New Delhi. मप्र समेत पांच राज्यों में राज्यों में चुनाव जारी है। 17 नवंबर को मतदान होना है। इससे पहले चुनाव आयोग ने नोटिस जारी कर बीजेपी-कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक दलों से 15 नवंबर तक उन्हें मिले चंदों का विवरण उपलब्ध कराने को कहा है। आयोग ने यह कदम सुप्रीम कोर्ट के 2 नवंबर को दिए गए निर्देश के बाद उठाया है। सभी राजनीतिक दलों के प्रमुखों को 3 नवंबर को पत्र लिखा था। आयोग ने कहा है कि विभिन्न राजनीतिक दलों को 30 सितंबर, 2023 तक चुनावी बांडों के जरिये मिले चंदों का विवरण सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत किया जाए।
क्या-क्या होगा सीलबंद लिफाफे में
आयोग ने पत्र में कहा कि इन विवरणों को दोहरे सीलबंद लिफाफों में भेजा जाना चाहिए। पहले सीलबंद लिफाफे में चुनावी बांड से संबंधित विवरण होंगे और दूसरे सीलबंद लिफाफे में पहला सीलबंद लिफाफा होगा जो उसके चुनावी व्यय प्रभाग के सचिव को भेजा जाएगा।
राजनीति दलों से मिला लिफाफा ज्यूडिशियल को सौंपा जाएगा
चुनाव आयोग के मुताबिक, ये सीलबंद लिफाफे 15 नवंबर की शाम तक पहुंच जाने चाहिए। साथ ही लिफाफों पर स्पष्ट रूप से 'गोपनीय-चुनावी बांड' अंकित होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने दो नवंबर को आदेश जारी कर कहा था, 'यह कवायद 19 नवंबर, 2023 तक या उससे पहले कर ली जाएगी। आंकड़ों को सीलबंद पैकेट में इस अदालत के रजिस्ट्रार (ज्यूडिशियल) को सौंपा जाएगा।'
कोर्ट के आदेश में 2019 के अंतारिम निर्देशों का जिक्र
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने शीर्ष अदालत के 12 अप्रैल, 2019 के अंतरिम निर्देशों का भी जिक्र किया था जिसमें राजनीतिक दलों को सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को चुनावी बांड के जरिये प्राप्त चंदे का विवरण उपलब्ध कराने को कहा था।
केंद्र सरकार ने 2018 में चुनाव बांड योजना को किया था अधिसूचित
सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल, 2019 में चुनावी बांड योजना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, लेकिन स्पष्ट किया था कि वह इस संबंध में दायर याचिकाओं पर विस्तृत सुनवाई करेगा। उल्लेखनीय है कि चुनाव बांड योजना को सरकार ने दो जनवरी, 2018 को अधिसूचित किया था, जिसे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदों के विकल्प के रूप में लाया गया था।
12 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा की फंडिंग
साल 2018 में शुरू हुआ ये बॉन्ड सिस्टम एक तरह से पार्टियों को देने वाले चंदे का रूप है। इसमें हजार से लेकर एक करोड़ तक का डोनेशन पार्टियों को दिया जा सकता है।ये आम नागरिक भी कर सकता है और कंपनियां भी। याचिकाकर्ता का दावा है कि इस सिस्टम के जरिए राजनीतिक पार्टियों को 12 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा की फंडिंग हो चुकी, जिसका स्रोत तक पता नहीं है। यही दावा करते हुए बॉन्ड सिस्टम को रद्द करने की मांग की जा रही है।
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?
एक हजार, 10 हजार, एक लाख, 10 लाख और एक करोड़ रुपयों के मूल्य में बॉन्ड मिलते हैं. ये एसबीआई की निश्चित शाखाओं में होते हैं। कोई भी दानकर्ता, जिसका बैंक में अकाउंट हो, बॉन्ड खरीद और अपनी मनपसंद पार्टी को डोनेट कर सकता है। इसे खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में रिबेट भी मिलती है। ये केवल 15 दिनों के लिए वैलिड होता है। अगर इस दौरान उसे कैश में न बदला जाए तो पैसे प्रधानमंत्री कोष में चले जाते हैं।
कब खरीदा जा सकता है?
ये हर तिमाही ने के पहले 10 दिनों तक खरीदा जा सकता है. यानी जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के पहले 10 दिनों तक बैंक से बॉन्ड लिया और डोनेट किया जा सकता है। चंदा देने वाले को बांड के मूल्य के बराबर के पैसे संबंधित ब्रांच में जमा कराने होते हैं, जिसके बदले उसे बॉन्ड मिलता है। कोई भी कंपनी या शख्स तयशुदा टाइम पीरियड के दौरान कितनी भी बार बॉन्ड डोनेट कर सकता है। ये पूरी तरह से टैक्स-फ्री होगा।