Distance Education क्यों बन रहा स्टूडेंट्स का पसंदीदा तरीका, जानें इसके टॉप 5 फायदे

डिस्टेंस एजुकेशन उन लोगों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है जो काम करते हैं या नियमित कॉलेज नहीं जा सकते। हालांकि, इसमें सफलता के लिए सेल्फ-मोटिवेशन, समय प्रबंधन और टेक्नोलॉजी की समझ जरूरी है।

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Kaushiki
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आज के समय में जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी बढ़ रही है, वैसे ही पढ़ाई करने के तरीके भी बदल रहे हैं। अब केवल कॉलेज या यूनिवर्सिटी जाकर ही पढ़ाई करना जरूरी नहीं है। अब स्टूडेंट के लिए एक बहुत ही अच्छा ऑप्शन आया है और वो है "डिस्टेंस एजुकेशन (Distance Education)"। डिस्टेंस एजुकेशन में आप अपने घर से ही पढ़ सकते हैं और अपनी फैसिलिटी के मुताबिक कोर्स पूरा कर सकते हैं। आइए आसान भाषा में जानते हैं इसके 5 बड़े फायदे और कुछ जरूरी बातें, ताकि आप सही फैसला ले सकें।

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डिस्टेंस एजुकेशन क्या है

डिस्टेंस एजुकेशन एक ऐसा एजुकेशन सिस्टम है, जिसमें छात्र बिना किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी जाए, घर बैठे ही पढ़ाई कर सकते हैं। इसमें स्टडी मटेरियल, वीडियो लेक्चर और ऑनलाइन असाइनमेंट इंटरनेट या पोस्ट के जरिए दिए जाते हैं।

छात्र अपने समय मुताबिक पढ़ाई कर सकते हैं, जिससे नौकरी या अन्य जिम्मेदारियों के साथ पढ़ाई करना आसान हो जाता है। यह उन लोगों के लिए खासतौर पर फायदेमंद है जो रिमोट एरियाज में रहते हैं या रेगुलर क्लास अटेंड नहीं कर सकते। इससे समय और पैसे दोनों की बचत होती है।

Importance of Distance Learning In Today's Education Ecosystem

डिस्टेंस एजुकेशन की शुरुआत कैसे हुई

डिस्टेंस एजुकेशन की शुरुआत सबसे पहले इंग्लैंड (ब्रिटेन) में हुई थी। साल 1840 में सर आइजैक पिटमैन (Sir Isaac Pitman) नाम के एक शिक्षक ने इसे शुरू किया। उन्होंने छात्रों को पोस्ट कार्ड के जरिए शॉर्टहैंड (लिखने की एक तेज तकनीक) सिखाना शुरू किया। छात्र उन्हें अपने जवाब पोस्ट से भेजते थे और वो उन्हें चेक करके वापस भेजते थे। यही तरीका आगे चलकर डिस्टेंस लर्निंग का
फाउंडेशन बना।

भारत में डिस्टेंस एजुकेशन की शुरुआत 1962 में हुई थी। दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) ने सबसे पहले डिस्टेंस लर्निंग कोर्स शुरू किया था। इसके बाद IGNOU (इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय) को 1985 में शुरू किया गया, जो आज भारत का सबसे बड़ा डिस्टेंस एजुकेशन यूनिवर्सिटी है।

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डिस्टेंस एजुकेशन के 5 बड़े फायदे

खुद की स्पीड से पढ़ाई करने की इंडिपेंडेंस 

डिस्टेंस एजुकेशन में इंस्टीट्यूट की ओर से सभी स्टडी मटेरियल आपके घर पर भेज दिए जाते हैं या ऑनलाइन मिल जाते हैं। आप इन्हें अपने समय और सुविधा के मुताबिक पढ़ सकते हैं। वीडियो लेक्चर, रिकॉर्डेड क्लासेस और ऑनलाइन असाइनमेंट की मदद से पढ़ाई पूरी तरह आपकी रफ्तार पर निर्भर करती है।

समय और पैसा दोनों की बचत

कॉलेज जाने की झंझट से पूरी तरह छुटकारा मिल जाता है। ट्रैवल में लगने वाला समय और थकान दोनों से राहत मिलती है। आप अपने घर में बैठकर ही मोबाइल, लैपटॉप या कंप्यूटर से क्लास अटेंड कर सकते हैं। इससे आपको सफर का खर्च और समय दोनों बचते हैं।

अफोर्डेबल ऑप्शन

डिस्टेंस एजुकेशन में ना तो हॉस्टल का खर्च होता है, ना यूनिफॉर्म, बस और अन्य सुविधाओं का। इससे कुल मिलाकर आपकी पढ़ाई जनरल कॉलेज के मुकाबले सस्ती हो जाती है।

पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी या दूसरा कोर्स भी संभव

अगर आप कामकाजी हैं या एक साथ दो कोर्स करना चाहते हैं, तो डिस्टेंस लर्निंग आपके लिए एक एक्सीलेंट ऑप्शन है। आप अपनी जरूरत और समय के हिसाब से पढ़ाई कर सकते हैं और अन्य कामों में भी ध्यान दे सकते हैं।

किसी भी जगह से पढ़ाई संभव

अगर आप किसी ऐसे गांव या शहर में रहते हैं जहां अच्छे कॉलेज नहीं हैं, तब भी आप डिस्टेंस एजुकेशन की मदद से पढ़ाई जारी रख सकते हैं। आपको शहर जाने या घर से दूर रहने की जरूरत नहीं होती।

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डिस्टेंस एजुकेशन की कुछ कमियां

क्लासरूम का एक्सपीरियंस नहीं मिलता

डिस्टेंस एजुकेशन में छात्र टीचर्स और क्लासमेट्स से सीधे नहीं मिल पाते। सिर्फ ऑनलाइन चैट, ईमेल या वीडियो कॉल्स के माध्यम से कांटेक्ट होता है। इससे कई बार पढ़ाई का एक्सपीरियंस अधूरा लग सकता है।

टाइम मैनेजमेंट में मुश्किल

जो छात्र अपनी पढ़ाई को टालते रहते हैं या समय की योजना नहीं बना पाते, उनके लिए यह तरीका कठिन साबित हो सकता है। यहां कोई आपको याद दिलाने वाला नहीं होता, सब आपको खुद ही मैनेज करना होता है।

टेक्नोलॉजी की डिपेंडेंसी

डिस्टेंस लर्निंग पूरी तरह टेक्नोलॉजी पर निर्भर है। इसमें कंप्यूटर, वेबकैम, इंटरनेट जैसे रिसोर्सेज की जरूरत होती है। अगर इनमें से कोई चीज खराब हो जाए या न हो, तो पढ़ाई रुक सकती है।

ऑनलाइन डिग्री की रिलायबिलिटी पर डाउट

कुछ इंस्टिट्यूट ठीक से वैलिडेशन नहीं करते या फर्जी डिग्री दे देते हैं, जिससे लोगों में डिस्टेंस डिग्री को लेकर भरोसा कम हो जाता है। ऐसे में जरूरी है कि किसी भी कोर्स में एनरोलमेंट से पहले इंस्टीट्यूट की रिकग्निशन (UGC-DEB) जरूर जांच लें।

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डिस्टेंस एजुकेशन एक ग्रेट ऑप्शन हो सकता है, खासकर उनके लिए जो नौकरी कर रहे हैं या किसी वजह से रेगुलर कॉलेज नहीं जा सकते। लेकिन इसमें सक्सेस होने के लिए सेल्फ-मोटिवेशन, टाइम मैनेजमेंट और टेक्नोलॉजी की थोड़ी जानकारी जरूरी है। अगर आप अच्छे और रेकग्निजेंद इंस्टिट्यूट से कोर्स करते हैं, तो आपकी डिग्री पूरी तरह वैलिड मानी जाएगी।

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