BHOPAL. मध्यप्रदेश में सरकार मेडिकल कॉलेज में नए सत्र से एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में शुरू करने जा रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भोपाल में एक बड़े समारोह में एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमेस्ट्री विषय की 3 किताबों के हिंदी अनुवाद का विमोचन किया। सरकार के इस फैसले के व्यवहारिक पक्ष को लेकर मेडिकल एजुकेशन के एक्सपर्ट कुछ सवाल और आशंकाएं भी जाहिर कर रहे हैं। इस पर द सूत्र ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन डॉ.बीसी छपरवाल और महात्मा मेडिकल कॉलेज इंदौर में फिजियोलॉजी के पूर्व प्रोफेसर डॉ. मनोहर भंडारी से चर्चा कर इस मुद्दे पर उठ रहे सवालों के जवाब लिए।
डॉ. बीसी छपरवाल से खास बातचीत
सवाल - एक डॉक्टर और शिक्षाविद के रूप में मध्यप्रदेश सरकार के फैसले पर आपकी राय ?
जवाब - प्रारंभिक रूप से मैं प्रदेश सरकार का इस पहल का स्वागत करता हूं। अपनी मातृभाषा में शिक्षा देना अच्छी बात है। लेकिन यह मुद्दा सिर्फ मेडिकल साइंस की पुस्तकों का मातृभाषा हिंदी में अनुवाद कराने तक ही सीमित नहीं है। ये दूरदर्शिता और समन्वय के साथ बहुत ही सुविचारित और बड़ी तैयारी का विषय है क्योंकि इसका प्रभाव दूरगामी होगा। सवाल ये है कि क्या मेडिकल साइंस पढ़ाने वाले शिक्षकों को भी इसके लिए प्रशिक्षित किया गया है या नहीं। यदि नहीं तो इस प्रयोग से अपेक्षित सफलता हासिल कर पाना बड़ी चुनौती होगी। सरकार को शिक्षकों की ट्रेनिंग पर भी उतना ही ध्यान देना होगा।
सवाल - इससे हिंदी भाषी छात्रों को क्या और कितना लाभ होगा ?
जवाब - मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेने वाले ज्यादातर छात्र निजी स्कूलों में पढ़े होते हैं और उनका माध्यम अंग्रेजी होता है। इनकी हिंदी कमजोर होती है। वैसे अभी भी मेडिकल कॉलेज में कमजोर छात्रों को शिक्षक हिंदी में ही समझाने का प्रयास करते हैं। इंदौर के महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज में फिजियोलॉजी पढ़ाने वाले डॉ.मनोहर भंडारी बरसों से ऐसा करते रहे हैं।
सवाल - हिंदी में MBBS करने वाले छात्रों को आगे पढ़ाई में मुश्किल तो नहीं आएगी ?
जवाब - सबसे बड़ा सवाल ये है कि मध्यप्रदेश सरकार ने हिंदी में एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए नेशनल मेडिकल कमीशन से कितना और किस स्तर तक का संवाद किया है। उसे भरोसे में लिया है कि नहीं क्योंकि मेडिकल कॉलेज में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स में एडमिशन के लिए परीक्षाएं वो ही संचालित करता है। क्या छात्रों को नेशनल एंट्रेस एलिजिबिलिटी टेस्ट (नीट) के प्रश्न पत्र भी हिंदी में उपलब्ध होंगे। मेडिकल साइंस के रिसर्च पेपर भी हिंदी में उपलब्ध कराए जाएंगे। एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में करने के बाद छात्र आगे की पढ़ाई के लिए किसी दूसरे राज्य (खासकर हिंदी भाषी राज्यों के अलावा) में दाखिला लेना चाहेंगे तो उन्हें स्वीकार्यता मिलेगी या नहीं।
सवाल - तर्क दिया जाता है कि कई देशों में मेडिकल की पढ़ाई मातृभाषा में ही कराई जाती है ?
जवाब - मैं दो बार चीन होकर आया हूं। मेरी जानकारी के मुताबिक वहां भी मेडिकल साइंस की पूरी पढ़ाई चीनी भाषा (मंदारिन) में नहीं कराई जाती। वहां कुछ सब्जेक्ट अंग्रेजी में भी पढ़ाए जाते हैं। हमें ये भी ध्यान रखना होगा कि मेडिकल साइंस के ज्यादातर सोर्स अंग्रेजी में ही उपलब्ध हैं। मातृ भाषा में शिक्षा देना अच्छी बात है। लेकिन अफसोस इस बात का है कि हम अपनी मातृ भाषा हिंदी को उतनी तरहीज स्कूल शिक्षा के स्तर पर भी नहीं दे रहे हैं।
प्रो.डॉ. मनोहर भंडारी से खास बातचीत जो फिजियोलॉजी की हिंदी पुस्तक के लेखक हैं और MBBS के हिंदी पाठ्यक्रम की कार्ययोजना तैयार करने वाली उच्च स्तरीय समिति के सदस्य हैं
सवाल - कहा जा रहा है कि मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में व्यवहारिक नहीं है ?
जवाब - यह बहुत बड़ी भ्रांति है कि मेडिकल साइंस की पढ़ाई हिंदी में नहीं कराई जा सकती। अभी अंग्रेजी के कारण हमारे हिंदी भाषी छात्रों को मेडिकल साइंस की जटिलताएं समझने और आत्मसात करने में मुश्किल होती है। इसके चलते वे हीनभावना के शिकार हो जाते हैं। चूंकि अपनी भाषा में पढ़ने से ज्ञान अधिक आत्मसात होता है। इसी उद्देश्य से सरकार ने यह पहल की है।
सवाल - क्या मेडिकल टीचर्स को हिंदी में पढ़ाने का प्रशिक्षण देने की जरूरत है ?
जवाब - प्रदेश के मेडिकल कॉलेज में ज्यादातर शिक्षक अंग्रेजी और हिंदी दोनो भाषाओं अर्थात हिंग्लिश में ही पढ़ाते हैं। हिंदी में पढ़ाने से छात्रों को लगता है कि कोई अपना पढ़ा रहा है। इससे उनमें आत्मविश्वास जागता है। एक मेडिकल टीचर के रूप में मैंने क्लास में 38 साल तक छात्रों के हित में 70 फीसदी हिंग्लिश में पढ़ाया है।
सवाल - क्या तकनीकी शब्दों का हिंदी का अनुवाद कठिन नहीं होगा ?
जवाब - मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि हिंदी में पढ़ाई के लिए एमबीबीएस की पुस्तकों का सिर्फ अनुवाद नहीं बल्कि रूपांतरण भी किया गया है। किताबों में मेडिकल साइंस के टेक्निकल शब्द जस के तस ही रहेंगे। जैसे Extra Cellular Fluid को बाह्य कोशिकीय द्रव नहीं बल्कि देवनागरी में एक्सट्रा सेल्युलर फ्लुड ही लिखा जाएगा। इसी तरह ब्लड प्रेशर को रक्चाप और ब्लड ग्रुप को रक्त समूह नहीं लिखा जाएगा। शुरूआत में अभी फर्स्ट ईयर की किताबों का ही अनुवाद किया गया है। इसके बाद अगले साल सेकंड ईयर और इसके बाद क्रमानुसार किताबों का अनुवाद किया जाएगा।
सवाल - क्या हिंदी में एमबीबीएस करने वाले प्रतिस्पर्धा में टिक पाएंगे ?
जवाब - हम ये बिल्कुल नहीं चाहते कि हमारे मेडिकल स्टूडेंट आगे चलकर कमजोर साबित हों। इस संदर्भ में हमें देश के जानेमाने न्यूरोलॉजिस्ट और भाषा विज्ञानी डॉ.अशोक पनगढ़िया की यह बात रखनी होगी कि इंसान के ब्रेन में भाषा और समझ के लिए दो अलग-अलग जोन होते हैं। यदि ज्ञान मातृ भाषा में मिले तो इंसान उसे ज्यादा आत्मसात कर पाता है।
हिंदी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई का प्रयोग रहा असफल
मध्यप्रदेश में मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में शुरू होने जा रही है। देश में इस तरह का ये पहला प्रयोग है। एमपी में इससे पहले इंजीनियरिंग के क्षेत्र में ये प्रयोग हो चुका है, जो बुरी तरह असफल रहा था। अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय ने इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई को हिंदी माध्यम में शुरू करने की योजना बनाई थी। लेकिन इस योजना को सफल बनाने के लिए कोई सार्थक कदम नहीं बढ़ाए गए हैं। इससे योजना विफल साबित हुई।