MP में आदिवासियों के खिलाफ अपराधों में 10% की बढ़ोत्तरी! क्या योजनाओं से 22% आदिवासी वोट बटोरने के कोशिश होगी पूरी?

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Ruchi Verma
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MP में आदिवासियों के खिलाफ अपराधों में 10% की बढ़ोत्तरी! क्या योजनाओं से 22% आदिवासी वोट बटोरने के कोशिश होगी पूरी?

BHOPAL: मध्यप्रदेश में कुछ ही महीनों बाद बहुप्रतीक्षित विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और राज्य की सत्ता पर एक बार फिर काबिज होने की जंग में बीजेपी ने अपना फोकस आदिवासी वोट पर कर दिया है। और इसकी वजह भी है और वो ये कि जब-जब राज्य के आदिवासी वोट बैंक ने अपना रुख बदला है, तब-तब सरकार को अपनी सत्ता से बेदखल होना पड़ा है। मध्य प्रदेश सरकार के डाटा के अनुसार, राज्य में आदिवासी आबादी लगभग 1.53 करोड़ है, जो राज्य की 7.2 करोड़ आबादी का 21.10 फीसदी है। साथ ही राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से 47 अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए और 35 अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित हैं। साल 2003 में भाजपा ने आरक्षित 41 में से 37 सीटों पर कब्जा किया था। इसके बाद जब साल 2008 में आरक्षित सीटें बढ़कर 47 हो गई, तब भी भाजपा ने 29 सीटों और 2013 में 31 सीटों पर जीत हासिल की। पर साल 2018 में स्थिति बदली और आरक्षित सीटों में से भाजपा सिर्फ 16 सीटें ही जीत पाई जबकि कांग्रेस ने 30 सीटों पर कब्ज़ा किया। और इस वजह से राज्य की सत्ता बीजेपी से छिटककर कांग्रेस के पास आ गई थी। हालांकि, बाद में राजनीक्तिक जोड़तोड़ से भाजपा ने सरकार अपने हाथ में ले ली थी। यही कारण है कि साल 2018 के चुनावों में अपने गवाएँ हुए आदिवासी वोट बैंक को फिर से हासिल करने के लिए भाजपा सरकार एड़ी चोटी का जोर लगा रही है।  इसी कोशिश में शिवराज सरकार ने साल 2021 के सितंबर में एक बड़े पैमाने पर आदिवासी आउटरीच कार्यक्रम शुरू किया था। इसके तहत कई योजनाओं और पॉलिसीस की घोषणा की गई, जैसे -





पेसा एक्ट का कार्यान्वयन





भगवान बिरसा मुण्डा स्वरोजगार योजना





टंट्या मामा आर्थिक कल्याण योजना





मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति विशेष परियोजना वित्त पोषण योजना





आदिवासी ब्लॉकों में राशन की डोरस्टेप डिलीवरी की घोषणा





क्या हैं ये योजनाएँ 





1. पेसा एक्ट का कार्यान्वयन: पेसा एक्ट ग्राम सभा को सामुदायिक संसाधनों की सुरक्षा और संरक्षण का अधिकार देता है। वन भी सामुदायिक संसाधन है। इस कारण पेसा एक्ट वनों की सुरक्षा और संरक्षण का भी अधिकार ग्राम सभा को देता है। इस एक्ट के अंतर्गत सामुदायिक वन प्रबंधन समितियों के गठन की जिम्मेदारी ग्राम सभा दी गई है। पंचायती राज व्यवस्था की पांचवीं अनुसूची के क्रियान्वयन में आने वाली दिक्कतों को दूर करने के लिए पेसा ग्राम सभाओं के का गठन किया है।





2. भगवान बिरसा मुण्डा स्वरोजगार योजना: इस योजना में विनिर्माण की गतिविधियों के लिए एक लाख से पचास लाख रुपये तक और सेवा व व्यवसाय कार्यों के लिए एक लाख से 25 लाख रुपये तक की परियोजनाएं स्वीकृत करने का प्लान रहा। नियमों के तहत योजना का लाभ लेने वाले परिवार की वार्षिक आय 12 लाख रुपये से अधिक नहीं होना चाहिए। योजना में हितग्राहियों को बैंक द्वारा वितरित एवं शेष ऋण पर 5 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज अनुदान तथा बैंक ऋण गारंटी शुल्क प्रचलित दर पर अधिकतम सात वर्षों तक (मोरेटोरियम अवधि सहित) निगम द्वारा वहन किया जाएगा।





3. टंट्या मामा आर्थिक कल्याण योजना: इस योजना में ऐसे अनुसूचित जनजाति के सदस्य, जो आयकरदाता नहीं हो, जिनकी उम्र 18 से 55 वर्ष के मध्य हो, उन्हें सभी प्रकार की स्वरोजगार गतिविधियों के लिए 10 हजार से एक लाख रुपये तक की परियोजनाओं के लिए बैंको से ऋण दिलवाकर हितग्राही को सात प्रतिशत ब्याज अनुदान तथा बैंक ऋण गारंटी शुल्क प्रचलित दर पर अधिकतम पांच वर्षों के लिए दिया जाएगा।





4. मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति विशेष परियोजना: इस वित्त पोषण योजना में मुख्यत: अनुसूचित जनजाति वर्ग के हितग्राहियों को लाभान्वित करने कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, उद्यानिकी, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, ऊर्जा, तकनीकि शिक्षा कौशल विकास एवं रोजगार, आयुष और लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग आदि से से मदद की जाएगी। योजना में स्व-रोजगार, आजीविका, कौशल उन्नयन, संवर्धन एवं नवाचार सबंधी परियोजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर वित्त पोषण किया जाएगा। परियोजना में कम से कम 50 प्रतिशत लाभार्थी अनुसूचित जनजाति वर्ग के होना अनिवार्य होगा।





सिर्फ ये योजनाएं ही नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की मध्य प्रदेश की, खासकर आदिवासी क्षेत्रों में, लगातार यात्राए ये दिखाती हैं कि इस बार भाजपा सरकार आदिवासियों को हलके में नहीं ले रही है।





हालाँकि, जहाँ एक और भाजपा सरकार अपनी इन कोशिशों से खुद को आदिवासियों की हितैषी बताती है, वहीँ दूसरी और ये भी सच है कि पिछले कुछ वर्षों में राज्य में आदिवासियों के खिलाफ अपराधों में बढ़ोत्तरी हुई है। हालत ये है कि मध्य प्रदेश देश के उन राज्यों में शुमार होता है जिनमें ऐसी घटनाएँ  सबसे अधिक संख्या में दर्ज हुई हैं। साल  2021 में राज्य में SC/ST अधिनियम के तहत 2,627 मामले दर्ज किए गए, जो साल 2020 के 2,401 मामलों के आंकड़े से 9.38% अधिक रहे। इसके अलावा, इस अवधि के दौरान दलितों के खिलाफ अत्याचार की कुल 7,214 घटनाएं दर्ज की गईं। हाल ही में सीधी पेशाब काण्ड जैसी घटनाएँ भी सरकार द्वारा आदिवासी समुदायों की सुरक्षा और भलाई करने के दावे की पोल खोलते हैं। साथ ही ये सवाल भी उठता है कि क्या आदिवासी समाज सरकार के लिए सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक बन कर रह गया है?  



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