BHOPAL. बीजेपी और कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा सीटों पर टिकट का ऐलान कर चुकी है। हमेशा की तरह परिवारवाद में कांग्रेस तो बिलकुल पीछे नहीं है, पर बीजेपी हमेशा परिवारवाद की खिलाफत करती रही है, लेकिन मध्यप्रदेश के चुनावी समर में बीजेपी चाह कर भी भाई भतीजे के मुद्दे पर कांग्रेस को घेर नहीं पाएगी। ये बात अलग है कि बीजेपी से मुद्दा छीनने का क्रेडिट कांग्रेस को नहीं जाता, बल्कि बीजेपी खुद ही अपने इस क्राइटेरिया की दुश्मन बनी नजर आ रही है। परिवारवादी पार्टियों का माखौल उड़ाने वाली बीजेपी ने मध्यप्रदेश में दिल खोलकर बेटे, पत्नी से लेकर भतीजे तक को टिकट दिया है। इस बार परिवारवाद का मुद्दा कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी को परेशान कर सकता है, बागी तो खैर दोनों ही दलों की नाक में दम कर रहे हैं।
एक- एक सीट जीतने के लिए कड़ी मेहनत
विधानसभा चुनाव में जीत की बात आती है तो सियासी दल कोई भी समझौता करने के लिए तैयार रहते हैं, फिर चाहें उसूलों पर आंच आए या अपने ही बागी हो जाए, परवाह किसे है। मध्यप्रदेश का पॉलिटिकल परिदृश्य भी फिलहाल कुछ इसी ओर इशारा कर रहा है। इस बार का चुनाव कांग्रेस के लिए जितना मुश्किल है बीजेपी के लिए भी फाइट उतनी ही टफ है। लिहाजा एक- एक सीट जीतने के लिए जद्दोजहद, जतन और कंप्रोमाइज सब कुछ किया जा रहा है, यूपी और गुजरात में बड़ी जीत के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद कहा था कि ये चुनाव वो इसलिए जीते क्योंकि परिवारवाद से दूर रहे।
शाह ने बदल दी परिवारवाद की परिभाषा
मध्यप्रदेश में चुनाव जीतने के लिए पीएम मोदी की इस सीख को न सिर्फ ताक पर रख दिया गया है बल्कि परिवारवाद की डेफिनेशन ही बदल दी गई है, ये काम किसी और नेता ने नहीं बल्कि खुद अमित शाह ने किया है। जिन्होंने परिवारवाद पर पिछले दिनों भोपाल में ही बयान दिया और परिवारवाद की एक नई परिभाषा बताई। अमित शाह ने साफ कर दिया कि परिवारवाद का मतलब अपनों को टिकट देना नहीं बल्कि एक ही परिवार का पार्टी को अपनी मिल्कियत समझना है।
BJP भी परिवारवाद में फंसी
इसके बाद से आई बीजेपी की लिस्ट में नई परिभाषा का असर खूब दिखा। नई परिभाषा के बाद ये मान लिया गया कि नेताओं के परिजनों को टिकट देने के दरवाजे नई जगह और नई तरह से खुल चुके हैं। इस छूट के बाद न सिर्फ कांग्रेस बल्कि बीजेपी ने भी धड़ल्ले से अपने अपनों को भी टिकट बांटे हैं। मध्यप्रदेश में अब कांग्रेस ही नहीं बीजेपी भी परिवारवाद में फंस चुकी है। जिसके बाद ये सवाल तो बनता है कि दलील कुछ भी हो क्या बीजेपी दूसरे प्रदेशों की तरह मप्र में भी उतनी ही दमदारी से कांग्रेस को यहां घेर सकेगी। निपटना सिर्फ परिवारवाद से ही नहीं है बल्कि बागियों से की नाराजगी की आंच से भी जीत की उम्मीदों को झुलसने से बचाना है।
परिवार में टिकट देने की रेस में दोनों ही बराबरी पर
हर प्रदेश के चुनाव में परिवारवाद को लेकर बीजेपी के सुर मुखर रहे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश में मामला कुछ अलग है यहां बीजेपी परिवारवाद का मुद्दा उठाती है तो कांग्रेस उतने ही दम से उसे घेर सकती है, क्योंकि यहां बहुत खुल कर अपने ही परिवार में टिकट बांटे गए हैं। कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही इस रेस में बराबरी पर हैं। बात करें बीजेपी की तो मप्र विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने 136 उम्मीदवार घोषित किए गए हैं। इनमें कई राजनैतिक सफर वाले परिवार के लोगों को भी टिकट दिए गए हैं। इसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों के परिवार वाले भी शामिल हैं। बीजेपी से टिकट पाने में नेता पुत्री, बहू और नेता पत्नी भी पीछे नहीं हैं।
BJP के टिकट वितरण में परिवारवाद
1. पेटलावद से दिलीप भूरिया की बेटी निर्मला भूरिया को टिकट
2. 5 नेताओं की पत्नियों को भी दिया गया टिकट
3. दिवंगत पूर्व मंत्री लक्ष्मण गौर की पत्नी मालिनी गौड़ फिर चुनाव लड़ेंगी
4. पूर्व मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह के बेटे ध्रुव नारायण सिंह
5. पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के भतीजे राहुल लोधी
6. पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र सिंह सकलेचा के बेटे ओम प्रकाश सकलेचा
7. पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की बहू कृष्णा गौर
8. पूर्व विधायक प्रतिभा सिंह के बेटे नीरज सिंह को टिकट
इस बारे में सवाल पर बीजेपी नेताओं के सुर अब परिवारवाद पर बदले हुए हैं। खुद प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा कुछ इंटरव्यूज में कह चुके हैं कि किसी का बेटा या रिश्तेदार कार्यकर्ता है और पार्टी के लिए काम कर रहा है तो उसे टिकट देने में कुछ गलत नहीं है। बीजेपी के नेता भी अब कुछ इसी लाइन पर आगे दलीलें पेश कर रहे हैं। कांग्रेस को भी इसके बाद बीजेपी को घेरने का अच्छा मौका मिल गया है। ये बात अलग है कि कांग्रेस ने भी परिवारवाद निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
कांग्रेस के टिकट वितरण में परिवारवाद
1. दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह को राघौगढ़ से टिकट
2. दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह को चाचौड़ा से टिकट
3. दिग्विजय सिंह के रिश्तेदार प्रियव्रत सिंह को खिलचीपुर से
4. समधी घनश्याम सिंह को सेवड़ा से टिकट
5. भांजे सिंधु विक्रम सिंह को शमशाबाद से बनाया प्रत्याशी
6. अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह को चुरहट से टिकट
7. प्रेमचंद गुड्डू की बेटी, अरूण यादव के भाई
8. अजय सिंह के मामा राजेन्द्र कुमार सिंह
9. गोविंद सिंह के भांजे और समधन को मिला टिकट
परिवारवाद के चलते दोनों पार्टियों में बगावत के सुर तेज
कांग्रेस ने भी जी भर के परिवारवाद को जारी रखा है, लेकिन पूछे जाने पर बीजेपी के परिवारवाद पर ऊंगली उठाने में कांग्रेस नेता देर नहीं कर रहे हैं, वैसे तो बीजेपी में पहले से ही दलबदल की वजह से खासी नाराजगी थी। अब परिवारवाद के चलते भी कई दावेदारों को निराशा हाथ लगी है। इस परिवारवाद के चलते दोनों ही दलों में बगावत भी तेज हो चुकी है। जहां दिग्गज नेताओं के घर में ही टिकट बांट दिया गया है उन सीटों पर बागियों ने आवाज उठानी शुरु कर दी है। ये मुसीबत न सिर्फ बीजेपी के लिए है बल्कि कांग्रेस के लिए भी है। अपने अपनों की सियासत को मजबूत करने के चक्कर में टिकट तो दे दिया गया है, पर ये न हो कि बागी ही जमे जमाए परिवार का खेल खराब कर दें। परिवारवाद का मुद्दा भी कमजोर पड़े तो हैरानी नहीं होगी। ये सही है कि घर ही घर में टिकट बांट कर बीजेपी ने खुद मप्र में परिवारवाद का मुद्दा खत्म कर दिया है।
राजनीतिक विरासत बढ़ाने के लिए टिकट की आस में नेता
बीजेपी परिवारवाद की भाषा बदलकर लाख खुद को जस्टिफाई करे लेकिन इस मामले में अब उसका उलझना भी तय है। वैसे भी अभी कुछ और नेता हैं जो अपने बच्चों के लिए टिकट की आस लगाए बैठे हैं। इसमें बीजेपी के वरिष्ठ नेता गौरी शंकर बिसेन शामिल हैं जो बेटी के लिए टिकट चाहते हैं, हालांकि आकाश विजयवर्गीय का टिकट कटने की पूरी संभावना है। कांग्रेस की भी आने वाली लिस्टों में ये हालात दिख सकते हैं कि परिवार का कोई सदस्य ही राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाए। ऐसे में बीजेपी तो परिवारवाद के मुद्दे से हाथ धो चुकी है। कांग्रेस शायद राहत की सांस ले सकती है। लेकिन दोनों ही दलों को ये नहीं भूलना चाहिए कि इस गुस्साए बागी अब भी चुनावी मैदान में सक्रिय हैं या सक्रिय होने की प्लानिंग कर रहे हैं। और कभी भी मुश्किल बन सकते हैं।