संघ की खामोश मेहनत और बीजेपी ने फहरा दिया परचम, सौ मतदाताओं पर एक कार्यकर्ता जुटा रहा, एप से की वोटिंग इंट्री

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Pratibha Rana
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संघ की खामोश मेहनत और बीजेपी ने फहरा दिया परचम, सौ मतदाताओं पर एक कार्यकर्ता जुटा रहा, एप से की वोटिंग इंट्री

संजय गुप्ता, INDORE. बीजेपी के मप्र में परचम फहराने के लिए मोदी की गारंटी, लाड़ली बहना की भूमिका तो वजह रही है, लेकिन इस शोर मचाती हुई जीत के पीछे संघ की खामोश मेहनत की एक बड़ी भूमिका रही है। पूरे मप्र में ही संघ की हजारों नहीं करीब एक लाख बैठक हुई है। संघ ने इस दौरान अपने अनुशासन, मिशन के साथ ही टेक्नोलॉजी का भी भरपूर उपयोग किया और बीजेपी से अलग खुद का वार रूम बनाया। मतदाताओं को राष्ट्रवाद के मुद्दे पर जागरूक किया गया। संघ के पदाधिकारियों ने द सूत्र से कहा कि हमारा मिशन राष्ट्रीय वोट बैंक बनाना है यानि मतदाता हमेशा राष्ट्रहित का सोचे, उस उम्मीदवार को ही वह चुने जो खुद राष्ट्र को पहले रखता हो।

मोहन भागवत का असर, नोटा बेअसर

संघ ने इस बार इंटरनेट मीडिया का भरपूर उपयोग किया। संघ प्रमुख मोहनराव भागवत का नोटा को लेकर एक वीडियो आया था। इसमें उन्होंने नोटा के बजाय मौजूद विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ को चुनने की बात कही थी। इस वीडियो को इंटरनेट मीडिया पर बहुप्रसारित किया गया। इसका असर यह हुआ कि पिछले चुनाव में नोटा को 1.4 प्रतिशत वोट मिले थे, जो इस बार घटकर एक प्रतिशत से भी कम रहे।

संघ की यह रही रणनीति-

1- जब सभी तरफ से लहर चली कि कांग्रेस आ रही है, संघ ने मोर्चा संभाला। 14 अक्टूबर को इंदौर में श्रीनाथ गुप्ता प्रान्त सम्पर्क प्रमुख, मालवा प्रान्त को लोकसभा प्रभारी बनाया गया। इन्होंने विधानसभावार और फिर नीचे स्तर पर संघ पदाधिकारियों को नियुक्त किया और काम शुरू हो गया।

2- हर सौ मतदाताओं पर एक कार्यकर्ता को नियुक्त किया गया।

3- एप बनाया गया, जिसमें इंट्री करना थी कि उनके हिस्से के कितने मतदाताओं ने वोट डाला

4- वार रूम से लगातार मॉनीटरिंग की गई कि जो दायित्व दिए गए वह उस दिन किए गए या नहीं

5- पूरा फोकस मतदाताओं को राष्ट्रवाद की जरूरत, देश की मुख्य समस्याओं को बताते हुए जागरूक किया गया। किसी पार्टी विशेष को वोट देने की जगह यह बोला गया कि जो राष्ट्रहित का सोचे, उनके लिए नीति बनाए, जो इसके नजदीक उम्मीदवार लगे उसे ही वोट दो।

6- इंदौर में एक अर्चना कार्यालय के स्थान पर जगह-जगह क्षेत्रीय कार्यालय बने, जहां जिसकी जिम्मेदारी थी वह बैठा और लगातार मॉनीटरिंग की गई।

साल 2018 में इतना गंभीर नहीं था संघ

2018 के विधानसभा चुनाव में संघ ने सीधा हस्तक्षेप नहीं किया था। इसके बाद बीजेपी को मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता से हाथ धोना पड़ गया था। संघ इस बार के चुनाव में पिछले चुनावों की कमियों को दोहराने देना नहीं चाहता था, इसलिए संघ के चिंतकों ने इस चुनाव में वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर रणनीति बनाई। संघ का माइक्रो मैनेजमेंट और मतदान प्रतिशत बढ़ाने की नीति कारगर साबित हुई। चुनाव से पहले भाजपा की गुटबाजी कई बार सतह पर भी देखी गई है, किंतु संघ ने कुनबे की कलह को कम करने में महती भूमिका निभाई। इसी कारण बीजेपी चुनाव में पूरी तरह एकजुट होकर लड़ी।

ऐसे बढ़ाया मतदान प्रतिशत

जिस प्रकार से भाजपा ने अपने बूथ प्रभारी और पन्ना प्रभारी बनाए, उसी तरह संघ ने भी अपने प्रभारी बनाए थे। ये निर्दलीय प्रत्याशियों के एजेंट के रूप में पर हर मतदान केंद्र पर मौजूद थे। इससे संघ के पास तुरंत गोपनीय फीडबैक जा रहा था कि कौन से इलाके में मतदान कम हो रहा है और कहां स्थिति ठीक है। मतदान एजेंट से जानकारी मिलने के बाद जिस क्षेत्र में मतदान कम हो रहा था, वहां संघ के स्वयंसेवक घर-घर जाकर लोगों को मतदान करने के लिए आग्रह कर रहे थे।

संघ ने मतदान से पूर्व ही ऐसे मतदाताओं को चिह्नित कर लिया था, जो शहर छोड़कर जा चुके हैं या किसी कारण से शहर में नहीं हैं। इन लोगों से संपर्क करके इन्हें मतदान के लिए आने आग्रह किया। ये जिस शहर में रह रहे थे, वहां के स्वयंसेवकों ने भी उनसे संपर्क किया और उन्हें मतदान के लिए प्रेरित किया। मतदान वाले दिन दोपहर तीन बजे के बाद तो संघ के स्वयंसेवकों ने लोगों को घर से निकाल-निकालकर मतदान करवाया। यही कारण रहा कि कई मतदान केंद्रों पर दोपहर तीन से शाम छह बजे तक संघ के प्रयासों से बंपर वोटिंग हुई थी।

नाराज कार्यकर्ताओं को मनाया

बीते कई वर्षों से सत्ता में रहने के कारण बीजेपी में कई क्षत्रप और सबके अपने-अपने गुट बन गए। हर नेता खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मान रहा था। ऐसे में संघ ने प्रदेश के बड़े नेताओं से चर्चा की और आपसी अंतर्कलह को कम करवाया। केंद्रीय मंत्री स्तर के बड़े नेताओं को चुनाव मैदान में उतारने की रणनीति भी संघ की ही मानी जा रही है।

इसका असर यह हुआ कि न सिर्फ बड़े नेताओं की सीटें बीजेपी ने जीतीं, बल्कि आसपास की कई सीटों पर भी इस रणनीति का प्रभाव पड़ा। संघ ने कार्यकर्ताओं में भी उत्साह जगाने का काम किया। जो कार्यकर्ता विधायकों या स्थानीय नेताओं के चलते नाराज थे, उन्हें समझाया कि हमें नेताओं के बजाय विचारधारा के साथ रहना चाहिए। संघ के प्रयासों का परिणाम यह रहा कि भाजपा के कार्यकर्ता पूरे चुनाव में हर समय सक्रिय रहे।

राष्ट्रीय मुद्दों को प्राथमिकता

संघ का मूल काम ही जनजागरण है। इस चुनाव में जनजागरण के लिए संघ ने मोहल्ला बैठकों का आयोजन किया। इसमें पावर पाइंट प्रेजेंटेशन (पीपीटी) के माध्यम से लोगों को बताया गया कि स्थानीय मुद्दों के बजाय हमें राष्ट्रहित में सोचना चाहिए। तथ्यों के साथ समझाया गया कि इस चुनाव में राष्ट्रवादी ताकतों के जीतने से राज्यसभा में भी राष्ट्रवादी विचारधारा मजबूत होगी। संघ के एजेंडे में श्रीराम मंदिर और कश्मीर के अलावा भी कई राष्ट्रीय मुद्दे हैं। लोगों को बताया कि जनसंख्या नियंत्रण कानून, समान नागरिक संहिता, सीएए जैसे कई कानून राज्यसभा में बहुमत से पारित होने के बाद ही लागू किए जा सकते हैं। इन्हें लागू करने के लिए राज्य के इन चुनावों को जीतना बेहद आवश्यक है।

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