अजय छाबरिया, BHOPAL. मध्यप्रदेश में नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो गया है। नए सत्र के साथ ही प्राइवेट स्कूलों की मनमानी भी शुरू हो गई है। स्कूल और दुकानदारों के गठजोड़ ने अभिभावकों की जेब पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया है। अब आप समझिए कि ये बोझ कैसे डाला जा रहा है। नियमों के खिलाफ होने पर भी प्राइवेट स्कूल पेरेंट्स से बच्चों की कॉपी-किताबें तय बुक स्टोर से ही खरीदने का बोल रहे हैं। निर्धारित दुकान पर कॉपी-किताबों के मनमाने तरीके से दाम वसूले जा रहे हैं। कुछ स्कूल तो इससे भी एक कदम आगे हैं। वे स्कूल से ही कॉपी-किताब बांट रहे हैं। नतीजा एक ही क्लास की कॉपी-किताब 8 हजार से लेकर 15 हजार तक मिल रही हैं।
आंखें बंद करके बैठा प्रशासन
दिक्कत ये भी है कि प्राइवेट स्कूल जानबूझकर अलग-अलग महंगे पब्लिशर्स की किताब सिलेबस में रखते हैं। जिससे निर्धारित बुक्स शॉप के आलावा वो बाजार में किसी अन्य दुकान पर मिलती ही नहीं है। आप सोच रहे होंगे कि इतना सब कैसे हो रहा है। इस पूरी कहानी के पीछे का राज है कि प्रशासन का आंख बंद करके बैठा है और प्राइवेट स्कूल एनसीईआरटी की जगह अन्य दूसरे पब्लिशर्स की महंगी किताबें बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
कमीशन की वजह से हर साल बदलता है सिलेबस
परिचित कहीं एक-दूसरे से पुस्तकों का आदान-प्रदान ना कर लें, इसलिए प्राइवेट स्कूल हर साल सिलेबस को ही बदल देते हैं। इन पुस्तकों से स्कूलों का सीधे तौर पर मोटा कमीशन जुड़ा रहता है। कमीशन का ये खेल इतना बढ़ा है कि सरकारी आदेश के बावजूद कुछ स्कूल तो एनसीईआरटी की बुक ही नहीं चला रहे हैं।
नियमों में कई पेंच
जिला शिक्षा अधिकारी यानी डीईओ को सीबीएसई संबद्ध निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए म.प्र. निजी विद्यालय फीस अधिनियम 2017 के तहत पावर दिया गया है। इस एक्ट की धारा-6 में बुक और स्टेशनरी से संबंधित दिशा-निर्देश तो दिए हैं, लेकिन एनसीईआरटी शब्द का कहीं कोई उपयोग नहीं किया गया। मतलब एक्ट ये तो कहता है कि बुक और स्टेशनरी जैसी अन्य सामग्री सार्वजनिक प्रदर्शित की जाए, लेकिन स्कूल में एनसीईआरटी की बुक चलाना अनिवार्य है या किसी कक्षा में कम से कम इतनी बुक एनसीईआरटी की होना जरूरी है। ऐसा कहीं कोई उल्लेख ही नहीं है।
फिक्स दुकानों से खरीदकर लुट रहे हैं पेरेंट्स
फिक्स दुकानों से कॉपी-किताबें खरीदकर पैरेंट्स लुट रहे हैं। अब द सूत्र ने एक ही कक्षा चौथी की कॉपी-किताब की जानकारी ली तो अलग-अलग स्कूलों के अलग अलग रेट सामने आए। द सूत्र ने जब भारत बुक्स स्टेशनरी जवाहर चौक रोड पर पहुंचकर पड़ताल की तो दुकान के एक कर्मचारी ने बताया कि डीपीएस स्कूलों की कक्षा-4 की कॉपी-किताबें 8 हजार रुपए की आएगी। इसके अलावा एक और दुकान बुक्स एंड बुक्स कोलार रोड पर है। इस दुकान पर भी दामों की पड़ताल की तो सागर पब्लिक स्कूल की कक्षा-4 की सिर्फ किताबें 3 हजार 960 रुपए की बताई गई, इसमें कॉपी की राशि शामिल नहीं है। वहीं आर्केड स्कूल तो किसी बुक्स शॉप से नहीं बल्कि स्कूल से ही कॉपी किताब दे रहा है। जिसमें कक्षा-4 की कॉपी-किताबों के दाम देखें जाएं तो 14 हजार 525 रुपए है।
एनसीईआरटी की खरीदें तो 250 रुपए में आ जाएंगी
अभिभावक नरेंद्र का कहना है कि मेरा बच्चा एमजीएम स्कूल में कक्षा-3 में पढ़ता है। उसकी किताबें ही 3 हजार रुपए की हैं। इसमें कॉपी के दाम शामिल नहीं हैं। अगर ये ही किताबें एनसीईआरटी की खरीदें तो 250 रुपए में आ जाएंगी।
सोशल मीडिया पर जमकर विरोध
राजधानी भोपाल में भोपाल सिटी लाइव नाम का एक सोशल फेसबुक पेज है जो काफी एक्टिव भी रहता है। हाल ही में विजयराज सिंह चौधरी ने शिक्षा के नाम पर लूट जारी है टाइटल से क्वीन मेर्रीज सीनियर सेकेंडरी स्कूल और भोपाल की एक बुक शॉप रागनी बुक्स एंड स्टेशनरी के बिल अपलोड किए, जिसमें कक्षा चौथी की कॉपी किताब 4 हजार 353 और आठवीं की कॉपी किताब 5 हजार 198 बताई गई। इस पोस्ट पर लोगों ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया भी व्यक्त की। संदीप किशोर उमरिया ने लिखा कि धंधा बनाकर रखा है। सचिन जैन ने लिखा कि ये पोस्ट डालने से क्या होगा दुखी मन सबका है। ना कांग्रेस को चिंता, ना बीजेपी को। वहीं एक अन्य यूजर्स रमेश तिवारी ने कमेंट किया कि आर्किड आया है, उसकी बुक्स कॉपी का रेट आप देख लेंगे तो हिल जाएंगे।
आदेश पर आदेश निकले पर, पालन एक का भी नहीं
सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन यानी सीबीएसई ने 12 अप्रैल 2016 और 19 अप्रैल 2017 को स्कूलों से ही या चयनित दुकानों से पुस्तकें, स्टेशनरी, यूनिफॉर्म, स्कूल बैग खरीदने के संबंध में आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया कि बच्चों और उनके पालकों पर चयनित दुकान या किसी चयनित निजी प्रकाशक की पुस्तकों को खरीदने का दबाव नहीं बनाया जा सकता। वहीं इन्हीं आदेशों का हवाला लेकर 31 मार्च 2018 को स्कूल शिक्षा विभाग मध्यप्रदेश ने भी सभी कलेक्टर्स को पत्र लिखकर आदेशित किया कि म.प्र. निजी विद्यालय फीस अधिनियम 2017 के अंतर्गत ऐसे स्कूलों पर कार्रवाई की जाए जो लाभ कमाने के लिए पालकों पर महंगी पुस्तकें, स्कूल ड्रेस और एक चयनित दुकान से ही खरीदने का दबाव बना रहे हैं, पर इन आदेशों का कभी पालन नहीं हुआ।
सीबीएसई के आदेश का कितना पालन
सभी कक्षाओं में एनसीईआरटी की किताबें अनिवार्य करने एवं संख्या निर्धारित करने का अधिकार सिर्फ केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड नई दिल्ली का है। मध्य प्रदेश शासन स्कूल शिक्षा विभाग, मध्य प्रदेश द्वारा निजी सीबीएससी स्कूलों में एनसीईआरटी द्वारा प्रकाशित पुस्तकें लागू करने के संबध में 31 मार्च 2018 के पत्र में निर्देश दिए गए थे कि निजी सीबीएसई स्कूलों में सभी कक्षाओं में एनसीईआरटी की पुस्तकें लागू की जाएं, लेकिन आदेश का पूरी तरह पालन ही नहीं किया जा रहा है।
20 से ज्यादा स्कूलों को नोटिस का दावा
जिला शिक्षा अधिकारी नितिन सक्सेना का दावा है कि 20 स्कूलों पर स्वतः संज्ञान के आधार पर नोटिस जारी कर दिया है। जिसके ऑर्डर कलेक्टर ने निकाल दिए हैं। अगर सभी प्राइवेट स्कूल एनसीईआरटी कि किताबें लागू कर दें तो 1 हजार 500 से ज्यादा की किताबें नहीं आएगी। इसके संबंध में सीबीएसई के डायरेक्टर से बात करें तो अच्छा रहेगा। हम लोग केवल लिस्ट देख सकते हैं और स्कूल वाले क्या चला रहे हैं, ये देख सकते हैं। कार्रवाई के लिए सीबीएसई के डायरेक्टर से आपको बात करनी पड़ेगी।
नियम में स्वतः संज्ञान का पावर
जिला शिक्षा अधिकारी को नियम के आधार पर स्वतः संज्ञान लेने के साथ जांच का भी अधिकार है, लेकिन जिम्मेदार हाथ पर हाथ धरे बैठकर अभिभावकों की शिकायत का इंतजार कर रहे हैं। पालक महासंघ के महासचिव प्रबोध पांडेय का कहना है कि इस बार किताबों के दाम 45 फीसदी बढ़ा दिए गए हैं। पालक बहुत परेशान हैं, खुलेआम लूटा जा रहा है। सरकार का सरंक्षण है इसके कारण ये चल रही है। सरकार ना चाहे तो ये कैसे चला पाए।
नियमों की उड़ रहीं धज्जियां और मंत्री जी का अलग ही अलाप
फीस एक्ट की धारा-6 की उपधारा-1 के तहत प्राइवेट स्कूलों को कॉपी-किताबों से लेकर पूरी पठनीय सामग्री को वेबसाइट पर अपलोड करना अनिवार्य है, लेकिन प्रदेश के अधिकांश स्कूल इस नियम का पालन नहीं करते और जब मंत्री जी से सवाल किया जाता है तो वे अपना अलग ही राग अलापने लगते हैं। उनसे सवाल पूछा जाता है, बेलगाम हो चुके स्कूलों की मनमानी का, मंहगी कॉपी-किताबों का और मंत्री जवाब देते हैं पांचवीं-आठवीं बोर्ड होने का और आठवीं तक किसी को फेल नहीं करने का।
स्कूल शिक्षा मंत्री ने दिया गोलमोल जवाब
स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार का कहना है कि पहले के नियम ऐसे थे जिनके कारण बच्चे को 9वीं क्लास तक कोई नहीं रोकेगा। आगे तक बढ़ाने का काम चलता रहा। इस कारण से प्राइवेट सेक्टर के लोग अपने हिसाब की किताबें और अपने हिसाब से सारी व्यवस्थाएं करते रहे और जो सरकार की किताबें होती थीं, उनसे ज्यादा मूल्य की थी। लेकिन हमने तय कर दिया है कि पांचवीं और आठवीं की परीक्षाएं बोर्ड पैटर्न के हिसाब से होंगी। जो एनसीईआरटी के आधार पर संचालित होंगी। उस आधार पर होंगी।
नियम का उल्लंघन करते हैं प्राइवेट स्कूल
हाईकोर्ट अधिवक्ता शैलेश बावा ने बताया कि नियम होने के बाबजूद भी निजी स्कूल उसका उल्लंघन करते हैं। कोई भी स्कूल या संस्था अभिभावकों को किसी एक दुकान से किताब खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। अगर कोई स्कूल ऐसा करता है तो उसकी शिकायत जिला शिक्षा अधिकारी के पास की जा सकती है। इसके अलावा जिला समिति में भी अपनी शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है।