BHOPAL. ग्वालियर-चंबल की चाहे तासीर हो या राजनीतिक मिजाज, कुछ ज्यादा ही गर्म रहता है। तासीर इतनी गर्म कि बोली गोली जैसी लगती है और राजनीतिक मिजाज ऐसा गर्म कि कहने को भले ही मध्यप्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से कुल 34 सीटें ही इस अंचल के खाते में आती हों पर यह भी सच है कि इस अंचल से दौड़े करंट का असर सूबे की सियासत में साफ देखने को मिलता है। इसलिए चाहे भारतीय जनता पार्टी हो या कांग्रेस इस अंचल को अपनी मुट्ठी में रखना चाहती है और पूरी ताकत भी इसके लिए झोंक देती है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को दिया था झटका
ज्यादा पुरानी बात नहीं है। 2020 में जब कमलनाथ की सरकार डेढ़ साल पूरा करने जा रही थी तो उनकी सरकार को भी धक्का ग्वालियर-चंबल में महाराज का रुतबा रखने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दिया था। यह झटका भी इतना जोरदार था कि कांग्रेस इसे भुलाए नहीं भुला पा रही है। हालांकि इस बात को हुए 3 साल का वक्त होने आ गया है पर जबसे कमलनाथ सरकार सिंधिया की वजह से गई तभी से इस अंचल में सियासी अखाड़ा सज गया था।
सिंधिया के अखाड़े के छोटे पहलवान चारों खाने चित
3 साल से इस अखाड़े की माटी को खोदा जा रहा है। बार-बार खोदा जा रहा था। इसे खोदने कभी कमलनाथ ग्वालियर-चंबल अंचल के दौरे पर आते हुए अखाड़े में फावड़ा चला जाते हैं तो बीच-बीच में दिग्विजय सिंह भी आकर अखाड़े में कुदाल लेकर पहुंच जाते हैं ताकि अखाड़े की माटी जमने ना पाए। सिंधिया तो बीजेपी में जाने के बाद पहले ही दिन से अखाड़े की माटी की बार-बार उलट-पलट रहे थे कि जब दांव-पेच लगाने का मौका मिला तो अखाड़ा की माटी-गंध का फायदा उठाया जा सके। इस दौरान उपचुनाव भी हुए। सिंधिया के अखाड़े के छोटे पहलवान इस दौरान चारों खाने चित होते भी दिखे। इसमें रिकॉर्ड मतों से जीतने वाली इमरती बाई भी शामिल रहीं तो सुमावली के धाकड़ एदल सिंह कंसाना, मुरैना के रघुराज सिंह कंसाना, ग्वालियर पूर्व के मुन्नालाल गोयल, भिंड गोहद के रणवीर सिंह जाटव के नाम प्रमुख हैं। कुछ लाज बचाई तो प्रद्युम्न सिंह तोमर और ओपीएस भदौरिया ने बचाई और अपनी सीट के साथ-साथ सिंधिया की भी लाज उन्होंने रख ली।
सिंधिया की ताकत को तोल लेना चाहती है बीजेपी
अब माहौल एकदम से बदला हुआ है। सिंधिया के दम पर जो चुनाव जीते थे, वे उपचुनाव में हारकर घर बैठने को मजबूर हो गए तो कांग्रेस को उपचुनाव में जो ऑक्सीजन मिली उसका पाइप कांग्रेस ने अभी तक अपनी नाक से नहीं निकाला है और इसी ऑक्सीजन के सहारे कांग्रेस उम्मीद लगाए बैठी है कि ग्वालियर-चंबल की जनता की जनता का जो गुस्सा उपचुनाव में देखने को मिला था, उसे कतई हल्का नहीं होने दिया। इसके लिए कांग्रेस के दिग्गज नेता भी अखाड़े की माटी तो अपने तन पर लपेट चुके हैं तो सिंधिया बीजेपी में आने के बाद से ही सियासी अखाड़े की माटी में सने हुए हैं। यहां सिंधिया का बार-बार उल्लेख सिर्फ इसलिए किया जा रहा है क्योंकि जब से सिंधिया को बीजेपी ने राज्यसभा में पहुंचाया और मंत्री पद से नवाजा, तभी से सिंधिया को अंचल में अपर और फ्री हैंड देखने को मिल रहा है। हालांकि केंद्र और सूबे में इस अंचल का दबदबा किसी से छिपा नहीं है पर फिलहाल ऐसा ही नजर आ रहा है कि चुनाव के ऐलान से पहले सिंधिया की पूरी ताकत को पार्टी अच्छे से तोल लेना चाहती है क्योंकि जो अपने पुराने हैं वे तो अपने है हीं, उन्हें क्या टेस्ट करना।
कमलनाथ और दिग्विजय के सहारे आगे बढ़ेगी कांग्रेस
वहीं यदि कांग्रेस की बात करें तो वह इस अंचल में एक बार फिर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के ही सहारे आगे बढ़ेगी यह साफ है। मुख्यमंत्री रहते ग्वालियर-चंबल का एक भी दौरा ना करने वाले कमलनाथ की ग्वालियर-चंबल अंचल में आवाजाही एकदम से बढ़ गई है। वे शादी-ब्याह में भी शामिल होने के लिए पहुंचने लगे हैं। दिग्विजय सिंह तो इस अंचल की आवोहवा में ही पगे-पले और आगे बढ़े हैं। उनकी हर यात्रा अंचल के माहौल को खूब गरमा देती है। वहीं नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह भी चंबल अंचल का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे भिंड की लहार विधानसभा सीट से अजेय हैं पर जहां तक उनके प्रभामंडल की बात है तो लहार में तो वे ज्यादा मेहनत करें चुनाव जीते जाते हैं पर आसपास की सीटों का रिजल्ट नहीं बदल पाते हैं।
विकास की कथा का गुणगान कर रही बीजेपी
बीजेपी प्रदेश से लेकर केंद्र तक में सत्ता है तो अंचल में बीजेपी की विकास की गाथा का गान करते हुए ही आगे बढ़ रही है। धड़ाधड़ शिलान्यास-भूमिपूजन के पत्थर ठोके जा रहे हैं तो पूरे हो चुके काम जनता के सुपुर्द किए जा रहे हैं। वहीं कांग्रेस साल 2020 में हुए दलबदल की धुन के साथ ही आगे बढ़ती जा रही है और लगातार कह रही है, दल-बदलुओं को सबक पहले सिखा दिया, अब बारी दल-बदलुओं के मुखिया को सबक सिखाने की है। जाहिर है, आने वाले समय में कांग्रेस की सभी तोप-तमंचों-तीर, सिंधिया को निशाना साधकर ही चलने वाले हैं। मौजूदा हालातों को देखते हुए 10 नंबर में से बीजेपी को 5.5 और कांग्रेस को 4.5 नंबर देता हूं।