ओपन स्कूल वाले दे सकेंगे NEET, सुप्रीम कोर्ट ने 27 साल पुरानी रोक हटाई

अब ओपन स्कूल वाले स्टूडेंट्स भी NEET की परीक्षा दे सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने 27 साल पुरानी रोक हटा दी है। अब ओपन स्कूल से पढ़ने वाले छात्रों का डॉक्टर बनने का सपना पूरा हो सकेगा।

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Rahul Garhwal
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Supreme Court decision on NEET
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Supreme Court decision on NEET

NEW DELHI. अब ओपन स्कूल से 12वीं की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स का डॉक्टर बनने का सपना पूरा हो सकेगा। ओपन स्कूल से 12वीं की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स NEET दे पाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने 27 साल पुरानी रोक हटा दी है। 

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा ?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) और राज्य शिक्षा बोर्ड द्वारा मान्यता सभी ओपन स्कूल अब राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) के लिए राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद (NMC) द्वारा मान्यता प्राप्त होंगे। अब मान्यता प्राप्त ओपन स्कूलों से 12वीं पास स्टूडेंट्स  नीट एग्जाम में बैठ सकेंगे।

MCI ने खटखटाया था सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) ने ओपन स्कूल स्टूडेंट्स को नीट परीक्षा में बैठने की परमिशन देने वाले दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट ने स्टूडेंट्स के पक्ष में फैसला सुनाया और उन्हें मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम यानी नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET) में बैठने की अनुमति दे दी।

लाखों स्टूडेंट्स के लिए खुशखबरी

सु्प्रीम कोर्ट का फैसला लाखों छात्र-छात्राओं के लिए बड़ी खुशखबरी है। ऐसे छात्र आर्थिक तंगी या किसी दूसरी परेशानी के चलते रेगुलर पढ़ाई नहीं कर पाते और उनका डॉक्टर बनने का सपना पूरा नहीं हो पाता। अब वे भी मेडिकल की पढ़ाई कर सकेंगे।

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27 साल पहले लगाई गई थी रोक

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) ने 1997 के रेगुलेशन ऑन ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन के खंड 4 (2) A के प्रावधानों के मुताबिक ऐसे उम्मीदवारों को NEET परीक्षा में बैठने से रोक दिया था। इसके बाद 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस प्रावधान को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया था। MCI के प्रावधान को रद्द करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस चंद्र शेखर की बेंच ने कहा था कि मेडिकल ने इस धारणा को आगे बढ़ाया है कि जो स्टूडेंट्स आर्थिक तंगी और कठिनाइयों और सामाजिक कारणों से रेगुलर स्कूलों में नहीं जाते हैं, वे अन्य छात्रों की तुलना में हीन और कम योग्य हैं।

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