जगदीश शर्मा@ JAIPUR.
राजस्थान भी अन्य 4 राज्यों के साथ अपनी विधानसभा के चुनाव के लिए अब पूरी तरह तैयार है और राजनीतिक दल अपनी तैयारी और तेवर के साथ मैदान में उतरने को उतावले हैं। आज राजस्थान समेत अन्य राज्यों की चुनावी तारीखों का ऐलान कर दिया गया है। प्रशासन ने भी कमर कस ली है। चुनाव करवाने वाली मशीनरी तो तैयार है ही, सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखने को पुलिस और अन्य सुरक्षा बल भी अपनी तैयारी में जुटा है।
चुनाव में इस बार होगा कड़ा मुकाबला
इस बार चुनाव कड़े मुकाबले का होगा ऐसा स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इसका कारण है प्रदेश की 2 ध्रुव वाली गलाकाट राजनीति और कार्यकर्ताओं का जोश। वैसे तो राजस्थान में पिछले 3 दशक की परंपरा रही है, एक बार कांग्रेस और अगली बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार मतदाता बनाते रहे हैं, लेकिन कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी तीसरी सरकार का टर्म पूरा होने से पहले जनहित के कार्यों का ऐसा पिटारा खोल चुके हैं कि मतदाता हतप्रभ हैं कि असल काम कौन कर रहा है। चुनाव पूर्व के शायद आखिरी सप्ताह तक गहलोत ने घोषणाओं का अंबार लगा दिया है जिसमें समाज के किसी भी वर्ग को नाखुश रहने का कोई कारण नहीं छोड़ा है। लगभग 20 समाजों के कल्याण के लिए राज्य स्तर के बोर्डों का गठन कर उनकी अगुवाई करने वालों को राजनीतिक पद दिए गए हैं। वहीं राज्य कर्मचारियों से लेकर बेरोजगारों को काम दिलाने के जो उपक्रम बाकी थे, सबको निबटाया है। प्रदेश के नागरिकों को 25 लाख का स्वास्थ्य बीमा से लेकर स्कूल की छात्राओं तक को मदद का ऐलान हुआ है। अखबारों में ढाई-तीन पेज के सरकारी विज्ञापनों में इन तमाम घोषणाओं का जिक्र कर मतदाताओं को बताया गया है कि कांग्रेस सरकार उनके लिए कितना सोचती है और अभी भी वह किसी तरह की कमी नहीं रहने देगी।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का दावा
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत घोषणाओं के आधार पर दावा कर रहे हैं कि राजस्थान में इस बार परंपरा बदलेगी और कांग्रेस फिर सत्ता में लौटेगी। लेकिन उनका दावा केवल उनकी जनहित वाली घोषणाओं के दम पर टिका है। इन घोषणाओं से मतदाता भी प्रभावित हो रहा है या नहीं, यह दिखता कम है। राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर के मीडिया संस्थाओं के चुनाव सर्वे गहलोत के सपनों को पंख नहीं दे रहे। ज्यादातर का आकलन है कि मतदाता अब भी बीजेपी को कांग्रेस से आगे लाने को उतावले हैं और यह फर्क भी 30 से 40 सीटों का है। कुल 200 सदस्यों वाली विधानसभा के लिए सर्वे में बीजेपी को 110 से 120 सीटें और कांग्रेस को 70 तक सीटें मिलने के संकेत दिखाए गए हैं। उसका कारण यह भी है कि कांग्रेस में पिछले ढाई-तीन साल से जो धड़ेबन्दी खुलेआम चल रही है, वह पार्टी आलाकमान के अथक प्रयासों के बाद भी थमी नहीं। युवा तुर्क और गहलोत सरकार में उप-मुख्यमंत्री रहे पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट क्या करने वाले हैं, कहा नहीं जा सकता।
बीजेपी में सीएम फेस घोषित नहीं
भारतीय जनता पार्टी भी वैसे तो धड़ेबाजी से बची हुई नहीं है, लेकिन उनके लिए पार्टी आलाकमान की सख्ती ऐसी है कि किसी नेता की तिकड़यी राजनीति बाहर ज्यादा दिखाई नहीं देती। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, जिन्हें लोकप्रियता के मामले में केन्द्र और प्रदेश स्तर के बाकी क्षत्रपों से बहुत आगे माना जाता है, उन्हें भी अभी तक पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया गया है। बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह यह संकेत जरूर दे गए हैं कि चुने हुए विधायक दल के बीच ही नेता पद का चयन होगा। इससे वसुंधरा राजे भी पार्टी के कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति बनाए रख रहीं हैं। हालांकि कभी देव दर्शन यात्रा के नाम पर वे अपनी लोकप्रियता का प्रदर्शन लाखों की भीड़ में जमा करके देती रहती हैं।
कौन मारेगा बाजी ?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गहलोत के गृह जिले और राजस्थान के दूसरे सबसे बड़े शहर जोधपुर में एक विशाल रैली की थी। वे पार्टी के बढ़े हुए जोश और केंद्र की लोक लुभावन योजनाओं का जिक्र कर माहौल को आगे बढ़ाने का भरसक प्रयास कर चुके हैं। पिछले डेढ़ माह में प्रदेश में उनकी यह पांचवी और एक साल में 11वीं रैली है और पार्टी सम्पर्क रैलियां और अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से कार्यकर्ताओं के जोश को बनाए रख रही है। अब देखना यह है कि कांग्रेस को उसकी लोकप्रिय घोषणाओं का लाभ चुनाव जिताने के लिए मिलता है या परम्परा के अनुसार बीजेपी अपनी लोकप्रियता और मजबूत संगठन के भरोसे सत्ता में आने में कामयाब होगी।