संजय गुप्ता/योगेश राठौर, INDORE. क्या बीए, बीकॉम डिग्रीधारी डिप्टी कलेक्टर, डीएसपी नहीं बन पाएंगे? जी हां, ये सवाल अभी इन डिग्रीधारी उम्मीदवारों के मन में उठ रहा है। ये सवाल राज्य सेवा परीक्षा 2020 मेन्स के रिजल्ट के बाद से ही लाखों डिग्रीधारियों के मन में उठ रहा है। बदले हुए पैटर्न से हुई इस परीक्षा के बाद वे उम्मीदवार हैरान हैं जो साल 2019 की परीक्षा क्लीयर कर चुके हैं और इंटरव्यू देने जा रहे हैं, लेकिन इस बार की परीक्षा के आए रिजल्ट में फेल हो गए हैं।
पहले समझते हैं आखिर क्या है पीएससी की परीक्षा का पैटर्न
- साल 2014 से 2019 की राज्य सेवा परीक्षा मेन्स का ये था पैटर्न
साल 2020 की राज्य सेवा परीक्षा से ये बड़ा बदलाव
राज्य सेवा परीक्षा 2020 के पैटर्न में मप्र लोक सेवा आयोग ने केवल एक बदलाव किया जो आर्ट, बीकॉम वालों को भारी पड़ गया। उन्होंने सामान्य अध्ययन थ्री के साइंस और इकॉनामी के पेपर में से इकानॉमी को हटा दिया और इसका कुछ हिस्सा सामान्य अध्ययन टू के पेपर में जोड़ दिया और साइंस का पूरा अलग पेपर सामान्य अध्ययन थ्री में कर दिया गया।
अब असर क्या हुआ
पीएससी मेन्स को क्वालीफाई करने के लिए जरूरी है कि अभ्यर्थी को हर पेपर में न्यूनतम 40 फीसदी अंक मिलें। वहीं यदि वे किसी आरक्षित कैटेगरी में हैं तो अभ्यर्थी को 30 फीसदी पासिंग अंक लाने जरूरी हैं, नहीं तो वो इंटरव्यू के लिए क्वालीफाई नहीं पाएंगे।
पेपर में सामान्य साइंस नहीं होकर जटिल साइंस
बीए, बीकॉम अभ्यर्थियों का कहना है कि साइंस का पेपर सामान्य साइंस नहीं होकर जटिल साइंस का बनाया गया, जो साइंस बैकग्राउंड वाला ही पार पा सकता था। इसका स्तर बहुत ही टफ रखा गया, वहीं इसमें विकल्प भी नहीं दिए कि ये नहीं आता तो ये प्रश्न कर लीजिए, जो बाकी प्रश्न पत्रों में रहता है। इसका असर ये हुआ कि अनारक्षित कैटेगरी हो या अन्य कैटेगरी उनके लिए 40 या 30 फीसदी पासिंग अंक लाना ही दूभर हो गया, इसके चलते वह अन्य विषयों में अच्छा करने के बाद भी केवल साइंस के चलते डिप्टी कलेक्टर, डीएसपी बनने से बाहर हो गए। पहले साल 2019 की परीक्षा में साइंस और इकॉनामी साथ होने से जो अभ्यर्थी साइंस में कमजोर भी हैं तो वे इकॉनामी में अच्छा स्कोर करके कम से कम पेपर के मिनिमम पासिंग आंक ले आते थे, जो अब केवल साइंस का पेपर होने के चलते नहीं हो पा रहा है।
उम्मीदवार क्या कहते हैं ?
बीए, बीकॉम डिग्रीधारी अभ्यर्थि सौरभ चौहान, मीनू चौरसिया और सिद्धि तिवारी कहते हैं कि हम साइंस में अधिक अच्छे नहीं थे, इसलिए हमने बीए, बीकॉम की डिग्री ली और राज्य सेवा परीक्षा के लिए आए क्योंकि इसमें साइंस एक्सपर्ट की जरूरत नहीं है, लेकिन आयोग के इस बदलाव से तो हमारे अधिकारी बनने के सपने ही खत्म हो गए हैं।
पीएससी भी मान रहा, हां असर तो हुआ है
पीएससी प्रवक्ता डॉ. रविंद्र पंचभाई ने द सूत्र से चर्चा में कहा कि सिलेबस चेंज इसलिए किया क्योंकि साइंस और इकॉनामी का कोई मेल नहीं था, साइंस का पेपर अलग होने से प्रभाव तो पड़ा होगा लेकिन पूरा असर हुआ होगा ऐसा नहीं है। यदि उम्मीदवार लिखकर देते हैं और हमको ट्रेंड देखने में लगता है कि साइंस वालों को वेटेज है तो साल 2023 के लिए बदलाव कर सकते हैं क्योंकि अभी तो 2022 की परीक्षा का सिलेबस तय हो चुका है।
यूपीएससी में अभी भी साइंस और इकॉनामी साथ
आयोग बार-बार कह चुका है कि वो यूपीएससी (यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन) की तरह ही अपने पैटर्न को ले जाना चाहता है जिससे एमपीपीएसी वालों को यूपीएससी देने में भी मदद मिले, लेकिन जो बदलाव पीएससी ने किया है यूपीएससी में वो है ही नहीं। वहां अभी भी साइंस और इकॉनामी साथ है, वहां सामान्य अध्ययन थर्ड पेपर में साइंस से जुड़े चैप्टर और इकॉनामी साथ ही है।