बात सुनी और समझी जा रही है।
समस्या सुलझाने की क्षमता:
- एक्टिव लिसनर प्रॉब्लम्स को बेहतर ढंग से समझते हैं क्योंकि वे सभी जानकारी को ठीक से ऑब्जर्व करते हैं। इससे उन्हें सही सॉल्यूशंस निकालने में मदद मिलती है।
बढ़ी हुई एम्पैथी:
- जब बच्चे दूसरों की बात ध्यान से सुनते हैं, तो वे उनकी फीलिंग्स और परस्पेक्टिव को समझते हैं। इससे उनमें एम्पैथी यानी सिम्पथी बढ़ती है।
आत्मविश्वास में वृद्धि:
- जब बच्चे अपनी बात सही से समझते और उस पर रिस्पॉन्ड करते हैं, तो उनका कॉन्फिडेंस बढ़ता है। उन्हें लगता है कि वे सिचुएशन्स को हैंडल कर सकते हैं।
कम गलतफहमियां:
- एक्टिव लिसनिंग से मिसकम्युनिकेशंस और गलतफहमियां कम होती हैं। बच्चे सही से इनफॉर्मेशन लेते हैं और उसे गलत इंटरप्रेट नहीं करते।
क्रिटिकल थिंकिंग:
- जब बच्चे किसी बात को गहराई से सुनते और समझते हैं, तो वे उस पर सोच-विचार कर पाते हैं। यह उनकी क्रिटिकल थिंकिंग स्किल्स को डेवलप करता है।
फोकस और अटेंशन स्पैन:
- एक्टिव लिसनिंग के लिए फोकस की जरूरत होती है। रेगुलर प्रैक्टिस से बच्चों का अटेंशन स्पैन बढ़ता है, जो आज की डिस्ट्रैक्टिंग दुनिया में बहुत जरूरी है।
बच्चों में एक्टिव लिसनिंग डेवलप करने के आसान तरीके
पेरेंट्स और टीचर्स इन आसान तरीकों को अपनाकर बच्चों में एक्टिव लिसनिंग की आदत डाल सकते हैं:
खुद एक एक्टिव लिसनर बनें
- बच्चे आपको देखकर सीखते हैं। जब आपका बच्चा आपसे बात कर रहा हो, तो उसे पूरा ध्यान दें। फोन या दूसरे डिस्ट्रैक्शंस को साइड में रखें। आंख से आंख मिलाकर बात करें और सिर हिलाकर या 'हां', 'अच्छा' कहकर दिखाएं कि आप सुन रहे हैं।
गेम्स खेलें
कुछ फन गेम्स एक्टिव लिसनिंग सिखा सकते हैं। जैसे
- Simon Says
इस गेम में बच्चों को तभी इंस्ट्रक्शन फॉलो करने होते हैं जब आप 'सिमन सेज' कहें। इससे उन्हें ध्यान से सुनना आता है। - Tell Me a Story:
आप एक सेंटेंस बोलें और बच्चे उसे रिपीट करके अपनी लाइन जोड़ें। इससे उनकी मेमोरी और लिसनिंग स्किल्स बेहतर होती हैं। - Listening Walk:
बच्चे को बाहर ले जाएं और कहें कि वह आसपास की आवाजों पर ध्यान दे। फिर घर आकर उन आवाजों के बारे में बात करें जैसे चिड़ियों की आवाज, गाड़ी का हॉर्न। - सवाल पूछने के लिए इनकरेज करें:
बच्चों को सिखाएं कि अगर उन्हें कोई बात समझ न आए, तो सवाल पूछने से डरें नहीं। उन्हें बताएं कि सवाल पूछना स्मार्टनेस की निशानी है, न कि बेवकूफी की। - आई कॉन्टैक्ट सिखाएं:
बच्चों को बताएं कि बात करते समय सामने वाले की आंखों में देखना जरूरी है। यह दिखाता है कि आप उनकी बात पर ध्यान दे रहे हैं। पर ये भी सिखाएं कि लगातार घूरना नहीं है, बस नेचुरल आई कॉन्टैक्ट रखना है।
डिस्ट्रैक्शंस हटाएं
- जब आप बच्चे से बात करें या वह आपसे बात कर रहा हो, तो टीवी बंद कर दें, फोन दूर रख दें। इससे बच्चे को लगेगा कि उसकी बात इंपॉर्टेंट है और वह भी आपसे सीखने की कोशिश करेगा।
रोल-प्ले करवाएं
- अलग-अलग सिचुएशन में रोल-प्ले करवाएं। जैसे, एक बच्चा टीचर बने और दूसरा स्टूडेंट और फिर उनकी बात पर कैसे रिस्पॉन्ड करना है, यह सिखाएं। इससे बच्चे अलग-अलग रोल में लिसनिंग स्किल्स की प्रैक्टिस कर पाएंगे।
बॉडी लैंग्वेज पर ध्यान दें
- बच्चों को सिखाएं कि सुनते समय उनकी बॉडी लैंग्वेज कैसी होनी चाहिए। सीधे बैठना, ध्यान देना, सिर हिलाना - ये सब एक्टिव लिसनिंग के संकेत हैं।
पॉजिटिव फीडबैक दें
- जब बच्चा अच्छी तरह से सुने, तो उसे कॉम्प्लिमेंट दें। जैसे, "तुमने मेरी बात कितनी ध्यान से सुनी, मुझे बहुत अच्छा लगा।" इससे बच्चे को इनकरेजमेंट मिलेगा।
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पेरेंट्स को क्या ध्यान देना चाहिए
पेरेंट्स (parenting tips) के लिए कुछ खास बातें हैं जिन पर उन्हें ध्यान देना चाहिए जब वे बच्चों में एक्टिव लिसनिंग (Discipline in Parenting) को बढ़ावा दे रहे हों:
खुद को एक रोल मॉडल के रूप में देखें
- आप जैसा व्यवहार करेंगे, बच्चे वैसा ही सीखेंगे। इसलिए, बच्चों से बात करते समय खुद एक एक्टिव लिसनर बनें।
बच्चों की फीलिंग्स को वैलिडेशन दें
- जब बच्चे अपनी फीलिंग्स शेयर करें, तो उन्हें 'जज' न करें। उन्हें बताएं कि उनकी फीलिंग्स को आप समझते हैं और उन्हें एक्सप्रेस करने का हक है।
धैर्य रखें
- एक्टिव लिसनिंग एक रात में नहीं आती। यह एक प्रोसेस है जिसमें टाइम और प्रैक्टिस लगती है।
छोटे-छोटे स्टेप्स लें
- एक साथ बहुत कुछ सिखाने की कोशिश न करें। छोटे-छोटे गोल्स सेट करें और उन्हें अचीव करने पर बच्चे को इनकरेज करें।
सुनने का मौका दें
- बच्चों को अपनी बात रखने का पूरा मौका दें। उन्हें बीच में न टोकें।
टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल सोच समझ कर करें
- बच्चों के स्क्रीन टाइम को मैनेज करें। उन्हें बताएं कि बात करते समय फोन या टैबलेट (tablet) का इस्तेमाल नहीं करना है।
तो एक्टिव लिसनिंग सिर्फ एक स्किल नहीं, बल्कि लाइफ का एक जरूरी हिस्सा है। यह बच्चों को स्मार्ट, एम्पैथेटिक और सक्सेसफुल बनने में मदद करता है।
पेरेंट्स और टीचर्स मिलकर (parenting advice) इस स्किल को डेवलप कर सकते हैं, जिससे बच्चे न सिर्फ अच्छे स्टूडेंट बनेंगे, बल्कि अच्छे इंसान भी बनेंगे जो दूसरों की बात को समझें और उन्हें सपोर्ट करें। यह एक ऐसा इन्वेस्टमेंट है जो बच्चों की पूरी लाइफ को बेहतर बनाएगा।
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