RAIPUR. साल 2023 के अंत मे होने वाले छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए आदिवासी अंचल बस्तर में भी सियासी कवायद तेज हो गई है। बस्तर में विधानसभा की कुल 12 सीटें हैं, जिन पर वर्तमान में कांग्रेस का कब्जा है। 2018 के विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेल चुकी बीजेपी इस चुनाव में पिछली हार का बदला लेने व्याकुल दिखाई दे रही है।
क्या ED बनेगी बीजेपी की दवा?
केंद्र सरकार और राज्य सरकार को घोटाले से नहीं है मतलब छत्तीसगढ़ में शराब घोटाले की बात कई समय से आ रही थी, चुनाव की चुनाव आते ही चुनाव आते ED जांच बढ़ी है। घोटाले की बात पहले से जानते हुए भी लेट से हुई कार्रवाई से जनता के पैसे का नुकसान हुआ है।
भ्रष्टाचार का मुद्दा एक राजनीतिक हथियार बन गया है। ना ही केंद्र सरकार की नीयत और ना ही राज्य शासन की नीयत साफ नजर आ रही है। यदि ऐसा होता तो छत्तीसगढ़ शराब घोटाला 2 सालों से हो रहा है। इस पर सरकार हाथ पर हाथ धरे हुई बैठी रही और चुनाव का इंतजार कर सिर्फ भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा तक ही सीमित रखा। इस मुद्दे को दोनों ही पार्टियां अपनी सहूलियत के हिसाब से यूज कर रही हैं। भ्रष्टाचार के इस मुद्दे का भुगतान आम जनता को करना पड़ रहा है।
बस्तर में अचानक सांप्रदायिक घटनाएं बढ़ीं
बस्तर जैसे आदिवासी इलाके में भी पिछले वर्षों में सांप्रादायिक घटनाएं लगातार बढ़ती रही हैं। जहां गांवों में कुछ आदिवासियों के ईसाई बनने पर उसे धर्मांतरण कहते हुए हिंसक विरोध हुआ, लोगों को मारा-पीटा गया, ईसाई बने लोगों के शव गांव के कब्रिस्तान में दफनाने नहीं दिए गए। जगह-जगह पुलिस और प्रशासन को दखल देना पड़ा। पूरे प्रदेश में जगह-जगह घरों में चलती ईसाई प्रार्थना सभा में घुसकर बजरंग दल जैसे संगठनों ने हुड़दंग किया और इसे धर्मांतरण की कोशिश बताते हुए प्रशासन से उसका विरोध किया।
धर्मांतरण के मुद्दे पर कांग्रेस को घेरने की कोशिश
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में पिछले 6 महीने से भिन्न-भिन्न जगहों पर 'धर्मांतरण' का मुद्दा उठ रहा है। कई जगहों पर आदिवासी और आदिवासी से ईसाई धर्म अपना चुके लोगों के बीच हिंसक झड़पें भी हुईं।
बीजेपी-कांग्रेस में अंतर्कलह
बस्तर में बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों में एक समानता है कि दोनों दल आंतरिक कलह का शिकार हैं। जमीनी कार्यकर्ता अपने नेताओं पर उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस सत्तारूढ़ दल है, इसलिए लोग खुलकर बोलने से परहेज करते हैं, पर दबी जुबान से आलाकमान और अपने लोगों के बीच इसे व्यक्त करने से गुरेज भी नहीं करते। वहीं बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ पिछली विधानसभा के दौरान उपजे असंतोष से लोग अब तक नहीं उबर पाए हैं। वर्तमान में स्थानीय स्तर में उनके ही हाथों में संगठन की कमान भी है, इसलिए हालात ज्यादा नहीं सुधार पा रहे। बीजेपी के पास योग्य सेकंड लाइन लीडरशिप भी नहीं है, इसलिए संभावित प्रत्यशियों को लेकर कांग्रेस से तुलना होती है तो बीजेपी, कांग्रेस के मुकाबले उन्नीस साबित होती है। जीतने योग्य नए प्रत्याशियों की तलाश बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहा है।
बस्तर के आदिवासी सरकार से है नाराज
बस्तर के आदिवासी वन संरक्षण अधिनियम 2022 और पेसा अधिनियम 2022 से है नाराज हैं। इन विषयों के लेकर बस्तर में 22 जगहों पर आदिवासियों के आंदोलन भी जारी हैं। बस्तर अनुसूचित क्षेत्र है, यहां संविधान की पांचवीं अनुसूची लागू है। आरक्षण, पेसा कानून, आदिवासी क्षेत्र में ड्रोन हमाले और धर्मांतरण को लेकर बस्तर में सर्व आदिवासी समाज काफी मुखर हो रहा है। वहीं, पेसा एक्ट को लेकर बने कानून को कागजी बताते हए भाकपा भी लगातार आंदोलन करती आ रही है।
नहीं मिल सका 3 साल से तेंदू पत्ता का बोनस
आज भी अंदरूनी क्षेत्रों की तस्वीर नहीं बदली है। अंदरूनी क्षेत्रों में अस्पताल, आंगनबाड़ी और बुनियादी सुविधाओं के लिए बस्तर के आदिवासी मांग कर रहे हैं।
सिलगेर के ग्रामीणों को अब नहीं मिल सका न्याय
बीजापुर जिले के गांव सिलगेर में लंबे समय से चल रहे आंदोलन और आदिवासी क्षेत्रों में नाराजगी के बाद भी प्रदेश सरकार सिलगेर गोली कांड की न्यायिक जांच नहीं हो सकी।
क्या हैं सिलगेर गोलीकांड मामला?
बीजापुर और सुकमा जिले के बॉर्डर पर सिलगेर गांव में CRPF का कैंप बनाया जा रहा है। इसके साथ ही 6 और कैंप खोले जाने हैं। गांववाले इसका विरोध कर रहे थे। बीते 17 मई को यहां गोली चलने से 3 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं पुलिस का कहना था, गांव वालों की आड़ में नक्सलियों ने कैंप पर हमला किया था। इस जवाबी हमले में 3 लोग मारे गए। आदिवासी 3 शवों को वहीं रखकर प्रदर्शन करते रहे। जिला प्रशासन के अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद जांच का आदेश हुआ उसके बाद शवों का अंतिम संस्कार हो सका। वहीं बाद में आदिवासियों का सत्याग्रह शुरू हुआ जो अब तक बस्तर में 22 जगह पर आंदोलन चल रहे हैं।